मेरी तस्वीर को अपनी समझ बैठे थे अमिताभ बच्चन:बोले- मेरे घरवाले भी धोखा खा जाएंगे

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(www.arya-tv.com) ‘10वीं क्लास में मुझे पता चला कि मैं अमिताभ बच्चन जैसा दिखता हूं। फिर खुद पर काम करके मैंने उनकी तरह बनने की कोशिश की। 2011 में मेरी मुलाकात अमिताभ जी से हुई। मैंने उनको अपनी तस्वीरें दिखाईं, लेकिन उन्हें लगा कि वो उनकी तस्वीरें हैं। मैंने उन्हें बताया कि सर ये आप नहीं हैं, ये मैं हूं। इस पर उन्होंने कहा कि मेरे घरवाले भी इन तस्वीरों को देखकर धोखा खा जाएंगे। अमिताभ मेरे लिए भगवान समान हैं। कभी-कभी लोग उनका गुस्सा मुझ पर उतारते हैं।’

ये कहना है शशिकांत पेडवाल का, जो पिछले 15 सालों से अमिताभ बच्चन के हमशक्ल के तौर पर पहचाने जा रहे हैं। शशिकांत मिमिक्री आर्टिस्ट भी हैं और धर्मेंद्र, दिलीप कुमार समेत कई नामी स्टार्स की मिमिक्री करते हैं। गवर्नमेंट ITI कॉलेज, पुणे में प्रोफेसर भी हैं। फिल्म झुंड (2022) में उन्होंने अमिताभ बच्चन के बॉडी डबल का काम किया था।

हालांकि, बचपन से लेकर अभी तक का सफर काफी उतार-चढ़ाव से भरा रहा। नासिक के एक गांव में जन्मे शशिकांत घर-घर जाकर पाव बेचा करते थे। आज कई देशों में उनकी तगड़ी फैन फॉलोइंग है। इंस्टाग्राम पर उनके 9 लाख से ज्यादा फॉलोवर्स हैं।

आज की स्ट्रगल स्टोरी में शशिकांत पेडवाल बता रहे हैं अपने संघर्ष की कहानी…

मेरा जन्म 5 जुलाई 1970 को नासिक के पास एक छोटे से गांव में हुआ था। पापा की आमदनी अच्छी नहीं थी इसलिए 13 साल की उम्र से ही मैंने कमाना शुरू कर दिया था। सुबह 6 बजे उठकर पाव बेचने निकल जाता था, फिर स्कूल जाता था। पाव बेचकर मुझे 2 रुपए मिलते थे। पापा की आइसक्रीम की एक गाड़ी थी, उसे ले जाकर मैं आइसक्रीम भी बेचा करता था। लस्सी भी बेची। गणपति पूजा में हम मूर्तियां बेचा करते थे, दिवाली में पटाखे बेचा करते थे।

मैं दसवीं क्लास में था, तब मेरे एक दोस्त ने कहा- तेरी सूरत तो बिल्कुल अमिताभ बच्चन जैसी है। जब मैंने सुना कि मैं महानायक जैसा दिखता हूं, तो बहुत खुश हुआ। इससे पहले मैंने बच्चन साहब की कई फिल्में देखी थीं लेकिन कभी इस बात पर गौर नहीं किया था कि मैं उनकी तरह दिखता भी हूं।

इस वाकये के बाद मैं खुद को उन्हीं की तरह ढालने लगा। उनके जैसे चलना लगा। उनकी जैसी आवाज निकालने की कोशिश करने लगा। बचपन में आवाज उतनी भारी नहीं थी, जितनी बच्चन साहब की है, लेकिन फिर भी मैं खुद पर काम करता गया।

अमिताभ बच्चन के अलावा धर्मेंद्र, दिलीप कुमार की आवाज भी निकालने लगा। धीरे-धीरे जब लोगों को मेरे इस हुनर के बारे में पता चला, तो मुझे बहुत सराहना मिली। इसी खूबी की वजह से मैंने आर्केस्ट्रा में काम करना शुरू कर दिया। आर्केस्ट्रा का शो 3 घंटे का चलता है।

जब कुछ घंटे की परफॉर्मेंस के बाद आर्टिस्ट थक जाते थे और चाय-नाश्ते के लिए चले जाते थे, तब उस दौरान दर्शकों को बांधे रखने के लिए मैं फिल्मी स्टार्स की मिमिक्री करता था। इस काम की वजह से कुछ समय बाद पूरे कस्बे में मेरा नाम हो गया था। बाद में मैं कई इवेंट कंपनी का हिस्सा बन गया और जगह-जगह जाकर स्टेज शो करने लगा।

इसी दौरान मैंने एक शो किया था, जिसमें सिंगर अलका याग्निक भी आईं थीं, इस शो में लगभग 60 हजार लोग थे। सभी को मेरा काम बहुत पसंद आया था।

बच्चन साहब ने पोलियो जागरुकता अभियान के ऐड में काम किया था, जिसका स्लोगन था पोलियो से गांव हमारा बचेगा, उन्नति देश हमारा करेगा। इस ऐड को अपनी आवाज में बदलकर कुछ ऐसा कर दिया था… पोलियो से लासल गांव हमारा बचेगा, उन्नति देश हमारा करेगा। इस ऐड को मैंने केबल ऑपरेटर के जरिया टेलीकास्ट कराया था।

जिसके बाद गांव के सभी लोग बहुत हैरान हुए कि अमिताभ बच्चन सिर्फ उनके गांव का नाम कैसे बोल रहे हैं। वो तो ग्लोबल स्टार हैं, फिर एक गांव का नाम भला क्यों ले रहे हैं। किसी को शक भी नहीं हुआ कि ये उनकी आवाज नहीं है। इस काम के बाद तो मुझे खुद पर और भरोसा हो गया कि बेहतर काम कर सकता हूं।

मैंने ग्रेजुएशन किया। ITI पुणे में अप्रेंटिस था। मेडिकल लाइन के मार्केटिंग फील्ड में भी काम किया। जब इस काम से भी मन भर गया था तो मैंने ITI में नौकरी करने लगा। किस्मत से फिर मुझे 1996 में इसी कॉलेज में अस्थाई नौकरी मिल गई। फिर 1999 में यहां बतौर प्रोफेसर काम करने लगा।

आखिरकार मुझे बिग बी से मिलने का मौका मिला। ये पल मेरी जिंदगी में 2011 में आया। दरअसल , मेरा एक दोस्त रजिस्ट्रार ऑफिस में काम करता था। बच्चन साहब को कोई प्रॉपर्टी खरीदनी थी, लेकिन वो ऑफिस नहीं आते थे। दोस्त ने कॉल कर बताया कि कल वो उसी काम के लिए बच्चन साहब के ऑफिस जा रहे हैं, अगर मुझे मिलना है, तो मैं आ जाऊं।