मस्तिष्क की स्वच्छता से जीवन में उजास

Health /Sanitation

दीवाली के अवसर पर घरों की साफ-सफाई की जाती है। इस दौरान रद्दी जैसे सामान को घर से बाहर कर दिया जाता है लेकिन अगले साल फिर वही होता है कि दोबारा से रद्दी हमारे घरों में अपना स्थान बना लेती है। आखिर ऐसा क्यों हो गया है कि रद्दी को जमा करने की हमारी आदत सी बन गई है। इस संबंध में साइकोलॉजी की प्रोफेसर रैंडी ओ फॉरेस्ट कहती हैं, ‘हम कई कारणों से पुराना सामान नहीं छोड़ पाते। कुछ से हमारी भावनाएं जुड़ी होती हैं। कभी लगता है कि वे आगे काम आ जाएंगी। बाद में सामान रद्दी हो जाता है।

ऐसा केवल घर के सामान के साथ ही नहीं होता, बल्कि हमारे मस्तिष्क के अंदर भी होता है। हम घर की रद्दी को तो फिर भी दीवाली आने पर एक बार साफ कर देते हैं लेकिन मन के अंदर जमा रद्दी को तो साफ करने का नाम ही नहीं लेते। कम्प्यूटर में गीगो प्रोग्रामिंग होती है। इसका अर्थ होता है, ‘गारबेज इन, गारबेज आउट। अर्थात अगर इनपुट गलत या खराब होगी तो परिणाम भी गलत और खराब ही होंगे।

हम कम्प्यूटर में गलत प्रोग्राम डालकर उससे सही जवाब की इच्छा करेंगे तो वह मूर्खता के अतिरिक्त कुछ नहीं है। इसी तरह यदि हम अपने घर में भी बेकार के सामान का ढेर लगाते जाएंगे तो उससे हमें ऊर्जा एवं सक्रियता के स्थान पर बोझिलता ही मिलेगी। यही बात मन के घर यानी कि मस्तिष्क के साथ है। इस बात पर गौर करने की आवश्यकता है कि दीवाली के अवसर पर जब हम घर से रद्दी एवं अनावश्यक सामान को बाहर कर देते हैं तो घर के अंदर नवीनता एवं खिले-खिले घर का बोध होता है। सोचिए यदि हम अपने अंतर्मन से भी रद्दी बाहर कर दें तो फिर जिस सुख की अनुभूति होगी वह अनुपम होगी।

मन के अंदर रद्दी प्रतिशोध, ईर्ष्या, बेईमानी, जुगुप्सा, प्रतिस्पर्धा के कारण उत्पन्न होती है। हमें लगता है कि हम ऐसा करके दूसरे को परेशान एवं स्वयं को संतुष्ट कर रहे हैं जबकि होता इसके विपरीत है क्योंकि कई बार दूसरे व्यक्ति को तो इस बात का आभास ही नहीं होता कि हमारे अंतर्मन में उसके प्रति क्या चल रहा है? ऐसे में वह व्यक्ति तो सामान्य रहता है लेकिन हम असामान्य बनते जाते हैं।

वहीं यदि हम अपने मन में रद्दी जमा नहीं करते हैं और लोगों की आलोचनाओं को सुनकर उन्हें मन के कोने में इक लगातार अपने काम पर फोकस करते रहते हैं तो फिर लाख मुसीबतें और बाधाएं भी हमारी ऊर्जा और आत्मविश्वास को कम नहीं कर पातीं।

मेरी के ऐश टेक्सास के हॉट वेल्स में जन्मी थी। किशोरावस्था से ही उनका ध्यान व्यवसाय की ओर मुड़ गया था। अनुभव ग्रहण करने के लिए उन्होंने स्टेनली होम प्रोडक्ट्स नामक कम्पनी में काम करना आरंभ कर दिया। यहां पर उन्हें अधिक सक्रिय, मेहनती होने पर भी महिला होने के कारण नजऱअंदाज कर दिया जाता था।

पुरुष उन्हें बात-बात में प्रताडि़त करते थे। ऐश को लोगों की ऐसी बातें सुनकर तकलीफ तो होती थी लेकिन वे उनकी तकलीफों को अपने मस्तिष्क में बिल्कुल स्थान नहीं देती थी। एक दिन कम्पनी ने उनके जूनियर सहयोगी पुरुष को जिसे उन्होंने ही ट्रेनिंग दी थी, उसका सुपरवाइजर बना दिया और उन्हें मात्र इसलिए प्रमोशन नहीं दिया क्योंकि वह एक महिला थी।

इस पर लोगों ने उनका बहुत मज़ाक उड़ाया। उन्होंने सोचा कि मैं अपने साफ सुथरे मस्तिष्क से ऐसी दिशा बनाऊंगी कि सदियों तक मेरा उदाहरण दिया जाता रहेेगा। इसके बाद उन्होंने एक ऐसी ‘ड्रीम कम्पनी बनाने की सोची जो महिलाओं के लिए आदर्श हो। उन्होंने अपनी सारी जमा पूंजी लेकर कॉस्मेटिक्स का कारोबार करने का निश्चय कर लिया।

दुर्भाग्य से कम्पनी के खुलने से एक महीना पहले कानूनी और वित्तीय तौर पर मदद कर रहे उनके पति की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई। सभी ने उन्हें सुझाव दिया कि अब वह अपनी कम्पनी बनाने का विचार छोड़ और कहीं नौकरी कर लें। लेकिन ऐश ने लोगों के मानसिक विकारों की रद्दी को अपने मस्तिष्क में जगह नहीं दी।

उन्होंने 13 सितम्बर, 1963 को डलास में मेरी के कॉस्मेटिक्स की शुरुआत की। पहले चार महीने के भीतर उनकी कम्पनी ने 34,000 डॉलर की कीमत के उत्पादों की बिक्री की। एक साल के भीतर बिक्री 8,00,000 डॉलर तक पहुंच गई। अब उनकी सेल्स टीम में तीन हजार कंसलटेंट शामिल थे। ऐश अच्छा प्रदर्शन करने वाले कंसलटेंट को गहने और महंगी कारों के तोहफे देती थी।

2011 में मेरी के सीधी बिक्री करने वाली दुनिया की छठी सबसे बड़ी कम्पनी बन गई। फॉर्चून पत्रिका ने इस कम्पनी को अमेरिका में काम करने के लिए 100 सबसे अच्छी कम्पनियों में तीन बार शामिल किया। इस तरह ऐश ने दुनिया को यह दिखा दिया कि यदि आप लोगों की नकारात्मक बातें सुनकर अपने दिमाग में कचरा जमा न करें तो फिर दुनिया की कोई ताकत सफल होने से नहीं रोक सकती। इस दीवाली यदि हम सभी अपने घर की रद्दी के साथ मस्तिष्क के कचरे को बाहर निकाल दें तो घर के साथ ही मन-मस्तिष्क में भी असंख्य दीप जगमगा उठेंगे।

रेनू सैनी