बदलना है तो आईना बदलिये

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(www.arya-tv.com) आईना बदलने की पुरानी आदत है मेरी। जरा भी ऊक-चूक शक्ल दिखाई दी और मैं चकनाचूर कर देता हूं आईने को। कल जिस आईने को मैंने तोड़ा है, वह मेरी मूंछों में असंतुलन बता रहा था। जबकि पत्नी का कहना था कि दोष आईने का नहीं, मेरी नजर का है।

मैंने शेव करते समय रेजर को सही नहीं साधा, इसलिए मूंछों की दोनों साइड संतुलित नहीं हैं। पत्नी को पता है दोष आईने पर ही आयेगा, इसलिए गाह-बगाहे वह मुझे टोककर वास्तविकता से अवगत कराती रहती है, जबकि मेरा मानना है कि आईना ही गलत होगा तो सारे ऐब सामने आ जाते हैं।

ब्रांडेड आईना तक मेरे मामले में विफल रहा है और मैं लगातार आईने बदलता रहा हूं। तीन साल के छोटे से पीरियड में पंद्रह आईने बदलने का नायाब रिकॉर्ड कायम किया है मैंने। आठवें आईने की होनी कैसे अनहोनी में बदल गई, इसकी बात जानिये।

इधर मैं आठवां आईना लाया और उधर मैंने शक्ल देखी तो चेहरा सलवटों से भरा और डरावना दिखाई दिया। मेरा आईना मुझे ही डराये, यह मुझे कतई पसंद नहीं है। मैंने आईना कूड़ेदान के हवाले किया तो पत्नी ने फिर समझाया-‘आईना झूठ नहीं बोलता। आपकी उम्र ने चेहरे पर सलवटें भर दी हैं और सात दिन से शेव न बना पाने से चेहरे पर डरावनापन आ गया है। इसलिए आईने मत तोड़ो।

आईना जैसी शक्ल है, वही तो दिखायेगा। आप आये दिन आईने बदलते रहते हो, यह कोई समाधान नहीं है। खोट किसमें नहीं है। अपनी खोट को नजरअंदाज कर आईने तोड़ते जाना बेवकूफी है। मैंने पत्नी की बात अनसुनी कर दी और ले आया नया आईना।

मेरे एक शुभचिंतक ने तो यहां तक सलाह दी है कि जब मैं आईने आये दिन तोड़ता-बदलता हूं तो आईना रखना ही क्यों न बंद कर दूं  पर मुझे आईना रखना और उसमें अपनी शक्ल देखना इतना जबरदस्त पसन्द है कि मैं किसी भी कीमत पर इनका परित्याग नहीं कर सकता।

बचपन से जो आदत पड़ जाये, वह उम्र के किस पड़ाव पर छूटती है-मैं नहीं जानता। मैं तो इतना-सा जानता हूं कि आईना झूठ बोले तो उसे तोड़ दो या बदल दो, लेकिन आईना अपने पास रखो अवश्य। आत्ममुग्ध होने का इससे बेहतर साधन और है भी क्या  मुझे अपनी शक्ल से बेहद मुहब्बत है। मैं आईना में अपनी शक्ल अपने मनपसंद ढंग से देखता हूं और खुश रहता हूं। जिस दिन आईना मुझे चिढ़ाता है, मैं तत्काल आईना बदल देता हूं और फिर आत्ममुग्ध होकर अपने आपको निहारता रहता हूं।

कौन कहता है आईने झूठ नहीं बोलते! आईने झूठ बोलते हैं, तभी तो बदलता हूं मैं आईने! मैं फुर्सत में हूं, मेरे पास पर्याप्त समय है और मैं अपने आप से प्यार करता हूं, इसलिए मुझे हरवक्त चाहिए आईने। मैं अपने आपको नहीं बदलता, बदलता हूं तो केवल आईने बदलता हूं। दस-पंद्रह रुपये के आईने बदलने में फर्क भी क्या पड़ता है  सूरत और सीरत को मत बदलिये, बदलना है तो आईने बदलिये। यही शुभ है।