अरब मूल के अमेरिकियों ने इजराइल-हमास युद्ध को लेकर बाइडन सरकार के रुख की आलोचना की, जानें क्या पड़ेगा इसका असर

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(www.arya-tv.com) इजराइल और हमास के बीच संघर्ष को लेकर अमेरिका ने अपना रुख शुरुआत से ही साफ रखा है। राष्ट्रपति जो बाइडन से लेकर उनके विदेश और रक्षा मंत्री ने भी समय-समय पर इजराइल के समर्थन में हमास से लेकर ईरान समर्थित संगठन हिज्बुल्ला को भी चेतावनी जारी की है। हालांकि, इसका असर अब अमेरिका की आंतरिक राजनीति में दिखने लगा है। दरअसल, यहां बड़ी संख्या में रहने वाले अरब मूल के अमेरिकियों ने इजराइल-हमास संघर्ष को लेकर बाइडन के रुख की आलोचना की है। इनमें बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है, जो कि बाइडन की डेमोक्रेट पार्टी के समर्थक हैं। ऐसे में आगामी राष्ट्रपति चुनाव में यह वर्ग बाइडन की राष्ट्रपति पद के लिए दोबारा दावेदारी पेश करने की राह में अड़चन साबित हो सकता है।

बाइडन प्रशासन के कुछ अधिकारियों, अकादमिकों, कार्यकर्ताओं और समुदाय के प्रतिनिधियों के मुताबिक, इजराइल-हमास संघर्ष को लेकर जिस तरह का बाइडन प्रशासन का रुख रहा है, उसे लेकर अरब अमेरिकी समुदाय नाराज है। इस समुदाय के लोगों का कहना है कि बाइडन ने जिस तरह अब तक गाजा में हो रहे हमलों की निंदा नहीं की और हजारों फलस्तीनियों के मारे जाने के बाद भी इजराइलपर सीजफायर लागू करने का दबाव नहीं बनाया, उससे अरब-अमेरिकियों में नाराजगी है।

माना जा रहा है कि सरकार के इस रुख के चलते डेमोक्रेट पार्टी के खास समर्थक माने जाने वाले अरब-अमेरिकी समुदाय बाइडन की राष्ट्रपति पद के लिए दोबारा पेश की जाने वाली दावेदारी को समर्थन देने से इनकार कर सकता है।

अरब-अमेरिकन इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष जिम जोगबी के मुताबिक, रिपब्लिकन और डेमोक्रेट पार्टी के बीच टक्कर वाले मिशिगन राज्य, जहां अरब आबादी के मतदाताओं का आंकड़ा करीब 5 फीसदी है। इसके अलावा पेंसिल्वेनिया और ओहायो जैसे राज्यों में अरब मूल के अमेरिकी वोटरों की संख्या 1.7 से 2% के बीच है। बता दें कि 2020 में हुए चुनाव में बाइडन को मिशिगन में 50.6 फीसदी वोट मिले थे, जबकि ट्रंप यहां 47.8 फीसदी वोट जुटाने में सफल रहे थे। वहीं पेंसिल्वेनिया में बाइडन 50.01% और ट्रंप 48.84% वोट पाने में सफल हुए थे। बाइडन यहां ट्रंप से महज 81,000 वोटों से जीते थे।

अरब-अमेरिकियों की तरफ से रिपब्लिकन पार्टी के सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे डोनाल्ड ट्रंप को भी समर्थन दिए जाने की उम्मीद काफी कम है। कई कार्यकर्ताओं का कहना है कि वे ट्रंप का समर्थन नहीं करेंगे। हालांकि, अरब अमेरिकियों ने मौजूदा बाइडन प्रशासन से ही इस्राइल-फलस्तीन को लेकर अपनी नीति में बदलाव करने को कहा है। मिशिगन के डियरबॉर्न में पहले अरब-अमेरिकी मेयर अब्दुल्ला हम्मूद ने इजराइल की तरफ से गाजा में बिजली, पानी के सप्लाई पर लगाए गए प्रतिबंदों की आलोचना करते हुए बाइडन सरकार को घेरा। गौरतलब है कि मिशिगन इस वक्त अमेरिका के सभी राज्यों के मुकाबले सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी के औसत वाला राज्य है।

अरब अमेरिकी एसोसिएशन ऑफ न्यूयॉर्क की पूर्व कार्यकारी निदेशक लिंडा सैरसूर ने हाल ही में अमेरिकी-इस्लामिक रिलेशन (CAIR) की एक बैठक में सैकड़ों लोगों के सामने कहा था कि उन्हें चुनाव से पहले दान तभी देना चाहिए, जब वे इजराइल के प्रति नीतियों में बदलाव की अपनी मांग को मनवा सकें। अमेरिका के सबसे बड़े मुस्लिम अधिकार संगठन सीएआईआर ने कहा था कि इजराइलकी तरफ से गाजा में बमबारी नरसंहार की तरह है, जिसमें पूरी फलस्तीनी आबादी को निशाना बनाया जा रहा है और अमेरिकी सरकार अगर इन हमलों को रोकने के लिए कदम नहीं उठाती तो वह भी इसके जिम्मेदार है।

इतना ही नहीं, बाइडन सरकार की तरफ से हमास के खिलाफ इजराइलकी मदद के लिए संसद से मांगे गए 14 अरब डॉलर को लेकर भी अमेरिका में विवाद खड़ा हो गया है। पेंसिल्वेनिया के स्वार्थमोर कॉलेज की फलस्तीन मूल की अमेरिकी सएद अत्शान ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि जहां बाइडन सरकार इजराइल की सेना को मजबूत करने के लिए अरबों डॉलर खर्च कर रही है, जबकि फलस्तीनियों की मदद के लिए सिर्फ कुछ करोड़ डॉलर दिए जा रहे हैं। यहां तक कि बाइडन के समर्थक और पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी अपनी सलाह में कह चुके हैं कि अमेरिका को मदद पहुंचाने में नेतृत्वकर्ता की भूमिका में दिखना चाहिए।