कानपुर में जारी हुई कोरोना के इलाज को लेकर नई गाइडलाइन

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(www.arya-tv.com) कोरोना वायरस के नए वैरिएंट ओमिक्रोन संक्रमितों को स्टेरायड की दवाएं भी बेवजह चलाने की शिकायतें देश भर से आने लगी हैं। इस वजह से संक्रमितों की प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) प्रभावित हो रही है। इम्यूनिटी कमजोर होने से फिर से ब्लैक फंगस (म्यूकर माइकोसिस) और दूसरे संक्रमण के केस रिपोर्ट होने पर इंडियन काउंसिल आफ मेडिकिल रिसर्च (आइसीएमआर) की सलाह पर केंद्र सरकार ने संशोधित गाइडलाइन जारी की है।

उसमें बेवजह स्टेरायड के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। कोरोना के अति गंभीर मरीजों की जान बचाने, अनियंत्रित मधुमेह व सांस के गंभीर मरीजों में संक्रमण से होने वाली क्षति को नियंत्रित करने को स्टेरायड की दवाएं चलाई जा सकती हैं। स्टेरायड के सीमित इस्तेमाल की सलाह दी गई है।

नई गाइडलाइन में कोरोना के हल्के, सामान्य और गंभीर संक्रमितों के लिए अलग-अलग इलाज का प्रोटोकाल निर्धारित किया गया है। न आक्सीजन लेवल घटे और न ही सांस फूले ऐसे मरीज हल्के लक्षण के हैं और होम आइसोलेशन में रहेंगे। अगर संक्रतित को सांस लेने में दिक्कत हो रही है। उसका आक्सीजन सेचुरेशन (एसपीओटू) 93 से नीचे रह रहा है। उन्हें अस्पताल में तत्काल भर्ती कराने की जरूर है।

ऐसे मरीजों को आक्सीजन सपोर्ट में रखा जाना है। अगर संक्रमित का एसपीओटू 90 से नीचे चला जाए। ऐसे संक्रमित गंभीर श्रेणी में आएंगे, उन्हें तत्काल आइसीयू में भर्ती कर आक्सीजन सपोर्ट पर रखने की जरूरत होगी। इसके साथ ही स्थिति गंभीर हो रही है तो एंटी वायरल दवा रेमडेसिविर चलाई जाएगी। साथ ही इमरजेंसी को देखते हुए स्टेरायड के इस्तेमाल की अनुमति होगी।

अगर स्टेरायड चलाने की बाद भी आराम नहीं मिल रहा है। स्थिति बिगड़ती जा रही है। ऐसे में उन्हें किडनी, लिवर या बैक्टीरियल व फंगल इंफेक्शन नहीं है तो टोसिलिजुमैब दवा का इस्तेमाल किया जा सकता है।

बुजुर्ग व्यक्ति, जिनकी उम्र 60 वर्ष से अधिक है। उन्हें मधुमेह, हाइपरटेंशन, दिल की बीमारी, हार्ट में ब्लाकेज, टीबी, एचआइवी, फेफड़े, लिवर, किडनी व मोटापा से पीडि़त हैं। उनके लिए कोरोना का संक्रमण घातक है। हल्के कोविड संक्रमण से जूझ रहे ऐसे मरीज, जिन्हें 5 दिन से ज्यादा समय तक सांस लेने में दिक्कत हो, काफी ज्यादा खांसी और बुखार हो, तो उन्हें तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।

संशोधित गाइडलाइन में कहा गया है कि ऐसे कोरोना संक्रमित जिन्हें हल्के लक्षण हैं। उसके बावजूद उन्हें खांसी दो से तीन हफ्ते तक बरकरार है। लंबे समय से बुखार भी रह रहा है। ऐसी स्थिति संक्रमितों को टीबी की जांच भी जरूरी कराना चाहिए। ताकि हकीकत का पता चल सके। इसके अलावा अन्य जरूरी टेस्ट कराए जाने चाहिए।