गर्वित द्वारा पर्यावरण का बचाव कैसे होता है ?

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  • गर्वित द्वारा पर्यावरण का बचाव कैसे होता है?

नवी मुंबई कोपर खैराने स्थित ग्रामीण आदिवासी रिसर्च एंड वैदिक इनोवेशन ट्रस्ट यानी गर्वित द्वारा समाज से संबंधित विभिन्न सेवाओं के अतिरिक्त पर्यावरण बचाव की दिशा में बहुत ही अधिक ध्यान दिया जाता है।

इस विषय पर गर्वित के संस्थापक अध्यक्ष श्री विपुल लखनवी जी ने कुछ बिंदु पर प्रकाश डाला जिन पर अमल करके हम पर्यावरण बचाव की दिशा में पहल कर सकते हैं। श्री लखनवी के अनुसार वे पिछले 10 वर्षों से सोसाइटी में स्थित अपने रो हाउस में बरसात के दिनों में वॉटर रीसाइकलिंग के द्वारा करीबन 2 लाख लीटर व्यक्तिगत पानी बचाते हैं। इसके लिए अपना व्यक्तिगत धन खर्च कर पर्यावरण को बचाने का प्रयास किया जाता है हालांकि इसमें कोई भी फायदा नहीं होता लेकिन एक पर्यावरणविद् होने ककी संतुष्टि विपुल जी मिलती है।
दूसरा विपुल जी द्वारा अपने घर में निकलने वाले हरे कचरे को यानी जो भाजी इत्यादि का कार्बनिक कचरा होता है उसको अपनी टेरेस पर इकट्ठा कर खाद बनाई जाती है और उसको अपने पौधों में डाला जाता है। घर से प्लास्टिक अथवा रेद्दी निकलती है जो कचरावाला बीनकर बेच देता है।
तीसरा गर्वित के माध्यम से पुराने फर्नीचर को नया कर उसकी टेबल, चेयर, बेंच, मंदिर इत्यादि बनाई जाती है जो जरूरतमंद लोगों को निशुल्क बांटी जाती है।
बची हुई लकड़ी को इकट्ठा कर रख लिया जाता है और होली के समय आसपास की समिति को जलाने के लिए दे दिया जाता है जिसके द्वारा पौधों की कटाई भी नहीं होती है।
गर्वित लोगों को यह सुझाव दिया जिसको की आजकल नेट पर भी वायरल किया जा रहा है।
इन बिंदुओं को सही तरह से समझा जा सकता है।

जैसे नहाने के लिए यदि बाल्टी इस्तेमाल की जाए तो हम लगभग 50% पानी बर्बाद होने से बचा देते हैं।
बहुत से लोग दाढ़ी बनाते समय अथवा ब्रश करते समय नल को खुला छोड़ देते हैं जो कि गलत है इससे जल की बहुत बड़ी बर्बादी होती है।
मुंह धोने के लिए यदि मग में पानी लेकर मुंह धोया जाए सीधे नल से न धोया जाए तो भी 50% पानी की बचत होती है।
कार को भी यदि पाइप के द्वारा न धोकर बाल्टी से धोया जाए तो भी बहुत पानी की बचत होती है।
पेड़ों में पानी यदि बाल्टी से डाला जाए तो भी दो तिहाई पानी की बचत होती है।
ऐसे ही तमाम सुझाव और योजनाओं को तो भारत सरकार ने भी माना है और अपनी तरीके से विभिन्न नाम से लागू भी किया।
श्री लखनवी के अनुसार बूंद बूंद से सागर भरता। अभी गर्वित बाल्यावस्था में है लेकिन समाज के हित हेतु जो कुछ भी राम जी के सेतु में किसी गिलहरी का योगदान की भांति प्रयास तो किया जा रहा है।

विपुल जी के अनुसार:
यह सच है चमन को पुष्प न दे सके हम।
पैर कांटे तो कम कर दिए गुजरे जिधर से हम।।