पोलिंग एजेंट और भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारियों के कारण भाजपा का चुनाव जीतना आसान नहीं

Lucknow
  • विपुल सेन ब्यूरो प्रमुख पश्चिमी भारत

2 दिन बाद तीन राज्यों में चुनाव समाप्त हो जाएंगे। 25 नवंबर को राजस्थान में और मध्य प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में वोटिंग होगी अधिकतर लोग और भाजपा के नेतृत्व यह सोचते हैं कि मोदी और योगी के कारण अथवा हिंदुत्व के कार्ड के कारण वह चुनाव बहुत आसानी से जीत लेंगे। यह उनका भ्रम है क्योंकि चुनाव जीतने में जो सबसे बड़ी अड़चन और सबसे बड़ी बात है सोता हुआ हिंदू और भारत के सरकारी कर्मचारियों के खून में बहता हुआ भ्रष्टाचार का रक्त।

मैंने व्यक्तिगत तौर पर बेंगलुरु की वोटिंग पर निगाह रखी थी जब कर्नाटक में वोटिंग हो रही थी। उस समय मुझे महसूस हो गया कि भाजपा की हार का कारण जॉर्ज सोरोस का फंड ही है और आगे आने वाले चुनाव में यह एक बहुत बड़ा फैक्टर रहेगा। आप उसके धन को कम पर आंक रहे हैं तो यह आपकी गलती है। चलिए बताते हैं आपको किस तरीके से कर्नाटक के चुनाव जीते गए जो पूरे भारत की परीक्षण भूमि रही।

सबसे पहले भाजपा के समर्थक वोटर का नाम वोटर लिस्ट में चुनाव के कुछ पहले काट दिया गया। कुछ लोग जब वोट डालने गए तब अपना नाम नहीं देखा तो उन्होंने वहां के बूथ ऑफिसर से बात की पर कोई हल नहीं निकला। फिर वहां के क्षेत्रीय चुनाव अधिकारी से बात की तो उसका उत्तर था कोई बात नहीं इस बार वोट नहीं दे पाए तो अगली बार दे लीजिएगा।

यह स्पष्ट करता है कि यदि चुनाव के बूथ अधिकारियों और चुनाव प्रक्रिया से संबंधित कर्मचारियों को खरीद लिया जाए तो भारत में चुनाव बहुत सहायता से जीते जा सकते हैं। यही फैक्टर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में देखने को मिलेगा। अब जहां पर भाजपा की सरकारें है उनको चाहिए कि वह चुनाव आयुक्त के कार्यालय से संबंधित कर्मचारियों और अधिकारियों पर निगाहें रखें। जो पोलिंग अधिकारी एक दिन के लिए बनाए जाते हैं उन लोगों पर विशेष निगाह रखें उनको बनाने के पहले उनके चरित्र की जांच हो क्योंकि किसी भी सरकारी कार्यालय का कोई क्लर्क एक दिन के लिए बूथ ऑफिसर बन जाता है तो उसको खरीदना बहुत आसान होता है।

अब देखना यह है कि जब तीनों राज्यों के चुनाव 3 दिसंबर को निकलते हैं तो बीजेपी कितने वोटो से अथवा कितने राज्यों में जीतती है यह भविष्य बताएगा लेकिन केंद्र सरकार को सावधान होना चाहिए। क्योंकि मात्र एक व्यक्ति के ईमानदार होने से पूरा सरकार में ईमानदारी नहीं आ जाती। सरकारी कर्मचारियों के रक्त में स्वतंत्रता के बाद से बहने वाला भ्रष्टाचारी खून आसानी से शुद्ध होने वाला नहीं।