यूक्रेन बॉर्डर पर रूस ने 1.5 लाख सैनिक भेजे, तो जवाबी कार्यवाही के लिए साथ आए NATO देश

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(www.arya-tv.com)1992 में सोवियत यूनियन के टूटने के बाद अमेरिका और उसके यूरोपीय दोस्तों के सैन्य गठबंधन नाटो का महत्व अचानक से कम हो गया। जियो पॉलिटिक्स के एक्टपर्ट्स ने दावा किया कि अगर आने वाले वक्त में नाटो यूरोप से बाहर कोई बड़ा रोल नहीं निभाता तो इसकी अहमियत खत्म हो जाएगी।

इन सब के बीच जब रूस ने 2014 में क्रीमिया पर कब्जा किया तब पॉवर बैलेंस के लिए नाटो की जरूरत महसूस की जाने लगी। अब जबकि रूस ने यूक्रेन की बॉर्डर पर 1.5 लाख से ज्यादा सैनिक तैनात कर दिए हैं तो नाटो केंद्रीय भूमिका में आ गया है। इसी के साथ नए कोल्ड वॉर की आहट महसूस की जा रही है।

पुतिन की आक्रामक नीतियों ने बदले हालात

अमेरिका के सीनियर इंटेलिजेंस अफसर एंड्रिया केंडल-टेलर का कहना है कि अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे और ऑस्ट्रेलियाई पनडुब्बी सौदे में फ्रांस के अपमान के बाद हालात बदल गए थे। एक वक्त यह महसूस किया गया था कि नाटो में कई खामियां हैं और इसके सदस्य देशों के बीच के रिश्तों पर विचार किया जा रहा था, लेकिन रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आक्रामक नीतियों और धमकियों ने नाटो को 1992 से पहले वाली स्थिति में वापस ला दिया है। इस हफ्ते नाटो के 30 सदस्य देशों ने एक साथ आकर इस संगठन में एक नई जान डाल दी है।

रूस को रोकना नाटो के DNA में

स्वीडन के सिक्योरिटी एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन के हेड अन्ना वीजलैंडर का कहना है कि रूस को रोकना नाटो के DNA में है, क्योंकि रूस यूरोपीय देशों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर सकता है। वहीं, सेंटर फॉर यूरोपियन रिफॉर्म की सिक्योरिटी ऐनालिस्ट सोफिया बेस्च ने कहा- नाटो को इसके सहयोगियों ने मिलकर बनाया है। नाटो का महत्व कभी कम नहीं हुआ, क्योंकि हमने इसे होने नहीं दिया।

एक वक्त पर मजाक में पूछा जाता था कि अगर नाटो जवाब है, तो सवाल क्या है? सोफिया बेस्च ने रूस की तरफ इशारा करते हुए कहा कि सालों पहले सवाल बदल गया था, अब हम फिर से पुराने सवाल पर वापस आ गए हैं।