वैश्विकी : अब समझदारी दिखाए चीन

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डॉ. दिलीप चौबे
पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच पिछले करीब पांच महीने से अधिक समय से सैनिक तनाव को समाप्त करने या कम करने के लिए आशा की एक किरण दिखाई दे रही है। तनाव और छिटपुट सैन्य संघर्ष के दौरान भी भारत और चीन के बीच सैनिक और कूटनीतिक स्तर पर संपर्क और संवाद बना रहा। इस वार्ता प्रक्रिया का सबसे महत्त्वपूर्ण मुकाम विदेश मंत्री एस. जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच मास्को में आयोजित बैठक के बाद एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया जिसमें समस्या से निपटने के लिए पांच सूत्रीय फामरूला (पंचशील) सामने आया है। भारत-चीन संबंधों के इतिहास में पिछले पांच-छह दशकों से पंचशील का बार-बार उल्लेख होता रहा है। इन सिद्धांतों का बार-बार उल्लंघन भी देखा गया है, जिससे इस आशंका को बल मिलता है कि मास्को वार्ता भी पहले के ऐसे ही अन्य प्रयासों की तरह नाकाम हो सकती है।

संयुक्त वक्तव्य में दोनों देशों ने सुरक्षा बलों को सीमा से शीघ्र पीछे हटाने के प्रयासों पर सहमति जताई है। इसमें यह भी कहा गया है कि दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच बनी सहमति और आपसी मतभेद को विवाद में तब्दील नहीं होने दिया जाएगा। मौजूदा विवाद को सुलझाने के लिए भारत और चीन के बीच पूर्व में किए गए समझौतों का पालन होना चाहिए तथा दोनों देशों के जवानों को एक-दूसरे से उचित दूरी बनाए रखनी चाहिए और सीमा पर तैनात दोनों देशों की सेनाओं को बातचीत जारी रखनी चाहिए। हालांकि संयुक्त वक्तव्य में अग्रिम सैनिक टुकडिय़ों को पीछे हटने की बात का उल्लेख किया गया है लेकिन भारत की लगातार की जा रही इस मांग का कोई उल्लेख नहीं है कि पूर्वी लद्दाख में अप्रैल-मई 2020 की स्थिति को बहाल किया जाए। विदेश मंत्री जयशंकर ने वार्ता के दौरान इस बात पर खासा जोर दिया था। इसी आधार पर भारत-चीन के संबंधों के जानकारों का मानना है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य तनाव शीघ्र खत्म नहीं होने जा रहा है।

संयुक्त वक्तव्य बहुत संक्षिप्त है तथा स्पष्ट है कि विदेश मंत्रियों की लंबी चली वार्ता में मौजूदा विवाद के विभिन्न पहलुओं पर व्यापक सिलसिलेवार विचार-विमर्श हुआ होगा। विदेश मंत्रियों की बैठक के पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह दे मास्को में ही चीन के रक्षा मंत्री के साथ लंबी बातचीत की थी। इन दोनों वार्ताओं में द्विपक्षीय संबंधों के दोनों पहलू विदेश और रक्षा क्षेत्र पर गहन विचार-विमर्श हुआ होगा।

मौजूदा विवाद में पर्दे के पीछे से रूस की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण रही है। भारत, चीन और रूस इन तीनों देशों के आपसी संबंधों का समीकरण ऐसा है कि रूस केंद्रीय भूमिका में आ गया है। भारत और चीन में से कोई भी देश रूस की उपेक्षा नहीं कर सकता है। रूस की उपेक्षा करना भारत के लिए प्राय: असंभव है। चीन भी अमेरिका के साथ विभिन्न मोचरे पर ट्रंप प्रशासन की ओर से पेश की जा रही चुनौतियों का सामना कर रहा है। जाहिर है चीन भी रूस को नजरअंदाज नहीं कर सकता। हालांकि द्विपक्षीय विवाद में तीसरे देश की भूमिका सीमित होती है। खासकर तब जब संघषर्रत पक्ष बड़ेैऔर मजबूत देश हों। फिर भी रूस यह तो सुनिश्चित कर सकता है कि भारत और चीन के बीच युद्ध की नौबत न आए। युद्ध अगर होता भी है तो यह बहुत सीमित और अल्पकालिक हो।

मास्को बैठक से यह संकेत मिलता है कि भारत और चीन के शीर्ष नेताओं के बीच शिखर वार्ता संभव है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग महाबलीपुरम में अनौपचारिक शिखर वार्ता कर चुके हैं। बावजूूद इसके पूर्वी लद्दाख का संकट सामने आ खड़ा हुआ। दोनों देशों के लिए लद्दाख में जाड़े का मौसम किसी सैनिक चुनौती से अधिक गंभीर है। कुछ ही हफ्ते बाद लद्दाख में तापमान शून्य के नीचे आ जाएगा। वहां तापमान शून्य से 20-25 डिग्री तक नीचे आ सकता है। हर जाड़े के मौसम में यह स्थिति दोनों देशों के लिए जान और माल का गंभीर संकट पैदा करता है। भारत के लिए तो यह दूसरे सियाचीन जैसी स्थिति होगी। कूटनीतिक सिद्धांतों से अलग हटकर भी सामान्य ज्ञान यह सुझाता है कि पूरे लद्दाख में हालात को सामान्य बनाए रखा जाए। इस दिशा में दोनों देशों की ओर से अभी तक कोई गंभीर प्रयास नहीं हुए हैं। बेहतर होगा कि भीषण शीत से पहले दोनों देशों की सेनाएं अपनी पुरानी चौकियों पर लौट आएं।