दीपावली केवल दीपक और पटाखे का त्यौहार नहीं यह अंतर्मन की यात्रा है!

Lucknow National
  • विपुल लखनवी ब्यूरो प्रमुख पश्चिमी भारत

दीपावली के विषय में अनेक लोगों ने अलग अलग तरीके की व्याख्या देकर इसको विविध रुप में समझाया है। कहीं पर राम की रावण पर विजय के पश्चात अयोध्या में वापस आने की कथा कर दी, कहीं अंधकार पर प्रकाश की विजय, कहीं पर अंतर्मन में प्रकाश ही उत्पत्ति के लिए कहीं मारवाड़ियों के लिए विशेष नव वर्ष तो कहीं पर दीपक की अवली यानी दीपावली समझाया गया है।

यदि हम गहराई में जाकर देखे तो हमे मिलता है सनातन का मूल रूप है मनुष्य आनंद को प्राप्त करें और आनंद ही मनुष्य का मूल रूप है। जहां पर अस्थाई आनंद की सुख की बात नहीं की जाती है अपितु स्थाई शांति की आनंद की बात की जाती है। और इसी सिद्धांत को लेकर सनातन में उत्सव और पर्व की आधारशिला रखी गई। जीवन एक उत्सव है इसकी अभिव्यक्ति किस प्रकार की जाए इसके लिए पर्यावरण का बदलते मौसम का लोक आचार विहार का और सामाजिक परिवेश का आयाम और आधार सम्मिलित किया गया है।

आप यह सोचें कि इतने सारे उत्सव और पर्व इन सबका क्रम किस प्रकार निर्धारित होता है यह बहुत अधिक शोध का विषय है। हर उत्सव मौसम को और उसके बदलाव को ध्यान में रखकर पर्यावरण के संरक्षण को धर्म के साथ जोड़कर पर्व का निर्माण हो जाता है।

बाढ़ की भयानक विभीषिका में अनेकों जीवों की जान चली जाती है आज विज्ञान के माध्यम से इसको कुछ सीमित किया है लेकिन रोका नहीं जा सका। इसलिए बरसात के पूर्व अथवा हल्की फुल्की बारिश के मध्य गुरु पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है जहां पर साधु संत चतुर्मास करते हैं मतलब एक ही जगह एकत्र होकर ज्ञान का प्रचार और प्रसार करते हैं त्यौहार के रूप में सभी मानव उनकी सेवा करते हैं और लाभ अर्जित करते हैं।

अब बारिश का प्रकोप बंद हो गया इस कारण जिन जीवों की बाढ़ की विभीषिका के कारण मृत्यु हुई है तो मानवीय बस्ती में उनकी सफाई कौन करेगा। इसलिए कौंओं के सृजन में शक्तिशाली कौवे पैदा हों जो वातावरण साफ करें हम पितृ पक्ष में उनको पौष्टिक आहार देर मजबूत बनाते हैं।

इसके पश्चात नवजीवन का सृजन होता है यानि श्री गणेश होता है अतः हम जन्माष्टमी का उत्सव मनाते हैं जहां पर कृष्ण यानी ब्रह्म का जन्म यानी सृष्टि का जन्म आरंभ हो। इसके लिए हम गणों के अधिपति गणपति का पूजन विभिन्न स्थानों पर आरंभ करते हैं। इसके बाद शक्ति पूजन क्योंकि हमें नवनिर्माण के लिए शक्ति चाहिए हम मां जगदंबे की यानी शक्तिरूपा की आराधना करते हैं। क्योंकि सृष्टि के संचालन के लिए हमें शक्ति की बेहद आवश्यकता होती है। लेकिन इसके साथ हमारी अंदर सत्गुणों का का प्रादुर्भाव होना चाहिए यानी दुष्ट भाव का नष्ट भी होना आवश्यक है जो काम मां शक्ति करती है।

अब दीपावली का उत्सव हमारे जीवन में प्रवेश करता है। आपने अभी तक देखा हमने मूर्ति बनानेवाले कलाकार यानी कुंभार विविध वस्त्रों को सीने वाली यानी दर्जी इत्यादि विभिन्न समुदाय को पर्व के माध्यम से जोड़कर जो आय किसान वर्ग को प्राप्त हुई उसको आपस में बांटने का प्रयास किया इन उत्सव के द्वारा। वही कमतर अनुभव के कुम्हार साधारण दिए बनाकर कुछ धन प्राप्त कर अपनी आजीविका को आगे बढ़ाने का प्रयास करते हैं जो दीपावली के उत्सव के द्वारा प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त हम विभिन्न विधाओंवाले कलाकार जैसे हलवाई प्रकाश उत्पन्न करने वाले वर्ग इत्यादि को भी अपनी आय का कुछ हिस्सा प्रदान कर देते हैं।

दीपावली के साथ ठंड आरम्भ हो जाती है । तब बारी आती है विविध प्रकार के भेड़ जीव इत्यादि का पालन करने वाले लोग अपने गर्म वस्त्र का व्यापार कर धनराशि एकत्र करते हैं। इसी के साथ नौ पक्षों के लिए कोई और त्योहार नहीं आता है जिसमें कि हम पर्व मना सके उत्सव मना सके। सब अपनी खेती बारी जैसी व्यवसाय में लिप्त हो जाते हैं। अब सब बसंत श्रतु के आगमन के साथ होलीकोत्सव का पर्व मनाएंगे जहां पर हम शीतकाल को विदाई कर नवजीवन के साथ शरद ऋतु की विदाई करेंगे और नववर्ष का स्वागत करेंगे।

अब फिर विभिन्न त्योहारों की अलग तरह से व्याख्या की जा सकती है। लेकिन कुल मिलाकर सनातन श्रेष्ठता के साथ जीवन व्यतीत करना हमको सिखाता है। उत्सव और पर्व के माध्यम से पर्यावरण के संरक्षण को हमारे साथ एक धर्म के रूप में जुड़कर रहना सिखाता है। यही सनातन की विशेषता है जो अखंड और अमर है इसकी लौ धीमी जरूर हो सकती है किंतु कभी बुझ नही सकती।