प्राचीन भारतीय गौरव संस्कृति के ज्ञान और विज्ञान को अपने चैरिटेबल ट्रस्ट गर्वित, अपने ब्लॉग और वेब चैनल के माध्यम से पूरे विश्व में पहुंचाने का संकल्प लिए हुए नवी मुंबई निवासी प्रसिद्ध कवि लेखक और वैज्ञानिक विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी आजकल सनातनपुत्र देवीदास विपुल के नाम से जाने जाते हैं। जिनको अन्वेषक बाबा या खोजी बाबा के नाम से भी पुकारा जाता हैं। लखनऊ में जन्में, विश्वविद्यालय से बीएससी, एचबीटीआई कानपुर से बीटेक और एमटेक करने के पश्चात मुम्बई स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई में अपनी 35 वर्षों की सेवा देने के पश्चात सेवानिवृत्त होकर अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य सनातन की गहराई और हिंदुत्व की ऊंचाई को आधुनिक विज्ञान से जनमानस तक पहुंचाने का संकल्प लिए विपुल लखनवी के, पत्रकार डा. अजय शुक्ला ने राम, योग और ब्रह्म से संबंधित, कई साक्षात्कार लिये हैं।
देश के सर्वोच्च अधिकारी जो अपने को प्रधान सेवक कहते हैं, यानि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी आजकल पक्ष विपक्ष द्वारा विभिन्न प्रकार के विवादों और लांछन को फेस कर रहे हैं। उनको हम क्या कह सकते हैं इसका आंकलन श्रीमद् भागवत गीता और पतंजलि योग सूत्रों के द्वारा ही किया जा सकता है। इस विषय पर प्रस्तुत साक्षात्कार के कुछ प्रश्न हमारे पाठकों को निर्णय करने में अवश्य सहायक होंगे।
डॉ.अजय शुक्ला : आजकल रामलला की स्थापना के साथ नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटन समारोह में उपस्थित रहना एक वृहत चर्चा का विषय बना हुआ है। आपके इस विषय में क्या विचार हैं?
विपुल जी : देखिए मैं कोई भी राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूं किंतु मैं सनातन के सिद्धांतों को और हिंदुत्व की ऊंचाई को भलीभांति समझ चुका हूं इस कारण जिन कृत्यों द्वारा इनमें और अधिक प्रचार और प्रसार होगा मैं उसका समर्थन अवश्य करूंगा।
मैं किसी राजनीतिक पचड़े में पड़ने के लिए उत्तर नहीं देना चाहता हूं किंतु मैं श्रीमद्भगवद्गीता व पतंजलि योगसूत्रों के आधार पर नरेंद्र मोदी की अन्य नेताओं से तुलना अवश्य कर सकता हूं। फैसला तो आपके पाठकों पर रहेगा कि वह क्या सोचते हैं और किस दिशा में बह जाते हैं!
डॉ.अजय शुक्ला : आप किसी विशेष बिंदु पर यह तुलनात्मक वार्ता करने की सोचते हैं?
विपुल जी : सनातन के मूल लक्ष्य और वेद की वाणी के अनुसार एकमात्र विषय योग ही हो सकता है और जो योगी होता है वह यदि गलती से पाप भी कर दे तो उसको उसका कर्मफल पाप लग नहीं पाता। श्री नरेंद्र मोदी ने कुम्भ मेले में पांच सफाई कर्मियों को सम्मानस्वरूप पांव धोकर सम्मान किया था। यद्यपि कोई भी कार्य छोटा बड़ा नही होता। किंतु समाज में जिस कार्य को सबसे निकृष्ट कार्य मानते हैं। उनके पांव धोना एक नये तरीके का सम्मान है। जिसे लोग राजनीति भी कह सकते हैं। इस पर चर्चा का बाजार बहुत गर्म रहा है।
भारत एक सनातन मूल्यों का देश हैं। जहां अनादिकाल से वेदों, उपनिषद और शास्त्रों द्वारा मानव एक है, कोई छोटा बड़ा नहीं। मनुष्य कर्म से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य या शूद्र बनता है जन्म से नहीं। यह वर्ण व्यवस्था समाज को चलाने हेतु बनाई गई थी। वह बात अलग है कि मध्यकाल में अज्ञानतावश कुछ अब्राह्मण अपनी दुकान चलाने और सत्ता हेतु जन्म से यह सब होता है, प्रचारित करने लगे। वर्तमान में चाहे कितना भी बड़ा कोई जगतगुरु क्यों न हो नेता क्यों न हो! वह इस तरह का काम नहीं कर सकता। यह योगी का पहला लक्षण होता है जिसमें समस्त की भावना होती है न कोई ऊंचा न कोई नीचा न कोई छोटा न कोई बड़ा न कोई मित्र न कोई दुश्मन। यह भगवद्गीता का योगी के लक्षण हेतु पहला उपदेश।
डॉ.अजय शुक्ला : लेकिन इस कार्य में शुद्ध राजनीति भी तो दिखती है?
विपुल जी : जी हो सकती है।
डॉ.अजय शुक्ला : कृपया पतंजलि के योग सूत्र के अष्टांग योग द्वारा व्याख्या कीजिए!
विपुल जी : ठीक है। पातांजलि महाराज के अष्टांगयोग से ही मूल्याकंन करते हैं। जो कहते हैं कि योग को आठ अंगो द्वारा अनुभव किया जा सकता है। जिनमें पांच 1. यम, 2. नियम, 3. आसन, 4. प्राणायाम, 5. प्रत्याहार। ये वाहिक अंग है जिनको दुनिया देख सकती है। धारणा, ध्यान और समाधि ये तीन आंतरिक हैं।
पहला है यम: इसके पांच उप अंग है।
अहिंसा : ये मोदी में है। उनका भोजन और सात्विकता जग जाहिर है।
सत्य : विचारों में सत्यता, परम-सत्य में स्थित रहना, जैसा विचार मन में है वैसा ही प्रामाणिक बातें वाणी से बोलना। जो चीज़ जैसी है उसे वैसा ही जानना व मानना सत्य कहलाता है। सत्य सांसारिक और ईश के प्रति दो प्रकार का होता है। सांसारिक सत्य राजनीति के कारण हो सकता है कुछ छुपाना पड सकता हो पर मोदी सत्य ही बोलते हैं और आचरण भी करते हैं। ईश के प्रति वे निष्ठावान हैं।
अस्तेय: यानि चोर-प्रवृति का न होना। मोदी अपना सब कुछ दान करते रहते हैं। अपने सगे सम्बंधियों के लिये भी कुछ पक्ष नहीं लेते।
ब्रह्मचर्य – दो अर्थ हैं: पहला चेतना को ब्रह्म के ज्ञान में स्थिर करना और दूसरा सभी इन्द्रिय-जनित सुखों में संयम बरतना। शरीर के सर्वविध सामर्थ्यों की संयम पूर्वक रक्षा करने को ब्रह्मचर्य कहते हैं।
अपरिग्रह – आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना और दूसरों की वस्तुओं की इच्छा नहीं करना। मोदी तो अपना कुछ जो भी मिलता है दान ही कर देते हैं। अभी दक्षिणी कोरिया में जो सम्मान राशि मिली। सब नमामि गंगे को दान कर दी।
अष्टांग योग का दूसरा अंग है नियम। जिसके भी पांच उप अंग हैं।
शौच – शरीर और मन की शुद्धि। शरीर व मन की शुद्धि को शौच कहा जाता है। स्नान, वस्त्र, खान-पान आदि से शरीर को स्वच्छ रखा जाता है। ये मोदी में साफ दिखता है।
संतोष – संतुष्ट और प्रसन्न रहना। मोदी हर हाल में संतुष्ट रहते हैं। जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो केंद्र दिल्ली सरकार ने उनको हर तरह से परेशान किया। लेकिन मोदी ने कोई प्रतिकार न करते हुये कानून का पालन किया। जबकि आज विपक्ष की प्रदेश सरकारें केंद्र दिल्ली सरकार के कानून तक नहीं मानते।
तप – स्वयं से अनुशासित रहना। मोदी ने कभी कानून नहीं तोड़ा। आध्यात्मिक तप तो करते ही हैं।
स्वाध्याय – आत्मचिंतन करना। भौतिक-विद्या व आध्यात्मिक-विद्या दोनों का अध्ययन करना स्वाध्याय कहलाता है। मोदी हर पूजा स्थान को महत्व देकर सम्मान करते हैं। नमाज के समय भी भाषण रोक देते हैं।
ईश्वर-प्रणिधान – ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, पूर्ण श्रद्धा। आप यह तो हर मंदिर या मठ यात्रा में देखते हैं। वर्तमान में रामलला की स्थापना के पहले 11 दिन का निराहार उपवास यही दर्शाता है।
तीसरा अंग है: प्रत्याहार। रूद्रयामल में भगवद्पाद में चित्त लगाने को प्रत्याहार कहा गया है। जो मोदी में साफ दिखता है।
चौथा अंग है आसन : योगासनों द्वारा शरीरिक नियंत्रण। आज आसन को योग का पर्याय और आसन का मुख्य उद्देश्य शरीर को रोग मुक्त करना माना जाने लगा है। आसन करने पर गौण रूप से शारीरिक लाभ भी होते हैं। परन्तु आसन का मुख्य उद्देश्य प्राणायाम, धारणा, ध्यान और समाधि हैं। जिस शारीरिक मुद्रा में स्थिरता के साथ लम्बे समय तक सुख पूर्वक बैठा जा सके उसे आसन कहा गया है। शरीर की स्थिति, अवस्था व साम्थर्य को ध्यान में रखते हुए भिन्न-भिन्न आसनों की चर्चा की गइ है।
पांचवा है प्रणायाम:
जिसको मोदी ने विश्व के 184 देशों में योग दिवस के रूप में फैला दिया।
बाकी तीन आंतरिक है जिनका दर्शन विश्व पत्रकार सम्मेलन में असहिष्णुता पर पूछे गये प्रश्न के उनके उत्तर से मिलता है। “ “एकम् सत्य विप्रा बहुधा वदन्ति” अर्थात , सत्य एक है: बुद्धिमान विभिन्न नामों से बुलाते हैं। मतलब ईश तो एक ही है उस तक जाने के मार्ग अनेकों है। अलग अलग लोग अलग अलग रास्ते से उस तक जाते हैं।“ यहां यह तर्क दिखता है जिस धर्म का यह मूल मंत्र है। वह असहिष्णु कैसे हो सकता है। पत्रकार निरूत्तर हो गया।
मोदी जी धारणा और ध्यान की गहराई तक तो पहुंच ही चुके हैं। हो सकता है समाधि का भी अनुभव हो। क्योकिं गीता के अनुसार योगी की पहिचान है। “योग कर्मसु कौशलम्” अर्थात कुशलतापूर्वक काम करना ही योग है। कौशल तो योग से ही संभव है।
पातांजलि के योग सूत्र का दूसरा श्लोक जिसमें योगी की पहिचान है। “चित्त वृत्ति निरोध:” यानि चित्त में वृत्ति का निरोध ही योग है। आपने देखा होगा मोदी के चेहरे पर कभी कोई भाव नहीं रहता। यही योगी की पहिचान है। : हे अर्जुन जो न हर्ष में हर्षित हो। न विषाद में दुखी हो। जो सब प्राणियों में मुझको और सबको मुझमें देखता है वह योगी है। कारण भाव आने से चित्त में वृत्ति उत्पन्न होगी। वृत्ति से संस्कार और संस्कारों से योग बाधित होता है।
दूसरा जो सब प्राणियों में मुझको और सबको मुझमें देखता है वह योगी है। इसी सर्वत्र ब्रह्म। सर्वस्य ब्रह्म के कारण ही मोदी पांव धो सके।
फिर आपने देखा होगा कि उनको मां की गाली तक दी गई किंतु उनके चेहरे पर कहीं शिकन तक न देखी।
योगी के अन्य लक्षण है जो कम खाता हो। मोदी मात्र नीबू पानी में नौ दिन का दोनों नवरात्रि उपवास रख लेते हैं।
जो कम बोलता हो। मोदी सिर्फ सभाओं में और राजनीति हेतु काम पर बोलते हैं। कभी बकवास का उत्तर नहीं देते हैं।
कुल मिलाकर मैंने पतंजलि महाराज के योग सूत्र के द्वारा जिसमें अष्टांग योग की बात की गई है उसमें नरेंद्र मोदी की तुलना कर दी। अब आप अपनी विवेक की सोंचे कि वह योगी है या भोगी है?
डॉ.अजय शुक्ला : इस तरीके के तो अनेक नेता हुए होंगे एक मोदी ही क्यों अलग है?
विपुल जी : देखिए सरकारें बहुत आई लेकिन किसी भी सरकार ने सनातन को जोड़ने का प्रयास नहीं किया। सबने सनातन को तोड़ने का और नष्ट करने का प्रयास किया। इसके लिए कानून तक का सहारा लिया। यदि कोई यह बोलता था कि गर्व करो मैं हिंदू हूं तो उसको सांप्रदायिकता भड़काने के आरोप में जेल भेज दिया जाता था। लेकिन मोदी के राज्य में तो ऐसा नहीं है हिंदू अपने सनातन के गौरव की तरफ आगे बढ़ रहा है इसका श्रेय आप किसको देंगे? भारतीय संस्कृति और ज्ञान को पूरी दुनिया में फैलाया जा रहा है इसका श्रेय आप किसको देंगे?
डॉ.अजय शुक्ला : तो आप योगी आदित्यनाथ को क्या कहेंगे?
विपुल जी : अब जब उनके नाम के आगे योगी लगा हुआ है तो मेरी कौन सी टिप्पणी उचित होगी आप बताएं? दूसरी बात वे संन्यासी है और संन्यासी को धर्मध्वजा वाहक कहा जाता है। आदि गुरु शंकराचार्य की परंपरा के अनुसार आजीवन ब्रह्मचारी रहकर संन्यास लेने वाले का स्थान बहुत ऊंचा होता है। गेरुआ वस्त्र इस बात का प्रतीक है कि इस व्यक्ति ने अपना घर परिवार सनातन और समाज के उत्थान के लिए छोड़ दिया है इसलिए हे निवासियों आप इनका सम्मान करें। मैं तो गेरवा वस्त्र और संन्यासियों का सदैव सम्मान करता हूं। किसी और में दम हो तो अपना परिवार छोड़कर दिखाओ। अपना खुद का पिंडदान करने की सामर्थ लाओ। संसार का सारा वैभव छोड़कर सन्यास धर्म निभा कर दिखाओ।
डॉ.अजय शुक्ला : आपका बहुत-बहुत आभार साक्षात्कार के लिए समय निकालने के लिए। धन्यवाद।
विपुल जी: धन्यवाद। आपके मित्रों का पाठकों का। कोई भी प्रश्न हो जिसका उत्तर कहीं न मिल रहा हो तो आप मेरे मोबाइल नंबर 99696 80093 पर नि:संकोच संदेश भेज कर उत्तर प्राप्त कर सकते हैं।