महाराष्ट्र में आधी रात को हुई मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर चर्चा

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(www.arya-tv.com) महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक तूफान अभी तक थमा नहीं है। अजित पवार गुट के सरकार में शामिल होने के बाद एक लड़ाई एनसीपी में छिड़ी है, तो दूसरी जंग सरकार में भी चल रही है। ये लड़ाई मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर है, अभी तक अजित पवार गुट के मंत्रियों को कोई विभाग नहीं मिला है। इसी को लेकर बीती रात एकनाथ शिंदे, अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस की एक अहम बैठक हुई है।

जानकारी के मुताबिक, सोमवार देर रात को मुंबई में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के आवास पर यह बैठक हुई, जिसमें मंत्रिमंडल विस्तार और विभागों के बारे में चर्चा हुई। ये मीटिंग रात को 12 बजे शुरू हुई, करीब डेढ़ घंटे बाद अजित पवार यहां से अपने बंगले पर गए। लेकिन देवेंद्र फडणवीस इसके आधे घंटे बाद तक शिंदे के घर ही रहे।

बता दें कि अजित पवार और उनके समर्थक विधायकों को सरकार में शामिल हुए करीब एक हफ्ता हो गया है। लेकिन अभी यह तय नहीं हुआ है कि किसको कौन-सा मंत्रालय मिलेगा। क्योंकि 17 जुलाई से विधानसभा का मॉनसून सत्र शुरू हो रहा है, इसलिए यह माना जा रहा है कि इससे पहले ही मंत्रिमंडल विस्तार हो सकता है।

पहले ही ये कहा जा रहा था कि अजित पवार गुट के सरकार में आने की वजह से एकनाथ शिंदे गुट नाराज है। ऐसा इसलिए क्योंकि बड़े मंत्रालय एनसीपी के खाते में जा सकते हैं, जिसका शिंदे गुट के विधायकों ने विरोध किया है। राज्य में पिछले करीब एक साल से मंत्रिमंडल विस्तार नहीं हुआ है, शिंदे गुट के विधायकों को अहम मंत्रालय मिलने की उम्मीद थी।

लेकिन अजित पवार के उपमुख्यमंत्री बनने और उनके 8 समर्थकों के मंत्री बनने के बाद से टेंशन बढ़ी है। हालांकि सरकार के तीनों गुटों की ओर से कहा जा रहा है कि सबकुछ ठीक है और मंत्रालयों को लेकर किसी भी तरह की गड़बड़ नहीं हो रही है।

अभी तक एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस की जोड़ी राज्य की सरकार चला रही थी, लेकिन बीते दिनों अजित पवार ने इसमें एंट्री मारी। अजित पवार सरकार में शामिल हुए, उन्होंने करीब 40 विधायकों के समर्थन की बात कही। हालांकि, उनके साथ 8 विधायक मंत्रिमंडल में भी शामिल हुए।

अब राज्य में एक सीएम और दो डिप्टी सीएम हैं, अजित पवार के इधर आने से एनसीपी दो गुटों में बंट गई है। अजित पवार गुट और शरद पवार गुट में पार्टी पर कब्जा जमाने की जंग चल रही है। अगर अजित पवार दो तिहाई से अधिक विधायकों को अपने साथ रख पाते हैं, तो पार्टी पर उनका कब्जा हो सकता है।