गर्वित द्वारा पहाड़ों- कंदरा निवासी संत महात्मा हेतु सहायता अभियान

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नवी मुंबई। नवी मुंबई के कोपरखैराने स्थित ग्रामीण आदि रिसर्च एंड वैदिक इन्नोवेशन ट्रस्ट यानी गर्वित द्वारा अपनी विभिन्न चैरिटेबल कार्यक्रमों के अतिरिक्त रुद्रप्रयाग के ऊपर पहाड़ों और कंदराओं में रहने वाले साधु महात्मा हेतु विभिन्न जीवन उपयोगी आवश्यक सामग्री पहुंचने का अभियान आरंभ किया गया है।

इस विषय में चर्चा करते हुए गर्वित के अध्यक्ष विपुल लखनवी जी ने बताया की हिमालय में स्थित उत्तराखंड के जोशीमठ के ऊपर की पहाड़ियों में साधु महात्माओं की सहायता हेतु जोशीमठ में कुछ संगठन काम कर रहे हैं। किंतु रुद्रप्रयाग के ऊपर दुर्गम पहाड़ियों के कारण रुद्रप्रयाग में कोई भी संगठन इस प्रकार का कार्यक्रम नहीं कर पाता है। इस दिशा में एक संगठन बनाने का प्रयास किया जा रहा है जो साधु संतों को पहाड़ो तक समान पहुंच सके।

जगत के कल्याण के लिए निरंतर तप में संलग्न साधु महात्मा किसी भी प्रकार के कष्ट को ईश्वर का प्रसाद मानकर झेलते रहते हैं और किसी अतिथि के पहुंचने पर खुद भूखे रहकर उसको चाय इत्यादि और भोजन भी कराते हैं। लोग धन से कभी कबार सहायता कर देते हैं लेकिन प्रश्न यह उठता है की जीवन उपयोगी सामग्री को किस प्रकार से खरीद कर भी इन कंदराओं में पहुंचाया जाए।

ऐसे संत महात्माओं में एक आंखों के सर्जन वर्तमान में सन्यास ग्रहण कर एक कंदरा में निवास कर रहे हैं। वे कभी किसी से कुछ मांगते नहीं मात्र एक लंगोट में अपना गुजारा करते हैं भूख लगने पर जड़ी अथवा पत्ते इत्यादि खाकर अपना निर्वाह करते हैं लेकिन यदि कोई अतिथि पहुंच जाता है तो उसके लिए कैसे भी भोजन की व्यवस्था करने का प्रयास करते हैं। इन महात्माओं को पास जाकर देखने से उनकी कठिनाइयों को देखकर किसी भी सनातनी की आंखें नम हो जाती है।

श्री लखनवी के अनुसार यदि आप कभी इन संत महात्माओं से मिले तो उनको जीवन उपयोगी कोई वस्तु प्रदान करें क्योंकि ऐसे भी संत हैं जो किसी भी प्रकार के धन को हाथ नहीं लगाते हैं भूखे पड़े रहते हैं कभी कोई आता है तो उस धन को लेकर उनको कुछ भोजन इत्यादि कर देता है नहीं तो वह ईश्वर का प्रसाद मानकर निराहार रहते हैं।

इस प्रकार की व्यवस्था को समझाते हुए एक 75 वर्षीय संन्यासी ने विपुल लखनवी जी को पत्र लिखा था और विपुल जी ने मात्र दो दिन के भीतर उन साधु महात्माओं को कुछ न कुछ सहायता पहुंचाने के संकल्प के साथ आपके ट्रस्ट गर्वित द्वारा यह कार्य आरंभ भी कर दिया।

यहां पर यह भी ज्ञात हो विपुल लखनवी जी मुंबई के भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र से वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद से सेवानिवृत्त हुए और उन्होंने गर्वित नामक ट्रस्ट की स्थापना की। जिसका पोषण वह अपनी पेंशन के कुछ भाग से करने का प्रयास करते हैं क्योंकि आर्थिक सहायता करने वाले लोग इक्का-दुक्का ही है। गर्वित का उद्देश्य प्राचीन भारतीय संस्कृति और ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के माध्यम से जनमानस को समझना और उन तक पहुंचाना है।

अपने वेब चैनल और ब्लॉग के माध्यम से वे देश भर से आई हुई सनातन से संबंधित जिज्ञासाओं को शांत कर देते हैं एवं सचल मन सरल वैज्ञानिक ध्यान विधि के द्वारा नास्तिकों को भी आस्तिक बना देते हैं। यह ध्यान की पद्धति लोगों को सनातन की शक्ति का अनुभव देती है और कुछ लोगों को देव दर्शन तक भी हो जाते हैं। विशेष बात तो यह है की लखनवी जी कभी भी अपने को गुरु नहीं समझते वह अपने को सनातन का सेवक समझ कर लोगों को आध्यात्मिक मार्ग में पड़ने वाली कठिनाइयों को सहजता और सरलता से दूर कर देते हैं और किसी भी प्रकार की धनराशि स्वीकार नहीं करते हैं।

उनका यह मानना है कि इस कलयुग में यदि कोई गुरु बनने का प्रयास करता है तो वह महापाप का भागीदार होता है। सनातन के अनुभवशील लोगों को सनातन का सेवक बनने का प्रयास करना चाहिए न कि गुरु बनने का। गुरु बनाने में कभी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। बस केवल अपने इष्ट का सतत निरंतर निर्बाध मंत्र जप आवश्यकता पड़ने पर समर्थ गुरु के पास पहुंचा देता है। इसके अतिरिक्त वह योग से ब्रह्म ज्ञान तक बड़ी आसानी से जप करने वाले को प्रदान कर सकता है। योग का अनुभव किया हुआ व्यक्ति जो बोलता है वह वेदों में दिया होता है और श्रीमद्भावद्गीता उसका अनुमोदन करती है।

लखनवी जी के अनुसार पेट को फुलाना पिचकना किसी भी दृष्टि से योग का परिचायक नहीं है यह सिर्फ योग मार्ग में किया जाने वाला एक छोटा सा अभ्यास है योग नहीं। योग तो वेद महावाक्य का अनुभव होने पर ही घटित होता है। लेकिन आजकल कोई भी सर्कस का जोकर जो हाथ पर मोड़ लेता है या घेरंड ऋषि के कुछ आसान लगा लेता है वह महायोगी बनकर दुकान खोल लेता है। यह सनातन का दुर्भाग्य है।