10 बच्चों की हत्यारिन बहनों की फांसी की सजा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने उम्रकैद में बदला

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(www.arya-tv.com) 13 बच्चों की किडनैपिंग और 10 बच्चों की हत्या को अंजाम दे चुकी दो बहनों यानी रेणुका शिंदे और सीमा गवित की फांसी की सजा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने उम्र कैद में बदल दिया है। अदालत ने मृत्युदंड की सजा में हुई देरी को इसका आधार बनाया है। बता दें कि यह दोनों देश की पहली ऐसी महिलाएं थीं, जिन्हें फांसी की सजा मिली है।

2001 में कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी

इन दोनों पर आरोप है कि ये मासूम बच्चों की किडनैपिंग कर उनसे अपराध करवाती थीं, उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए हथियार के तौर पर इस्तेमाल करती थीं और मकसद पूरा हो जाने पर उनकी बेरहमी से हत्या कर देती थीं। इनकी मां अंजनीबाई गवित भी इस केस में आरोपी थी। हालांकि, पकड़े जाने के एक साल बाद ही उसकी मौत हो गई थी, जबकि दोनों बहनों को साल 2001 में कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी।

 चोरी से हत्या की दुनिया में कदम रखा
मां और बेटियों पर करीब 125 आपराधिक मामले दर्ज थे। इसमें छोटी-मोटी चोरी, पॉकेट मारना, चेन स्नेचिंग, भीड़भाड़ वाले इलाकों में चोरी जैसी घटनाएं शामिल थीं। लेकिन ये इन महिलाओं की खौफनाक कहानी का बहुत छोटा सा हिस्सा था। 90 के दशक में इन्होंने चोरी से हत्या की दुनिया में कदम रखा। तब बड़ी बेटी रेणुका की उम्र 17 साल और छोटी बेटी सीमा की उम्र 15 साल थी, जब इन्होंने अपनी मां के साथ मिलकर पहले बच्चे की हत्या की थी।

रुपए कमाने के लिए अपराध की दुनिया में कदम रखा
दरअसल, अंजनीबाई को उसके पति ने छोड़ दूसरी महिला से शादी कर ली। इसके बाद रुपए कमाने के लिए अंजनीबाई ने अपराध की दुनिया में कदम रखा। इसमें उसने दोनों बेटियों और बड़ी बेटी रेणुका के पति किरण को भी शामिल कर लिया। रेणुका का एक बेटा भी था। एक दिन उसने मंदिर में चोरी की और जब पकड़ी गई तो बेटे को आगे कर उसपर सारा इल्जाम डाल दिया। लोगों ने रहम कर बेटे और मां को छोड़ दिया। यहीं से रेणुका और उसकी मां-बहन को बच्चों के सहारे अपराध करने का आइडिया मिला।

दर्जनभर बच्चों के अपहरण और हत्याएं कीं
जून, 1990 से अक्टूबर, 1996 तक, 6 साल में तीनों महिलाओं ने दर्जनभर बच्चों के अपहरण और हत्याएं कीं। अंजनीबाई को छोड़कर पति मोहन से प्रतिमा नाम की महिला से शादी कर ली थी। मोहन-प्रतिमा की दो बेटियां थीं। अंजनीबाई प्रतिमा से इतनी नफरत करती थी कि उसने उसकी बड़ी बेटी को निशाना बनाया। प्रतिमा को अंजनी और उसकी बेटियों पर शक था, इसलिए उनसे तीनों के खिलाफ पुलिस में बेटी की किडनैपिंग करने की शिकायत दर्ज करवाई।

पुलिस ने इनके मनसूबों को नाकाम कर दिया

तीनों अपराधी महिलाओं का मकसद इस कपल की दूसरी बेटी का अपहरण करना भी था, लेकिन पुलिस ने इनके मनसूबों को नाकाम कर दिया। पकड़े जाने के बाद छानबीन में पता चला कि बच्चों का अपहरण कर उन्हें अपराध की दुनिया में धकेल दिया जाता था। जब बच्चे अपराध की दुनिया में पुराने हो जाते थे और उन्हें लोग पहचानने लगते थे तो ये महिलाएं उनकी हत्या कर देती थी। हत्या की कुछ कहानियां रोंगटे खड़े कर देने वाली है।

चार बच्चों की हत्या की दर्दनाक कहानी

  1. संतोष महज डेढ़ साल का बच्चा था। एक शाम वो बस स्टैंड पर रोने लगा। महिलाओं का लगा कि बच्चे के रोने से लोगों का ध्यान उनपर जाएगा तो उन्होंने उसका हत्या कर दी। उन्होंने उस बच्चे का सिर जमीन और एक लोहे की रॉड पर तब तक पटका, जब तक बच्चे ने उनकी गोद में ही दम नहीं तोड़ दिया। इसके बाद मासूम का शव एक ऑटोरिक्शा के नीचे फेंक दिया गया।
  2. ऐसे ही 18 महीने के एक बच्चे की भी बेरहमी से हत्या की गई थी। पहले उसका गला घोंट दिया गया। मरने के बाद उसे एक पर्स में ठूंसा और फिर सिनेमा हॉल के टॉयलेट की शेल्फ में पर्स छोड़ दिया गया।
  3. 2 साल के एक बच्चे को पहले तो कई दिनों तक भूखा रखा और फिर इतना मारा कि उसकी मौत हो गई। ऐसा सिर्फ इसलिए किया गया था कि वो मासूम अपनी मां को याद कर बहुत रोता था।
  4. तीन साल का एक बच्चा पंकज घर के आसपास के लोगों से बात करने की हिम्मत करने लगा था, ताकि वो उस नर्क से बाहर निकल सके। ये पता चलते ही महिलाओं ने उसे पंखे से उलटा लटका दिया और दीवार में तब तक सिर पटका, जब तक उसकी मौत नहीं हो गई।

जेल में हुई मां की मौत, बेटियों को मिली फांसी
इससे पहले की ये महिलाएं 14वें बच्चे को अपना शिकार बनाती पुलिस इन तक पहुंच गई थी। नवंबर, 1996 में पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। तीनों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे। रेणुका का पति इस मामले में मु्ख्य गवाह बन गया तो उसके खिलाफ सारे मामले हटा लिए गए। दिसंबर, 1997 में अंजनीबाई की गिरफ्तारी के एक साथ बाद ही जेल में मौत हो गई। जबकि, दोनों हत्यारी बहनों को 2001 में फांसी की सजा सुनाई गई। 2004 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी यही सजा बरकरार रखी। हालांकि, 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा पर रोक लगा दी। बाद में राष्ट्रपति ने भी दोनों बहनों की दया याचिका खारिज कर दी।