बीजेपी बना रही रैलियों का ‘मेगा प्लान’, रणनीतिकार की पुरानी ख्वाहिश

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(www.arya-tv.com) लोकसभा चुनाव 2024 के लिए, कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं। दोनों पार्टियां अपने-अपने रणनीतिक और संगठनात्मक कार्यक्रमों पर काम कर रही हैं। कांग्रेस ने 2024 के चुनावों के लिए एक विशेष रणनीति बनाई है। इस रणनीति के तहत, कांग्रेस अपने पुराने गढ़ों में सुधार करने और नए क्षेत्रों में विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित करेगी।वहीं बीजेपी भी 2024 के चुनावों के लिए पूरी तरह से तैयार है। पार्टी अपने वर्तमान सरकार के प्रदर्शन पर जोर दे रही है, और यह दावा कर रही है कि उसने देश में विकास और समृद्धि लाई है।

दिलचस्प जुगलबंदी

इन दिनों एक दिलचस्प जुगलबंदी के किस्से सियासत से लेकर अदालत तक के गलियारों में सुने जा रहे हैं। हाल तक एक-दूसरे के धुर विरोधी रहने वाले, एक-दूसरे के खिलाफ कई केस लड़ने वाले दो लोग आजकल एक हो गए हैं। और ये इतने करीब आ गए हैं कि एक-दूसरे का केस भी लड़ रहे हैं। इनमें एक नेता पिछले कई सालों से BJP और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धुर समर्थक हुआ करते थे।

UPA के समय उनकी ओर से दायर कई केस तब सरकार के पतन का अहम कारण बने थे। लेकिन पिछले कुछ सालों में वह पीएम मोदी के उतने ही कट्टर विरोधी हो गए हैं। उधर, जिस नेता-वकील से उनकी दोस्ती बढ़ी, वह UPA सरकार में ताकतवर मंत्री हुआ करते थे और तब वह उनके निशाने पर हमेशा रहा रहते थे। हालांकि वह भी पिछले दिनों कांग्रेस छोड़ चुके हैं, लेकिन विपक्षी सियासी स्पेस में बने हुए हैं। अब पुरानी सियासी अदावत को छोड़ते हुए दोनों की जुगलबंदी देखते ही बनती है।

यह भी दिलचस्प है कि एक BJP नेता के खिलाफ की गई टिप्पणी के मामले में उस नेता का केस UPA सरकार में मंत्री रहे सीनियर वकील लड़ रहे हैं। पूछा जा रहा है कि क्या यह नजदीकी कोर्ट रूम तक ही सीमित रहेगी या इसके सियासी मायने भी निकाले जाएंगे। विपक्ष के एक नेता ने कहा कि असली फायदा तो तब होगा, जब वे NDA पर भी उसी तरह से मुकदमे करें, जैसा UPA सरकार पर किया करते थे।

रणनीतिकार की पुरानी ख्वाहिश

पिछले दिनों चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने एक साहब खासे चर्चा में रहे। अब ऐसी खबर सुनने को मिल रही है कि अपने एक पुराने राजनेता-मित्र के जरिए उनकी एक क्षेत्रीय दल के नेता और मुख्यमंत्री से मुलाकात हुई थी। दोनों कभी उस दल का हिस्सा हुआ करते थे, लेकिन बाद में दोनों उससे अलग हो गए थे। जानकारों के अनुसार, उस मीटिंग में चुनावी रणनीतिकार की वापसी की संभावना पर बात हुई। इस घटनाक्रम को करीब से देखने वाले एक नेता ने कहा कि मीटिंग सकारात्मक माहौल में हुई, लेकिन उस दल के बाकी नेताओं ने उनकी दोबारा वापसी पर बागी तेवर दिखाए।

साथ ही, उस मुख्यमंत्री के करीबी और दूसरे सहयोगी दलों के नेताओं ने भी इस संभावना के प्रति कोई खास उत्साह नहीं दिखाया। हालांकि दोनों पक्ष ऐसी किसी संभावना को टटोलने की बात से इनकार कर रहे हैं। अब ताजी खबर यह है कि वह रणनीतिकार एक मुख्यमंत्री की मदद से दक्षिण के पूर्व सीएम की एक पार्टी तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। वह दावा कर रहे हैं कि अगर उनसे जुड़े तो उन्हें आम चुनाव से पहले इंडिया गठबंधन से जुड़वा देंगे, जो इनके लिए बड़ी सफलता होगी। हालांकि वहां भी अभी तक कुल जमा एक मीटिंग हुई है और उसमें भी कुछ खास नहीं निकला है।

किताबें हैं या मुसीबत

आम चुनाव से पहले कांग्रेस की सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर है कि कहीं उनके पुराने दिग्गज नेता कोई किताब तो नहीं लिख रहे हैं? अक्सर अपने ही दल के नेता की ओर से लिखी किताबें कांग्रेस को बैकफुट पर धकेलती रही हैं। पिछले दिनों कांग्रेस के पुराने सीनियर नेता ने अपनी किताब के बहाने कांग्रेस के पुराने प्रधानमंत्री पर तीखी टिप्पणियों के कई तीर छोड़े। अब BJP उस मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रही है। इस कार्यक्रम में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी भी शामिल हुई थीं। अब पार्टी इस मामले में सतर्क हो गई है।

ऐसे सभी नेताओं से आग्रह किया जा रहा है कि अगर वह किताब लिख रहे हैं तो आम चुनाव तक रुक जाएं और पार्टी को विवाद में डालने से बचें। साथ ही लिस्ट बनाई जा रही है कि कौन-कौन नेता किताब लिख रहे हैं और उसमें किन मुद्दों को छुआ गया है। लेकिन पार्टी के ही एक सीनियर नेता ने कहा कि जब आम चुनाव को देखते हुए ही किताब लिखी जा रही है तो फिर वह इससे कैसे बचेंगे? उनका कहना था कि पार्टी के अंदर ऐसे नेताओं को पार्टी के वोट से अधिक मतलब किताबों की बिक्री से है। ऐसे में अगले कुछ महीने कांग्रेस को BJP के काउंटर के अलावा अपने ही नेताओं की किताबों से निकले मुद्दों का भी सामना करना पड़ सकता है।

आया सख्त फरमान

G-20 सम्मेलन के अब कुछ दिन ही बचे हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने इस आयोजन को ग्लोबल स्टेज पर भारत की बढ़ती ताकत का एहसास कराने के मौके के रूप में लिया है। ऐसे में सरकार के शीर्ष स्तर ने अपने नेताओं को स्पष्ट और सख्त संदेश दिया है कि आयोजन के दौरान किसी तरह का विघ्न न हो। कोई भी ऐसा विवादित कॉमेंट न करे, जिससे यह मामला डाइवर्ट हो।

पिछले दिनों जब दिल्ली से सटे नूंह में सांप्रदायिक हिंसा हुई तो केंद्र सरकार के स्तर पर हरियाणा सरकार को सख्त संदेश दिया गया कि वह दंगे को रोकने के लिए हर जरूरी कदम उठाए और इसमें किसी तरह की लापरवाही हुई, तो अच्छा नहीं होगा। सख्त निर्देश के बाद पूरी हरियाणा सरकार ने दोनों पक्षों पर पूरी सख्ती की।

100 रैली का लक्ष्य

2024 आम चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो गया है। सभी दल अपने-अपने हिसाब से अभी से तैयारी में जुट गए हैं। BJP अभी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे के सहारे मैदान में है। पीएम मोदी के करिश्मे को भुनाने के लिए BJP अक्टूबर से आम चुनाव की घोषणा होने तक उनकी 100 रैलियां करने का लक्ष्य बना रही है। इसमें लगभग 40 सभाएं तो साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में होंगी। BJP का मानना है कि ऐसी कोशिश होगी कि आम चुनाव की घोषणा तक पीएम मोदी हर क्षेत्र कवर कर लें और एक संदेश दे दें कि अगले चुनाव का अजेंडा क्या होगा।

फिर चुनाव की डेट सामने आने के बाद पीएम मोदी की धुआंधार रैलियां होंगी। BJP नेताओं का मानना है कि चूंकि मोदी फैक्टर एक आजमाया हुआ हिट फॉर्म्युला है और उनकी लोकप्रियता में भी किसी तरह की कोई कमी नहीं आई है तो फिर वह अपनी रणनीति में किसी तरह का बदलाव क्यों करें। फिर यह भी अनुमान है कि जनवरी में जब राम मंदिर बनकर तैयार होगा, उससे आखिर में एक बड़ा फायदा तो मिलेगा ही।