(www.arya-tv.com) चांद पर कदम रखने से हमारा चंद्रयान बस थोड़ी दूरी पर है। घड़ी की सुई के हिसाब से बात करेंगे तो अब कुछ घंटे ही शेष हैं। तय समय शाम 6 बजकर 4 मिनट पर लैंडर विक्रम चंद्रमा की धरती पर उतरते ही भारत इतिहास रच देगा। देश ही नहीं पूरी दुनिया की निगाहें इस खास पल पर नजर गड़ाएं बैठी हैं। इससे पहले चंद्रयान-3 से जुड़ी एक रोचक कहानी बताना जरूरी है। मिशन का नाम चंद्रयान नहीं था।
इसकी उत्पत्ति और नामकरण के बारे में एक दिलचस्प कहानी सामने आई है। चंद्रयान का नाम पहले चंद्रयान नहीं बल्कि सोमयान था। साल 1999 में अटल सरकार के कार्यकाल में इसका नया नामकरण किया गया था। नाम बदलने के पीछे की वजह क्या थी वह जानते हैं।
चंद्रयान नहीं सोमयान था नाम
यह साल था 1999, तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार थी। उनकी सरकार ने चंद्रयान मिशन को मंजूरी दी थी और वो भी इसका नाम बदलकर। अटल बिहारी वाजपेई ने इसरो के वैज्ञानिकों का सुझाया नाम सोमयान को बदलकर चंद्रयान करने को कहा। नामकरण में इस बदलाव ने अंतरिक्ष विभाग से जुड़े वैज्ञानिकों का भी ध्यान खींचा था।
मिशन का पहला नाम सोमयान एक संस्कृत कविता से प्रभावित था। कविता की कुछ लाइनों का अनुवाद इस तरह से था- हे चंद्रमा! हम आपकी समझ को अपनी बुद्धि से प्राप्त करें। ज्ञान से हमारे मार्ग को रोशन करें।
सोमयान था तो क्यों अटल ने बदला नाम
डक्कन क्रॉनिकल ने अपनी रिपोर्ट में नाम बदलने के फैसले के बारे में बताया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ। के. कस्तूरीरंगन ने उस दिन को याद करते हुए बताया कि वाजपेयी ने कहा कि मिशन को चंद्रयान कहा जाना चाहिए, न कि सोमयान। क्योंकि देश एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा है।
अभी हम चांद पर कई तरह की खोज के लिए अपने मिशन को भेजते रहेंगे। कस्तूरीरंगन मई 1999 में पोखरण II के पहले वर्ष के उपलक्ष्य में नई दिल्ली में प्रस्तुतियों के लिए आमंत्रित प्रमुख मेहमानों में से एक थे। समाचार वेबसाइट से बात करते हुए, उन्होंने कहा, ‘मिशन की योजना चार साल में तैयार की गई थी, इसके बाद इसके एग्जक्यूशन के लिए 4 साल और लग गए।’