Bihar Teacher News केके पाठक की नाक के नीचे शिक्षकों के प्रमोशन में ‘घूसखोरी’ का घिनौना खेल, जानिए पूरी बात

# ## Education

(www.arya-tv.com) बिहार में शिक्षा विभाग का दायरा बहुत बड़ा है। शिक्षा विभाग के अंदर चल रहे भ्रष्टाचार की कहानी अद्भुत है। इस भ्रष्टाचार से हजारों शिक्षक पीड़ित हैं। शिक्षक दबी जुबान में कहते हैं कि केके पाठक के आने के बाद ये उम्मीद जगी है कि उन्हें जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय में चलने वाले भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलेगी।

हालांकि, फिलहाल ऐसा होता दिख नहीं रहा है। शिक्षकों ने एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में बताया कि वे अपने नाम का खुलासा नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि केके पाठक का ध्यान सिर्फ शिक्षकों की ओर से है। स्कूलों की तरफ है। उन्हें एक बार बिहार के शिक्षा विभाग के कार्यालयों की जांच भी करनी चाहिए।

बिहार सरकार और शिक्षा विभाग की ओर से जारी आदेश और नियमावली को दबाकर जिला शिक्षा कार्यालय में घूसखोरी का खेल चलता है। शिक्षकों ने जो कहा उसके बारे में जानकर कोई भी आश्चर्य करेगा। आइए हम आपको बताते हैं जिला शिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय में प्रमोशन को लेकर कैसे पैसे का खेल चल रहा है।

आदेश की साए में भ्रष्टाचार

बिहार सरकार की ओर से बहुत पहले स्कूलों में कार्यरत शिक्षकों के लिए एक आदेश जारी किया गया। उस आदेश के मुताबिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षक को 12 साल और 24 साल के अंतराल पर प्रमोशन देने की बात कही गई। इस कालबद्ध यानी टाइम बांड प्रमोशन का लाभ हजारों शिक्षकों को मिला।

जिसमें जिला शिक्षा विभाग की ओर से एक चिट्ठी निकलती थी। जिसमें प्रमोशन और पदोन्नति पाने वाले शिक्षकों का नाम और आदेश जारी किया जाता था। शिक्षकों ने बताया कि एक साल पहले बिहार सरकार की ओर से एक नया फैसला सामने आया।

इस फैसले के तहत बिहार सरकार और शिक्षा विभाग ने कहा कि अब कालबद्ध यानी टाइम बांड प्रमोशन के समय में बदलाव किया जाएगा। विभाग ने शिक्षकों के प्रमोशन को 10 साल, 20 साल और 30 साल के अंतराल पर करने का फैसला लिया।

पूर्व के 12 साल और 24 साल वाले फैसले में कम शिक्षक प्रमोशन की कैटेगरी में आते थे। समय में परिवर्तन होने के बाद यानी 10 साल, 20 साल और 30 साल का समय निर्धारित होने के बाद शिक्षकों की संख्या बढ़ गई। वैसे शिक्षक ज्यादा हो गए, जिनका प्रमोशन बाकी रहा।

डीईओ ऑफिस में रैकेट!

असल खेल की शुरुआत यहीं से होती है। शिक्षकों ने बताया कि इस रैकेट में जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय के लिपिक से लेकर चपरासी तक लगे हुए हैं। इस खेल में पैसे की खुलेआम मांग की जाती है। उसके बाद ही ऑर्डर को निकाला जाता है। खेल दरअसल यूं होता है।

जब बिहार सरकार ने 10 साल, 20 साल और 30 साल के दौरान प्रमोशन का आदेश निकाला। उसके बाद जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय की ओर से एक निर्धारित फॉर्मेट जारी किया गया। इस फॉर्मेट में प्रमोशन पाने वाले शिक्षकों से जानकारी मांगी गई।

जिन शिक्षकों का प्रमोशन ड्यू था उन्होंने निर्धारित फॉर्मेट में जानकारी जिला शिक्षा विभाग को मुहैया कराई। इसमें वर्तमान वेतनमान और प्रमोशन ड्यू होने का पूरा डिटेल जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय में जमा किया।

शिक्षकों ने सर्विस विवरण के अलावा सभी जानकारी उक्त फॉर्मेट में भरकर जिला शिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय में जमा कर दिया। लगभग 7 महीने पहले पटना जिला के शिक्षकों ने अपनी सारी जानकारी और विवरण को विभाग को उपलब्ध करा दिया।

प्रमोशन में बड़ा खेल

शिक्षकों की ओर से मुहैया कराई गई जानकारी के आधार पर प्रमोशन का आदेश निकालने की जगह जिला शिक्षा विभाग ने इसे खुद के कार्यालय में दबा दिया। जिला शिक्षा विभाग के कर्मचारी प्रमोशन पाने वाले शिक्षकों के पहले एरियर के बारे में पता करते हैं।

उसके बाद उस शिक्षक के प्रमोशन वाले आदेश पर कुंडली मारकर बैठ जाते हैं। कुछ मामलों में शिक्षकों ने बताया कि उन्हें सूचित किया जाता है कि वे कार्यालय आकर मिल लें। ऐसे शिक्षक जो पैसे देने के लिए तैयार हो जा रहे हैं। उनके प्रमोशन के आदेश को तत्काल प्रभाव से जारी कर दिया जा रहा है।

शिक्षकों ने बताया कि जो शिक्षक पैसा नहीं दे पा रहे हैं, उनके आदेश को दबाकर रखा गया है। शिक्षकों ने कहा कि केके पाठक को जिला शिक्षा पदाधिकारी से ये पूछना चाहिए कि आखिर जब योग्य शिक्षकों ने सारा विवरण जमा कर दिया है, तब उन्हें प्रमोशन देने में देरी क्यों की जा रही है?

शिक्षकों की मानें, तो पूरे बिहार के हजारों शिक्षकों का प्रमोशन रोक कर रखा गया है। उन्हीं शिक्षकों को प्रमोट किया जाता है, जो अपने एरियर का एक हिस्सा जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय में बतौर घुस जमा कर देता है।

डीईओ ऑफिस में खेल

शिक्षकों ने बताया कि जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय में लगातार लाखों रुपये का लेन-देन चल रहा है। डीईओ ऑफिस में कुछ लिपिक प्रमोशन के योग्य शिक्षकों से उनके मिलने वाले एरियर से पैसे की डिमांड करते हैं। जो शिक्षक पैसा देने के लिए तैयार नहीं है। उसका प्रमोशन नहीं किया जा रहा है।

जिला शिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय से ये खेल लगातार जारी है। शिक्षकों का कहना है कि होना ये चाहिए था कि सामूहिक रूप से जब शिक्षकों से डिटेल मंगाया गया, तब पूर्व की भांति चिट्ठी भी प्रमोशन पाने वाले शिक्षकों के नाम से जारी होनी चाहिए थी।

ऐसा नहीं कर, जिला शिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय से उन गिने-चुने शिक्षकों के लिए आदेश जारी होता है, जो पैसा देने के लिए तैयार हो जाते हैं। शिक्षकों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि ये खेल वर्षों से जारी है। अभी तक इस पर कोई लगाम नहीं लगा पाया है।

ये आदेश कुछ खास शिक्षकों के लिए जारी किया जाता है। ध्यान रहे कि केके पाठक लगातार शिक्षा विभाग और स्कूलों में सुधार की बात कर रहे हैं। प्रमोशन की आस में बैठे शिक्षकों को इंतजार है कि केके पाठक उनकी वर्तमान स्थिति पर भी ध्यान दें ताकि वे घूसखोरी के चंगुल से बच जाएं।