कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु की जयन्ती

Lucknow
(www.arya-tv.com)रेणु ने अपने साहित्य में तत्कालीन लोक जीवन को शब्दों में बांधकर संरक्षित करने की सफल कोशिश की है। उनकी रचनाओं में लोक संस्कृति, पेड़-पौधे, भाषा, रहन-सहन, आचार-विचार, पर्व, त्योहार, परम्पराएं, रीति-रिवाज के दर्शन होते हैं। रेणु जी का आंचलिक परिवेश स्थानीय न होकर सार्वदेशीय है। इसमें ग्रामांचलों की समस्त धड़कनें कैद हैं और वह तत्कालीन समाज का वास्तविक दर्पण है।
ये बातें आज अमर कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु की जयन्ती के अवसर पर वक्ताओं ने कहीं। गुरूवार को लोक संस्कृति शोध संस्थान और विद्यान्त हिन्दू पी.जी. कालेज, हिन्दी विभाग के संयुक्त तत्त्वावधान में रेणु जन्मशती महोत्सव का औपचारिक शुभारम्भ किया गया। विद्यान्त कालेज परिसर में आयोजित समारोह का लखनऊ विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित, वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री डा. योगेश प्रवीन, लोक विदुषी डा. विद्याविन्दु सिह, वरिष्ठ साहित्यकार डा. रामबहादुर मिश्र, प्रवासी संसार के सम्पादक डा. राकेश पांडेय, रेणु जन्मशती समारोह समिति की अध्यक्ष एवं विद्यान्त हिन्दू पी.जी.कालेज हिन्दी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डा. सुरभि शुक्ला, विद्यान्त हिन्दू पी.जी. कालेज हिन्दी विभाग के असिस्टेण्ट प्रोफेसर डॉ. श्रवण कुमार गुप्ता आदि ने दीप प्रज्ज्वलित कर शुभारम्भ किया। विद्यान्त हिन्दू पी.जी. कालेज की प्राचार्य प्रो. धर्म कौर ने आगन्तुकों का स्वागत किया तथा रेणु जन्मशती की प्रासंगिकता पर अपनी बात रखी।
विषय प्रवर्तन करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डा. रामबहादुर मिश्र ने मैला आंचल, परती परिकथा उपन्यासों, पंचलाइट, पहलवान की ढोलक आदि कहानियों के हवाले से रेणु के व्यक्तित्व व लेखन को बहुआयामी तथा लोक के सर्वाधिक निकट बताया। उन्होंने कहा कि वे लोक मनोविज्ञान के पारखी थे तथा क्रान्ति के दर्शन पर विचार प्रस्तुत किया।
लखनऊ विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कहा कि रेणु को आंचलिकता का पर्याय बना दिया गया जो अनुचित है। आंचलिकता में नायक नहीं होता और इसमें क्षेत्र का ही नायकीकरण होता है। रेणु ने अपनी रचनाओं में जिस प्रकार से गांव के मनोविज्ञान का रुपायन अपनी रचनाओं में किया है वह अद्भुत है। रेणु की रचनाओं के आधार पर देशज शब्दकोश बनाया जा सकता है क्योंकि उनकी रचनाओं में मिथिला, भोजपुरी, नेपाली व बांग्ला के लोकप्रयुक्त शब्दों की बहुतायत है। रेणु से अपनी मुलाकात का उल्लेख करते हुए प्रो. दीक्षित ने कहा कि वे स्वयं को आंचलिक कथाकार कहे जाने के विरूद्ध थे।
रेणु जन्मशती समारोह समिति की अध्यक्ष एवं विद्यान्त हिन्दू पी.जी.कालेज हिन्दी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डा. सुरभि शुक्ला ने रेणु साहित्य व उसके वैशिष्ट्य पर चर्चा करते हुए उन्हें ग्राम्यांचल से जुड़ी समस्याओं तथा जनाकांक्षाओं पर खुलकर लिखने वाला बताया।
मुख्य अतिथि पद्मश्री डा. योगेश प्रवीन ने रेणु की कहानी पर बने फिल्म से सम्बंधित बातों का उल्लेख करते हुए उन्हें लोक धुनों व गीतों का भी जानकार बताया। भारत में साहित्यकारों की दशा पर चर्चा करते हुए उनके हितों का चिन्तन करने की आवश्यकता बतायी।
डा. राकेश पांडेय ने रेणु की रचनाधर्मिता व सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों पर विस्तार से अपनी बात रखी। रेणु जी के विधान सभा चुनाव लड़ने, हारने व क्रान्ति की अलख जगाने के प्रसंगों का उल्लेख किया।
लोक विदुषी डा. विद्या विन्दु सिंह ने रेणु को देशकाल की राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना का बिम्ब उकेरने वाला रचनाकार बताया। उन्होंने कहा कि रेणु साहित्य में भारत के विविध कलारूपों की छवियां देखी जा सकती हैं।