- विपुल लखनवी ब्यूरो प्रमुख, पश्चिमी भारत
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी में कुछ ऐसे जादुई करिश्माई नेता भी है जो मात्र एक मुलाकात में सामने वाले को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। ऐसे ही एक व्यक्तित्व के धनी भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हैं।
विगत दिनों मैं दिल्ली में किसी काम से गया था और वहां पर मेरी मुलाकात लखनऊ के निवासी मेरे पुराने मित्र तेजस्वी प्रसाद गिरि गोस्वामी से हो गई। श्री गोस्वामी से मेरी मुलाकात 2010 में एच.ए.एल. नासिक के एक राजभाषा कार्यक्रम में हुई थी। जहां पर मुझे मुख्य अतिथि होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उसके पश्चात गोस्वामी जी से घनिष्ठता बढ़ती गई। वर्तमान में हम दोनों सेवानिवृत्त हो चुके हैं और समाज की सेवा में सनातन की सेवा में लगे रहते हैं। दिल्ली में गोस्वामी जी ने बोला कि मुझे भारत के रक्षा मंत्री माननीय राजनाथ सिंह जी से मुलाकात करनी है चलिए आपको भी मिलाता हूं।
राजनाथ सिंह जी के बंगले पर जाकर यह मालूम हुआ कि उनके हृदय में लखनऊ वालों के लिए विशेष स्नेह और स्थान है। यह बेहद सुखद अनुभव था क्योंकि भारत में अधिकतर राजनीतिक नेता अपने क्षेत्र में सिर्फ और सिर्फ चुनाव के वक्त पर वोट बटोरने के लिए जाते हैं, बाकी समय अपने क्षेत्र की ओर देखते तक नहीं मिलना तो डर रहा। लेकिन राजनाथ सिंह जी के हृदय में लखनऊ निवासियों का जो स्थान देखने को मिला वह प्रशंसनीय है। यद्यपि मैं पहली बार मिला था लेकिन बड़ी अंतरंगता से बातचीत हुई। जब मैं कार्यालय के अंदर गया तो आध्यात्मिक होने के कारण मैं लोगों का औरा यानी तेजपुंज भी देख सकता हूं। उनके चेहरे के चारों तरफ ऊर्जा का सघन बादल दिखाई दिया। जिस कारण मैं यह लेख लिखने को बाध्य हो गया।
मैं बहुत नेताओं से मिला हूं लेकिन जो ऊर्जा का बादल यानी औरा राजनाथ सिंह जी के चेहरे के चारों तरफ था, वैसा किसी अन्य नेता के चेहरे पर नहीं दिख पाया। हां मोदी जी के चेहरे पर जरूर दिखता है। काफी कुछ स्वर्गीय मनोहर पर्णनिकर के चेहरे पर भी दिखता था।
हालांकि जाने के लिए सबसे पहले स्कैन के साथ और पहचान के वेरिफिकेशन के पश्चात एक प्रतीक्षा रूम में गए। वहां से उठकर फिर दूसरे रूम में। इसके पश्चात तीसरे प्रतीक्षा रूम में बैठे। लगभग एक घंटा प्रतीक्षा करने के बाद राजनाथ सिंह जी से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। कारण यह था उस दिन वर्किंग डे था जिस कारण संसद भी चल रही थी और राजनाथ सिंह जी संसद में उत्तर देने के लिए प्रश्नों की तैयारी कर रहे थे। लेकिन लखनऊ वालों को वह कभी वापस नहीं करते इस कारण मेरे साथ गोस्वामी जी भी लखनऊ के होने के कारण अंदर जा सके।
लखनऊ के विकास और लखनऊ निवासियों के लिए उनकी वार्ता में उनकी उत्सुकता और प्रेम काबिले तारीफ था। लगभग 10 मिनट की मुलाकात के पश्चात मैं वापस आ गया। मुझे इस बात का अफसोस रहा कि मैं कोई भी अपनी लिखी पुस्तक कोई भी काव्य संग्रह अथवा भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र द्वारा प्रकाशित हिंदी का एकमात्र जरनल जिसका मैं 14 साल तक संपादक रहा। उसकी एक भी प्रति भेंट करने के लिए नहीं ले जा सका। भूल गया। लेकिन चलते समय अगली मुलाकात में उनकी प्रतियां भेंट करने का आश्वासन लेकर बंगले के बाहर निकला।
अंत में मैं सोचता रहा कि काश भारत के और भी जनप्रतिनिधि अपने चुनावी क्षेत्र के विषय में इतनी चिंता करें तो हमारा भारत और तेजी से विकास की ओर अवश्य अग्रसर होगा। क्या हमारे पाठकों को भी वह अनुभव होता है जो मुझे हुआ। कृपया अपने अनुभव से उत्तर देने का प्रयास करें। लखनऊ को एक अद्भुत नेता प्राप्त हुआ है लखनऊ निवासियों को विशेष बधाई।