मध्य साठ का महानगर:कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन

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(www.arya-tv.com)  महानगर, लखनऊ की पहली वह रिहायशी आबादी बसाई गई थी जो सच में लखनऊ की पुरानी हदों के बाहर थी यानी जब भी मुख्य लखनऊ से आइए तो आपको रेलवे फाटक जरूर पार करना पड़ता था। जो उस समय बहुत अजीब लगता था। निशातगंज वाला फाटक तो बादशाह नगर स्टेशन के करीब था और लीवर वाला फाटक था गाड़ी के प्रस्थान करते ही जल्दी खुल जाता था। फैजाबाद रोड और चौधरी स्कवायेर वाले तो सही शब्दों में फाटक थे और दोपहिया वाहनो को भी रोक रखता था और गेटमैन गाड़ी के जाने पर बड़ी सी चाभी लगा कर पहले एक तरफ खोलता फिर दूसरी ओर । ऐसा लगता था कि महानगर जैसे एक लखनऊ का देश निकाला नौनिहाल था जिसको उसके पिता दूर रखा था या अभिमन्यु जैसा कोई, जिसे रेल पटरियों के चक्रव्युह से घेर रखा था। बेबसी तब ज्यादा बढ़ जाती जब चारबाग से रेल पकड़नी हो या फिल्म के शो से थोड़ा ही पहले निकले हों। परन्तु यह भी सच है कि न तब इतना वाहन का संचालन था न ही ट्रैफिक का जाम। उपरगामी सड़क की कल्पना भी लखनऊ वासियों के लिए परे थी। क्योंकी फैजाबाद रोड को राष्ट्रीय मार्ग का दर्जा मिल गया

अतः इस इलाके का पहला उपरगामी पर वहीं बना। परन्तु सारी भीड़ तो निशातगंज में थी और मार्ग अत्यंत सकरा होने के कारण एक एक अनोखा उपरगामी पथ बना जो आज भी इस्तेमाल करने वालों के लिए एक अजूबा है। निशातगंज व करामत की दुकानों का जो बुरा हाल हुआ वह अलग। पहले निशातगंज का बच्चा महानगर होता था पर बाद में रिश्ते पूरे उलट हो गये। पहले निशातगंज थाने में महानगर पुलिस चौकी थी अब महानगर पुलिस कोतवाली में निशातगंज चौकी है। महानगर की एक और कमी थी सीवर लाईन का न होना। घरों में सोक पिट होते थे और जब उनकी वार्षिक सफाई होती तो पूरा मुहल्ले को पता चल जाता था।
परन्तु महानगर की कुछ अच्छी बातें भी थी। महानगर ब्वायज़ हाई स्कूल लड़कों और माउंट कार्मेल लड़कियों की शिक्षा में अपनी महारत हासिल कर रहे थे और हज़रतगंज तक के बच्चे यहां पढ़ने आने लगे थे। महानगर का सरकारी अस्पताल और फातिम जच्चा बच्चा अस्पताल भी अपनी साख बना रहे थे। नारायण दत्त तिवारी जी की पत्नी डा सुशीला तिवारी जी जोकि महानगर सरकारी अस्पताल की एक डाक्टर थीं तो डा स्कवैलिटा जोकि इतालवी थीं, ने फातिमा अस्पताल में काफी नाम किया। बाद में तो दोनों अस्पताल काफी बड़े बने और उनकी शोहरत फैली। उन दिनो के महानगर में एक खास बात और थी, यहां युकेलिप्टस के पेड़ो की भरमार थी।

सभी मुख्य सड़कों की पटरियों पर सघन रूप से लगे थे खास तौर से महानगर ब्वायज़ स्कूल की चारदीवारी के बाहर तो बहुत ही ज्यादा, बड़ी आंधी में एक दो पेड़ अवश्य गिर कर रास्ते में रुकावट डाल देते थे। इसके अलावा गर्मी की शुरुआत के दिनों में अन्दर की सड़कों के किनारे लगे गुलमोहर और अमलताश के खिले हुए पेड़ सुन्दरता में चार चांद लगा देते थे। उस समय की नई भवन स्थापत्य कला के हिसाब से दो मझोले साइज़ की कोठियां हम लोगों के बाल मन को बहुत सुन्दर लगती थी एक थी हज़रतगंज वाले बक्शी फोटोग्राफर की जो गोलमार्केट चौराहे से मंदिर मार्ग पर शुरूआत में जोकि ब्वयाज स्कूल के मुख्य गेट के पास तो दूसरी इसी मार्ग के अंत में अब के कपूरथला चौराहे के पास प्रसिद्ध जसवंत सिंह आर्कीटेक्ट की, अब वहां भाटिया वस्त्रालय है। जिसे अब छन्नीलाल चौराहा कहते हैं वह तब अनाम था।

महानगर विस्तार में इक्के- दुक्के मकान थे पर यहां की सभी सड़कें लगभग बन चुकी थीं और मैंने कार चलाने की शिक्षा का असफल प्रयास इन्हीं सड़कों से किया था।परन्तु महानगर में उन दिनों हम लोगों के बचपन के मन पर असर छोड़ने वाली घटना वह होती थी जो जेठ के तपते मास के पहले मंगल को होनेवाले अलीगंज मंदिर का मेले के रुप में घटती थी। मेरा जिक्र उस समय के सड़क पर लेट कर बढ़ने वाले लाल लंगोट धारी आस्थावान युवा भक्तों से हैजिनमें से कुछ की मांए लू से भरे माहौल में अपने निष्ठावान पुत्रो का मुंह कुछ कुछ दूरी के बाद गीले कपड़े से पोंछ देती थी और हाथ के पंखे से हवा करती थी ।

यह यात्रा, भक्तगण बिन जल ग्रहण किए पूरी करते थे। अक्सर जेठ की तपती धूप में पिघलते तारकोल वाली काली सड़क पर जो अक्सर उन्हीं दिनों फिर से बनी हुई होती थी उनकी इस प्रतिज्ञा को और भी कठिन बना देती थी। अलसुबह भक्तों की श्रद्धा फिर उसी स्तर की शायद अब कम ही देखने को मिलती हो जबकि अब लू भी उतनी नहीं चलती। हालांकि भक्तों की भीड़ बढ़ने के साथ अब यह आयोजन प्रतिवर्ष एक की बजाय जेठ मास के‌ चारों मंगलवार को सम्पन्न होने लगा है। महानगर पी ए सी ग्राउंड एक अच्छा बड़ा रखरखाव वाला मैदान है जहां हम लोगों ने अपने समय के एशियन चक्का फेंक चैम्पियन, प्रवीण कुमार को अखिल भारतीय पुलिस खेल समारोह में अपना फन दिखाते देखा था।

बाद में उन्होंने महाभारत सीरियल में भीम का रोल भी किया था। कुल मिला कर महानगर का बसना लखनऊ वालों के उस इरादों की जीत थी जिसमें लोगों ने आशावान रहते हुए अपनी हदों से आगे जाकर एक नये शहर की कल्पना की थी जिसके लिए कुछ खोया था तो काफी पाया था और अगली पीढ़ी के लिए नई इबारत लिख दी थी।

आलेख -सेल्मन अडेल्फ़ी (Salmon Adelphi)