दुनिया भर में डेवलप हो रहा है जीएम सरसों, जानिए इस बारे में हर एक बात

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(www.arya-tv.com) ऐसे आसार बन रहे हैं कि भरतीय खेतों में भी जीएम सरसों की फसल लहलहाएगी। दरअसल, सरकार ने जेनेटिकली मोडिफाइड या जीएम सरसों की फसल पर सरकार ने अपना ही पुराना रूख बदलने के संकेत दिए हैं। केंद्र सरकार ने इससे पहले, नवंबर 2022 में कहा था कि जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती पर यथास्थिति रखी जाएगी। अब, कल ही सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने अपने नवंबर 2022 के हलफनामे को वापस लेने की बात कही है।

केंद्र सरकार ने जीएम सरसों पर सुप्रीम कोर्ट में पिछले साल नवंबर में एक हलफनामा या ओरल अंडरटेकिंग दिया था। उसमें कहा गया था कि देश में जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती की दिशा में आगे कदम नहीं उठाया जाएगा। लेकिन अब उस हलफनामे को विड्रॉ करने की इच्छा जतायी है। आइए आपको बताते हैं इस बारे में सब कुछ।

जीएम सरसों पर क्या है लेटेस्ट

एक एनजीओ जीन कैंपेन ने सुप्रीम कोर्ट में जीएम सरसों के बारे में एक याचिका डाली हुई है। उसी पर कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब तलब किया था। इसी मामले में मंगलवार को केंद्र सरकार ने अपना पुराना रूख बदलने का संकेत दिया। केंद्र ने कोर्ट को बताया कि वह नवंबर, 2022 के मौखिक वादे या हलफनामे को वापस लेना चाहती है। पिछले साल दिए गए हलफनामे में कहा था कि वह देश में सरसों की व्यावसायिक खेती की दिशा में आगे कदम नहीं उठाएगी। एनजीओ ने साल 2004 में ही इस मुद्दे पर जनहित याचिका दायर की थी।

दुनिया भर में डेवलप हो रहा है जीएम सरसों

जीएम सरसों की किस्म को दुनिया की कई कंपनियों और प्रयोगशालाओं ने डेवलप किया है। भारत में देखें तो जेनेटिक्स के प्रोफेसर और दिल्ली यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर दीपक पेंटल के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स में साल 2002 में डीएमएच-11 को विकसित किया था। इसे भारतीय सरसों की लोकप्रिय प्रजाति ‘वरुण’ की यूरोपीय सरसों के साथ क्रॉसिंग कराते हुए विकसित किया गया।

भारत में किसने की है फंडिंग

भारत में जीएम सरसों के प्रोजेक्ट की फंडिंग बायोटेक्नॉलजी विभाग और नैशनल डेयरी डेवेलपमेंट बोर्ड ने की है। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (ICAR) की देखरेख में किए गए ट्रायल के मुताबिक वरुण के मुकाबले इसकी पैदावार 28 फीसदी ज्यादा है। मतलब कि जीएम सरसों की यदि खेती की जाती है तो इससे किसानों को फायदा होगा और देश में सरसों तेल की उपलब्धता बढ़ेगी।

कैसे तैयार हुई है जीएम सरसों

पौधों की दो अलग-अलग किस्मों को मिलाकर संकर या हाइब्रिड वेरायटी बनाई जाती है। इसमें बीमारी के कम चांस होते हैं और उत्पादन ज्यादा रहता है। ऐसी क्रॉसिंग से मिलने वाली फर्स्ट जेनरेशन हाइब्रिड वेरायटी की उपज मूल किस्मों से ज्यादा होने का चांस रहता है। हालांकि सरसों के साथ ऐसा करना आसान नहीं था।

इसकी वजह यह है कि इसके फूलों में नर और मादा, दोनों रीप्रोडक्टिव ऑर्गन होते हैं। यानी सरसों का पौधा काफी हद तक खुद ही पोलिनेशन कर लेता है। किसी दूसरे पौधे से परागण की जरूरत नहीं होती। ऐसे में कपास, मक्का या टमाटर की तरह सरसों की हाइब्रिड किस्म तैयार करने का चांस काफी कम हो जाता है।

जीएम सरसों पर रार क्यों

जीएम सरसों को लेकर सामाजिक संगठन, गैर सरकारी संगठन या एनजीओ दो खेमों में बंटे हैं। एक खेमा इसका विरोध कर रहा है जबकि दूसरा खेमा इसके पक्ष में है। एक पक्ष का कहना है कि जीएम सरसों को हरी झंडी देने से भारत की खेती खराब हो जाएगी। वहीं दूसरा पक्ष कहता है कि यह जरूरी है।

विरोध क्यों हो रहा है

पर्यावरण से जुड़े कुछ संगठन जीएम सरसों का विरोध कर रहे हैं। विरोध की पहली वजह जीएम मस्टर्ड में थर्ड ‘बार’ जीन की मौजूदगी है। कहा जा रहा है कि इस कारण जीएम मस्टर्ड के पौधों पर ग्लूफोसिनेट अमोनियम का असर नहीं होता। इससे केमिकल हर्बिसाइड्स का इस्तेमाल बढ़ेगा और मजदूरों के लिए काम के मौके घट जाएंगे। अगर इस हर्बिसाइड का अंधाधुंध उपयोग होने लगा तो पौधों की कई किस्मों को नुकसान हो सकता है। साथ ही उनका कहना है कि जीएम मस्टर्ड के कारण मधुमक्खियों पर बुरा असर पड़ेगा। मधुमक्खियों के शहद बनाने में सरसों के फूल बड़ा रोल निभाते हैं।

इसके समर्थन के पीछे ये हैं तर्क

जीएम सरसों का समर्थन करने वालों का तर्क है कि अभी देश में बीटी कॉटन ही एकमात्र ट्रांसजेनिक फसल है, जिसकी भारत में व्यावसायिक खेती की जा रही है। ऐसा कोई सबूत नहीं है जिसके आधार पर माना जा सके कि इस प्रजाति की पिछले दो दशकों से हो रही खेती का जमीन पर या उस इलाके की संपूर्ण जैव विविधता पर किसी भी तरह का नकारात्मक असर पड़ा है।

बढ़ेगी उपज और घटेगी लागत

इसके समर्थन करने वालों का कहना है कि देश में विकसित ट्रांसजेनिक हाइब्रिड मस्टर्ड (डीएमएच-11) से ऑयल सीड की पैदावार बढ़ने की उम्मीद है। इसे अतिरिक्त पानी, खाद या कीटनाशकों की जरूरत नहीं होती। इसका मतलब यह हुआ कि किसानों को कम खर्च में ही बेहतर फसल मिलने लगेगी। इससे देश में खाद्य तेलों के आयात पर होने वाला खर्च कम करने का लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी।

भारत में खाद्य तेलों की कमी

भारत में इस समय खाद्य तेलों की कमी है। पिछले साल करीब 25 मिलियन टन खाद्य तेलों की खपत हुई थी जबकि यहां की कुल पैदावार करीब 11.16 मिलियन टन की ही है। इसलिए विदशों से पाम, सोयाबीन और सूर्यमुखी आदि के तेल का आयात करना पड़ता है। जीएम सरसों के पैरोकारों का कहना है कि यदि इसे हरी झंडी मिलती है तो खाद्य तेलों के लिए आयात पर निर्भरता काफी हद तक कम हो जाएगी।