- विपुल लखनवी ब्यूरो प्रमुख पश्चिमी भारत
एक छोटी सी बात है पर यह असावधानी जानलेवा भी हो सकती है। मुंबई में जगह जगह कबूतरों से सावधान रहने के पोस्टर बैनर और होर्डिंग आपको मिल जाएंगे। इसका कारण है कबूतर की टट्टी में, क्रिप्टोकोकोल फफूद बहुतायत में पाया जाता है। बाक़ी चिड़ियों में से तोता, चिकन या काकटू में भी पाया जाता है पर कम मात्रा में।
ये फफूद, कबूतर के बीट से हवा में आ जाते हैं और मनुष्य के सासों से होते हुए फेफड़े में चले जाते हैं। अगर, मनुष्य की इम्युनिटी कम हुई (जैसे डायबिटीज में या एड्स में या किडनी / लीवर ट्रांस्पलंट मरीज़ों में) तो ये फफूद फेफड़े से होते हुए, मनुष्य के ब्रेन में पहुँचते हैं और क्रिप्टोकोकॉकल मेनिनजाइटिस कर देते हैं। बीमारी काफ़ी गंभीर है और जानलेवा भी। इससे सावधानी से ही बचा जा सकता है।
दिमाग और स्पाइनल कॉर्ड (मेनिंजेस) को ढकने वाले ऊतको की परतों और मेनिंजेस (सबएरेक्नॉइड स्पेस) के बीच द्रव से भरी हुई जगह में होने वाली सूजन को मेनिनजाइटिस कहते हैं। मेनिनजाइटिस बैक्टीरिया, वायरस या फ़ंगी की वजह से होता है, ऐसे विकारों की वजह से होता है जो संक्रमण नहीं हैं या दवाओं की वजह से होता है।
मेनिनजाइटिस के लक्षणों में बुखार, सिरदर्द और गर्दन में अकड़न शामिल है। जिसकी वजह से ठोड़ी को छाती तक नीचे लेकर जाना मुश्किल या नामुमकिन हो जाता है, हालांकि, हो सकता है कि शिशुओं की गर्दन में अकड़न न हो और बहुत बूढ़े और इम्यूनिटी को दबाने वाली दवा लेने वाले लोगों में लक्षण अलग हो सकते हैं। जांच के लिए सेरेब्रोस्पाइनल फ़्लूड का सैंपल लेने के लिए स्पाइनल टैप किया जाता है।
मेनिनजाइटिस का इलाज इसकी वजह पर निर्भर करता है (उदाहरण के लिए, बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस के लिए एंटीबायोटिक्स) और लक्षणों में आराम पाने के लिए दवाएँ दी जाती हैं।
दिमाग और स्पाइनल कॉर्ड ऊतक की तीन परतों से ढके होते हैं जिन्हें मेनिंजेस कहते हैं। इन परतों के नाम ये हैं ड्यूरा मेटर (सबसे ऊपर की परत),
अरेक्नॉइड मेम्ब्रेन (बीच की परत), पिया मेटर (सबसे नीचे की परत) और मस्तिष्क को ढकने वाले ऊतक।
मस्तिष्क को ढकने वाले ऊतक अरेक्नॉइड झिल्ली और पिया मेटर के बीच सबएरेक्नॉइड स्थान है। इस स्थान में सेरेब्रोस्पाइनल फ़्लूड होता है, जो मेनिंजेस में से बहता है, मस्तिष्क के अंदर रिक्त स्थान को भरता है और मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को कुशन करने में मदद करता है।
सबसे ज़्यादा, मेनिनजाइटिस की वजह यह है। सूक्ष्मजीवों जैसे कि बैक्टीरिया, वायरस या फ़ंगी की वजह से होने वाला संक्रमण।
हालांकि, कुछ दवाएँ और ऐसे विकारों की वजह से कभी-कभी मेनिनजाइटिस हो जाता है जो संक्रमण नहीं होते (जिसे नॉनइंफ़ेक्शियस मेनिनजाइटिस कहते हैं)। इन विकारों में निम्नलिखित शामिल हैं। सार्कोइडोसिस, बेहसेट सिंड्रोम, दिमाग का कैंसर।
मेनिंजेस में फैले कैंसर में ल्यूकेमिया और लिम्फ़ोमा कहते हैं। कुछ दवाओं से रिएक्शन के तौर पर मेनिंजेस में हुई सूजन, जैसे कि बिना स्टेरॉइड वाले एंटी इंफ़्लेमेटरी दवाएँ (NSAID) और इम्यूनिटी को दबाने वाली दवाएँ (इम्युनोसप्रेसेंट)।
मेनिनजाइटिस अक्सर अचानक होता है (जिसे एक्यूट मेनिनजाइटिस कहते हैं)। कई बार यह कई दिनों से लेकर कई हफ़्तों के समय में विकसित होता है (जिसे सबएक्यूट मेनिनजाइटिस कहते हैं)। अगर यह 4 हफ़्ते या इससे ज़्यादा समय तक रहता है, तो इसे क्रोनिक माना जाता है। यह पूरी तरह गायब होने के बाद दोबारा आ सकता है (जिसे रिकरंट मेनिनजाइटिस कहते हैं)।
मेनिनजाइटिस को इसके कारणों (बैक्टीरिया, वायरस या कुछ और वजह) या इसके फैलने की गति (एक्यूट, सबएक्यूट या क्रोनिक) के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। लेकिन इसे आमतौर पर इनमें से एक के तौर पर वर्गीकृत किया जाता है:
एक्यूट बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस (जो कि सबसे ज़्यादा खतरनाक प्रकार है)
वायरल मेनिनजाइटिस, नॉनइंफ़ेक्शियस मेनिनजाइटिस (ऐसे विकारों की वजह से होता है जो संक्रमण नहीं होते हैं या दवाओं या वैक्सीन की वजह से होता है), रीकरंट मेनिनजाइटिस, सबएक्यूट या क्रोनिक मेनिनजाइटिस,
एक्यूट बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस खासतौर पर गंभीर होता है और यह तेज़ी से बदतर हो जाता है।
वायरल या नॉनइंफ़ेक्शियस मेनिनजाइटिस से पीड़ित लोग कुछ हफ़्तों में ठीक हो जाते हैं। सबएक्यूट या क्रोनिक मेनिनजाइटिस आमतौर पर धीरे-धीरे और लगातार बढ़ता है, लेकिन डॉक्टर को इसका कारण और फिर इसका इलाज निर्धारित करने में परेशानी होती है।
बैक्टीरिया के अलावा किसी अन्य चीज़ से होने वाले मेनिनजाइटिस को असेप्टिक मेनिनजाइटिस कहते हैं, जिसे अक्सर वायरल मेनिनजाइटिस भी कहते हैं, जिसकी वजह से एक्यूट बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस होता है। इस वजह से, असेप्टिक मेनिनजाइटिस में इन वजहों से होने वाले मेनिनजाइटिस शामिल हैं।
वायरस, कभी-कभी, अन्य जीव (जैसे लाइम रोग या सिफलिस पैदा करने वाले बैक्टीरिया) ऐसे विकार जो संक्रमण नहीं हैं (जैसे सार्कोइडोसिस)।
अलग-अलग तरह के मेनिनजाइटिस से कई तरह के लक्षण पैदा हो सकते हैं। साथ ही, गंभीरता और बढ़ने की गति के आधार पर लक्षण अलग-अलग होते हैं। हालांकि, सभी प्रकारों से ये लक्षण होते ही हैं। गर्दन में दर्द और कठोरता जिससे ठोड़ी को छाती तक नीचे करना मुश्किल या असंभव हो जाता है। सिरदर्द, बुखार। हालांकि, शिशुओं में ये लक्षण या तो होते ही नहीं या आसानी से दिखाई नहीं देते। साथ ही, गर्दन में अकड़न या बुखार उन लोगों में नहीं होता जो कि बहुत बूढ़े हैं या जो लोग इम्यूनिटी को दबाने के लिए दवाएँ (इम्युनोसप्रेसेंट) लेते हैं। व्यक्ति सुस्त भी दिख सकते हैं या हो सकता है वह जवाब न दें।
डॉक्टर अक्सर लक्षणों के आधार पर मेनिनजाइटिस का संदेह करते हैं। लेकिन मेनिनजाइटिस की गंभीरता की वजह से टेस्ट किये जाते हैं। अगर डॉक्टरों को बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस का संदेह होता है, तो वे सबसे पहले रक्त का नमूना लेते हैं और उसका कल्चर निर्मित करते हैं (ताकि सूक्ष्मजीवों को विकसित किया जा सके)। हालांकि, रक्त परीक्षण करके बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस का पता नहीं लगाया जा सकता।
हर तरह के मेनिनजाइटिस के निदान की पुष्टि करने और वजह का पता लगाने के लिए डॉक्टर स्पाइनल टैप (लम्बर पंक्चर) करते हैं। सेरेब्रोस्पाइनल फ़्लूड का सैंपल लेकर, जांच, विश्लेषण और कल्चर करने के लिए लेबोरेटरी में भेज दिया जाता है।
हालांकि, अगर उन्हें संदेह होता है कि खोपड़ी के अंदर दबाव काफ़ी बढ़ गया है (उदाहरण के लिए, दिमाग में किसी ट्यूमर, फोड़े या अन्य पदार्थ की वजह से), तो ऐसे जमा पदार्थों का पता लगाने के लिए कंप्यूटेड टोमोग्राफ़ी (CT) या मैग्नेटिक रीसोनेंस इमेजिंग (MRI) की जा सकती है। खोपड़ी में दबाव बढ़ जाने पर स्पाइनल टैप करना खतरनाक हो सकता है। दिमाग का कुछ हिस्सा नीचे की तरफ़ खिसक सकता है। यदि ये भाग ऊतकों के छोटे छिद्रों के माध्यम से दब जाएं, तो दिमाग अलग-अलग भागों में बंट जाता है और जीवन के लिए खतरा मानी जाने वाला ब्रेन हर्निएशन नाम की बीमारी होती है।
अगर तुरंत स्पाइनल टैप नहीं किया जा सकता और डॉक्टरों को बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस का संदेह होता है, तो डॉक्टर टेस्ट का इंतज़ार न करते हुए एंटीबायोटिक्स के साथ इलाज शुरू कर देते हैं। जब खोपड़ी पर दबाव कम हो जाता है या कोई पदार्थ जमा नहीं रहता, तो स्पाइनल टैप किया जाता है और ज़रूरत पड़ने पर, नतीजे आने के बाद डॉक्टर इलाज में समायोजन करते हैं।
इंफेक्शन की वजह से होने वाले मेनिनजाइटिस के लिए एंटीमाइक्रोबियल दवाएँ, लक्षणों से राहत के लिए सामान्य उपाय और दवाएँ सहित मेनिनजाइटिस का इलाज इसकी वजह पर निर्भर करता है। अगर मेनिनजाइटिस किसी इंफेक्शन की वजह से होता है, तो उचित एंटीमाइक्रोबियल दवाएँ (जैसे कि एंटीबायोटिक्स, एंटीवायरल दवाएँ या एंटीफ़ंगल दवाएँ) दी जाती हैं।
अगर डॉक्टर को मेनिनजाइटिस बैक्टीरिया की वजह से होता है या व्यक्ति बहुत बीमार दिखाई देता है, तो डॉक्टर टेस्ट के नतीजों का इंतज़ार किये बिना—व्यक्ति का इलाज एंटीबायोटिक्स के साथ शुरू कर देते हैं—क्योंकि बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस बहुत तेज़ी से बढ़ता है और घातक होता है। दिमाग में सूजन को कम करने के लिए व्यक्ति को कॉर्टिकोस्टेरॉइड भी दिए जा सकते हैं।
अगर मेनिनजाइटिस वायरल इंफेक्शन या किसी दवा के रिएक्शन जैसी स्थितियों की वजह से होता है, तो सामान्य उपायों से लक्षणों को दूर करने में मदद मिल सकती है। अगर मेनिनजाइटिस हल्का हो, तो बहुत सारे तरल पदार्थ पीने, आराम करने और बिना पर्ची के मिलने वाली (OTC) दवाएँ लेने से बुखार और दर्द से राहत मिल सकती है।
अगर मेनिनजाइटिस गंभीर हो, तो व्यक्ति को हॉस्पिटल में भर्ती कराया जाता है।