बिलकिस के बलात्कारियों को दोबारा सलाखों के पीछे पहुंचाने वाली जस्टिस बीवी नागरत्ना के महत्वपूर्ण फैसले जानिए

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(www.arya-tv.com) बिलकिस बानो गैंगरेप केस (Bilkis Bano Case) में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना (B.V. Nagarathna) ने गुजरात सरकार के दोषियों को रिहा करने के फैसले को गलत बताया है। जस्टिस नागरत्ना ने अपने फैसले में राज्य सरकार को काफी ताकीद भी दी है।

शांत स्वभाव वाली नागरत्ना अपने सख्त फैसलों के लिए जानी जाती हैं। नोटबंदी से लेकर अभिव्यक्ति की आजादी तक फैसले में नागरत्ना का टफ स्टैंड साफ दिख जाता है। बिलकिस बानो केस में भी जस्टिस नागरत्ना ने गुजरात सरकार को जमकर फटकारा।

30 अक्टूबर 1962 को जन्मीं नागरत्ना 2027 में देश की पहली महिला चीफ जस्टिस बनेंगी। नागरत्ना ने 31 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट की जज बनी थीं। वह 30 अक्टूबर 2027 को अपने पद से रिटायर होंगी। नागरत्ना 28 अक्टूबर 1987 को उन्होंने बतौर वकील अपनी शुरुआत की थी। नागरत्ना दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलबी की डिग्री हासिल की है।

नोटबंदी पर दी अलग राय

2016 केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के 500 और 1000 रुपये के नोट को बंद करने फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के आधार पर वैध करार दिया था। इसी पीठ में जस्टिस नागरत्ना शामिल थीं। हालांकि, उन्होंने बहुमत फैसले से इतर अपना फैसला लिखा था।

उन्होंने 8 नवंबर 2016 के नोटबंदी के फैसले को गलत और गैरकानूनी करार दिया था। उन्होंने अपने फैसले में लिखा था कि केंद्र सरकार के आदेश के बाद सभी सीरीज के नोट को प्रचलन से बाहर कर देना गंभीर मामला है।

उन्होंने अपने फैसले में कहा कि केंद्र के प्रस्ताव पर आरबीआई की तरफ से दी गई सलाह को कानून के मुताबिक सिफारिश नहीं मानी जा सकती है। हालांकि, बहुमत के फैसले के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी के फैसले को वैधानिक बताया था।

नाजायज संतान पर अनोखा फैसला

कर्नाटक हाई कोर्ट में जज रहने के दौरान जस्टिस नागरत्ना ने नाजायज संतानों के लेकर एक कमेंट किया था। उन्होंने अपनी टिप्पणी में कहा था कि कानून को यह मानना चाहिए कि नाजायज माता पिता हो सकते हैं,

उनसे पैदा होने वाले बच्चे नहीं। जस्टिस नागरत्ना ने कहा था कि बिना माता-पिता के बच्चे का जन्म हो नहीं सकता है। उन्होंने सरकार से कहा था कि वैध विवाह के इतर पैदा हुए बच्चों को किस तरह की सामाजिक सुरक्षा दी जा सकती है।

फ्रीडम ऑफ स्पीच पर नागरत्ना की टिप्पणी

जस्टिस नागरत्ना ने सार्वजनिक पदाधिकारियों की अभिव्यक्ति की आजादी से संबंधित एक मामले में बहुमत वाले अपने फैसले में लिखा था कि अभद्र भाषा का इस्तेमाल संविधान के मूलभूत मूल्यों पर प्रहार के समान होता है।

उन्होंने अपने फैसले में लिखा था कि भाषण या बोलने की स्वतंत्रता एक जरूरी अधिकार है। इसके जरिए शासन के बारे में लोगों को जानकारी दी जाती है। लेकिन ये अभद्र नहीं हो सकती है। उन्होंने अपने फैसले में सार्वजनिक जीवन में भाषण देने या बयान देने के दौरान सतर्क रहने की बात भी लिखी थी।

हेट स्पीच मामले में भी नागरत्ना की सख्ती

जस्टिस नागरत्ना ने हेट स्पीच मामले में सुनवाई के दौरान काफी सख्त टिप्पणी की थीं। उन्होंने हेट स्पीच को गंभीर अपराध बताया था। जस्टिस के एम जोसफ और जस्टिस नागरत्ना की पीठ ने इसे गंभीर अपराध बताते हुए कहा था कि इससे देश के धार्मिक तानेबाने को नुकसान पहुंच सकता है।

1987 में बतौर वकील शुरू किया था करियर

नागरत्ना ने 1987 में अपने करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने बतौर वकील बेंगलुरु के कई अदालतों में प्रैक्टिस की थी। वे कंस्टीट्यूशनल लॉ, कमर्शियल और इंश्योरेस लॉ, सर्विस लॉ, एडमिनिस्ट्रेटिव लॉ, लैंड एंड रेंट लॉ, फैमिली लॉ की माहिर मानी जाती हैं।

अपने 30 साल के करियर में नागरत्ना ने कई अहम फैसले सुनाए हैं। 2008 में नागरत्ना को कर्नाटक हाई कोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश बनाया गया था। इसके दो साल बाद ही 2010 में उन्होंने हाई कोर्ट में स्थायी जज बनाया गया। वह 11 साल तक हाई कोर्ट में जस्टिस रहीं। इसके बाद 2021 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया।

वह 25 सितंबर 2027 को देश की 54वीं चीफ जस्टिस बनेंगी। बतौर देश की पहली महिला चीफ जस्टिस वह 36 दिन इस पद पर रहेंगी। जस्टिस नागरत्ना के पिता जस्टिस ईएस वेंकटरमैया 19 जून 1989 से 17 दिसंबर 1989 तक देश के 19वें चीफ जस्टिस रह चुके हैं।