उम्मीदों की रूसी वैक्सीन

Health /Sanitation National

ऐसे वक्त में सरकार की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है जब देश में कोरोना संकट की स्थिति विकट होती जा रही है। सोमवार को जारी आंकड़ों में नब्बे हजार से अधिक लोगों के संक्रमित होने और मृतकों की संख्या एक हजार से अधिक होने की बात सामने आई। भारत में कुल संक्रमितों का आंकड़ा 42 लाख पार कर गया है और इस तरह भारत संक्रमितों के लिहाज से दुनिया में दूसरे नंबर पर आ गया है। कुल मृतकों का आंकड़ा भी 71 हजार पार कर कर चुका है।

ऐसी स्थिति में वैक्सीन को लेकर चिंता बढऩा स्वाभाविक है। दुनियाभर के वैज्ञानिक वैक्सीन तैयार करने में जुटे हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन की पहले दो चरणों की कामयाबी ने इस स्पर्धा को बढ़ाया है। भारत में पुणे का सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से मिलकर कोविशील्ड वैक्सीन का तीसरे चरण का ट्रायल कर रहा है। ट्रायल पूरा होने तथा सत्यापन के बाद ब्रिटिश ड्रग कंपनी एस्ट्राजेनेका के साथ?मिलकर सीरम इंस्टीट्यूट वैक्सीन का उत्पादन करेगा।

इसके अलावा हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक की कोवक्िसन और अहमदाबाद की जाइडस कैडिला की जायकोव-डी वैक्सीन का भी दूसरे चरण का ट्रायल चल रहा है। लेकिन इस दौड़ में बाजी मारने वाली रूसी वैक्सीन स्पुतनिक-वी ने भारत समेत पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। दरअसल, इस अनजानी महामारी का अंतिम विकल्प वैक्सीन ही माना जा रहा है। भारत भी इस मुहिम में भागीदारी का इच्छुक है। अब भारत की मांग पर कोविड वैक्सीन स्पूतनिक-वी से जुड़ा व्यापक डेटा भारतीय अधिकारियों से साझा किया गया है, जिससे यह तय हो सके कि यह वैक्सीन कितनी असरदार और सुरक्षित होगी।

भारत ने मास्को स्थित गेमालेया रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी से यह डाटा मांगा था। दरअसल, पहले और दूसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल में वैक्सीन के उत्साहवर्धक ढंग से इम्यूनिटी बढ़ाने के दावे किये गए। बहुचर्चित मेडिकल जर्नल लैंसेट में ट्रायल के डेटा छपने और सकारात्मक प्रतिक्रिया के बाद रूसी वैज्ञानिक उत्साहित हैं।

दरअसल, तभी भारत रूसी वैक्सीन को लेकर गंभीरता दिखा रहा है। भारत चाहता है कि तीसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल देश में कराये जायें। लेकिन सवाल है कि क्या वाकई रूसी वैक्सीन भरोसेमंद है? रूसी वैज्ञानिक द्वारा पहली बार सार्वजनिक की गई रिपोर्ट में बेहतर इम्यून रेस्पॉन्स का दावा किया गया है। मेडिकल जर्नल दि लैंसेट ने पुष्टि की है कि ट्रायल में भाग लेने वाले लोगों में एंटीबॉडी विकसित हुई है तथा कोई बड़ा साइड इफेक्ट भी सामने नहीं आया है।

दरअसल, वैक्सीन विकसित करने की पहली रूसी दावेदारी पर पश्चिमी देशों में सवाल उठे थे। कहा जा रहा था कि ट्रायल में भाग लेने वाला समूह बहुत छोटा था और रूस ने कोई डेटा भी सार्वजनिक नहीं किया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी किसी डेटा के न मिलने की बात कही थी। साथ ही जल्दबाजी में रूस सरकार द्वारा लाइसेंस देने की आलोचना की जा रही थी। कहा जा रहा था कि रूस कुछ जरूरी चरणों को पूरा किये बिना आगे बढ़ रहा है। लेकिन अब लैंसेट की रिपोर्ट को आलोचकों का मुंह बंद करने वाला बताया जा रहा है। इस वैक्सीन के दावे को लेकर रूसी राष्ट्रपति इतने आश्वस्त नजर आ रहे थे कि उन्होंने अपनी बेटी को स्पूतनिक-वी का टीका देने की बात कही। दरअसल, रूस इस वैक्सीन को वर्चस्व की लड़ाई के रूप में भी इस्तेमाल कर रहा है।

स्पूतनिक नाम भी इसी मकसद से दिया गया। रूस ने स्पूतनिक नामक पहला उपग्रह अंतरिक्ष में भेजकर ही अमेरिका को इस क्षेत्र में शिकस्त दी थी। बहरहाल, अभी वैक्सीन को लेकर और अध्ययन की जरूरत है कि यह कितनी सुरक्षित है और कितने समय तक कोविड-19 से लडऩे का सुरक्षा कवच उपलब्ध कराती है। अब रूस की मंशा है कि तीसरे चरण में विभिन्न आयु वर्ग और क्षेत्रों के चालीस हजार लोगों को शामिल किया जायेगा। बहरहाल, वैक्सीन को लंबा सफर तय करना है और अगले साल की शुरुआत तक ही शेष दुनिया को वैक्सीन मिल पायेगी।