क्या विश्व युद्ध के खतरे के बीच मोदी का कद और बढ़ गया ?

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  • विपुल लखनवी ब्यूरो प्रमुख पश्चिमी भारत

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई भी देश किसी देश का स्थाई मित्र नहीं होता है। मित्रता के मापदंड अपने-अपने देश के स्वार्थ के अनुरूप निर्धारित होते हैं। यह बात अलग है भारत में देश को छोड़कर लोग अपने परिवार के स्वार्थ के लिए दुश्मनों के साथ दुश्मन देश के साथ समझौता करने को राजी हो जाते हैं।

हमास और इजरायल के बीच का यह युद्ध दिन प्रतिदिन राजनीतिज्ञों और कूटनीतिज्ञों के लिए बहुत बड़े सिर दर्द संकट का कारण बनता जा रहा है। क्योंकि वर्तमान में वे संबंध स्थापित होना आरंभ हो गए हैं जो कभी सोचें नहीं जा सकते थे। इस घटनाक्रम में सबसे पहले हम बात करते हैं सुन्नी बाहुल देश सऊदी अरब की जिसके प्रिंस ने अपने कट्टर दुश्मन ईरान के प्रमुख नेता से फोन कर बात आरंभ की। ज्ञात हो मुस्लिम समुदाय में भी बहुत सारे फिरके होने के अतिरिक्त शिया और सुन्नी का विवाद बहुत गहरा रहता है। जहां एक तरफ ईरान शिया समुदाय का देश है वही इराक, सऊदिया जैसे देश सुन्नी संप्रदाय के हैं। हमास भी सुन्नी संप्रदाय का है लेकिन इनके अंदर भी कई प्रकार के फिरके होते हैं जो एक दूसरे को देखना पसंद नहीं करते हैं। अक्सर एक दूसरे पर हमले करते रहते हैं यह हमले हमने पाकिस्तान में आए दिन देखें हैं और देखते आ रहे हैं। लेकिन जब मुस्लिम समुदाय की बात आती है तो सभी एक हो जाते हैं और गैर मुस्लिम से संघर्ष करने के लिए एकत्र होते रहते हैं।

वर्तमान में रूस के द्वारा दिया गया वक्तव्य कि वह इसराइल पर आतंकवादी हमले की निंदा करता है किंतु फिलिस्तीन देश की स्वतंत्रता की भी बात करता है और साथ ही स्त्रियों और बच्चों को युद्ध से अलग रखने की भी बात करता है। यह सभी जानते हैं रूस का वर्तमान में चीन और ईरान से मधुर संबंध है क्योंकि अमेरिका का हर दुश्मन रूस का मित्र माना जा सकता है। इस तरह का वक्तव्य भारत के द्वारा विश्व का नेतृत्व करने के कारण मोदी के बढ़ते हुए कद के कारण रूस ने दिया है। वही सऊदी अरब सहित कई देशों के राष्ट्र अध्यक्षों द्वारा फोन करने पर भारत ने अपनी नीति को स्पष्ट करते हुए बोला कि इसराइल पर यह हमला आतंकवादी हमला है और भारत कभी भी आतंकवाद का समर्थन नहीं कर सकता। हालांकि भारत ने पिछली सरकारों से विपरीत फिलिस्तीन के अलग राष्ट्र और संप्रभुता की भी बात की लेकिन आतंकवाद का समर्थन नहीं किया। जबकि भारत की पिछली सरकारों ने कभी फिलिस्तीन के अलग राष्ट्र बनने की बात का समर्थन नहीं किया था।

जिस तरीके से इसराइल और हमास के युद्ध में पश्चिमी देश सहित अन्य देशों के कूदने से गंभीर संकट पैदा होने लगे हैं। अमेरिका जैसे देश खुद दिवालिया होने की तरफ बढ़ने लगे हैं क्योंकि उनको इसराइल को सहायता देने के लिए यूक्रेन की सहायता बंद करनी पड़ रही है जो कि रूस के पक्ष में है। वहीं पर शरणार्थियों के लिए भी समस्या पैदा हो गई संयुक्त राष्ट्र में गाजापट्टी में रहने वाले नागरिकों को विभिन्न देशों से शरण देने की अपील की और इजिप्ट के रास्ते से एक शांति मार्ग बनाने की बात की लेकिन इजिप्ट ने इस अपील को स्वीकार नहीं किया जो युद्ध में एक अलग मोड़ दे सकता है।

आश्चर्यजनक तो यह है कि गाजा पट्टी में रहने वाले सुन्नी मुसलमान विश्व के 56 देश जो मुस्लिम धर्म को पूर्णतया मानते हैं अपने वहां शरण देना नहीं चाहते यह बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है? क्योंकि मुस्लिम पहले शिया सुन्नी के नाम पर आपस में झगड़ा करते हैं फिर अपने-अपने संप्रदायों में अलग-अलग फिरको के कारण भी एक दूसरे को मारा करते हैं यह वक्तय तो फिलीस्तीन मुक्ति संगठन के नेता यासर अराफात ने बहुत पहले ही दिया था। जिनको पिछली सरकारों द्वारा अरबों की सहायता दी जाती थी।

आने वाली सप्ताह में यह स्पष्ट हो जाएगा की यह युद्ध क्या विश्व युद्ध की ओर अग्रसर हो गया है? भारत के भी जो मित्र देश है वह किस प्रकार भारत के भी विरूद्ध हो सकते हैं? यह देखना होगा और क्या होगा यह तो भविष्य बताएगा।