कृषि सुधार कानून, सरकार रहीं विफल नजर आया किसानों का गुस्सा

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(www.arya-tv.com) केंद्र सरकार द्वारा बनाये गये कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ पंजाब में किसानों का गुस्सा थमता नजर नहीं आता। चिंता की बात यह है कि किसान संगठनों और केंद्र सरकार के मध्य बातचीत किसी नतीजे पर न पहुंच सकी। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि केंद्र सरकार किसानों को यह भरोसा देने में विफल रही है कि हालिया कृषि सुधार उनके हित में हैं।

दरअसल, किसान फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य और मंडी प्रणाली के भविष्य को लेकर आशंकित हैं, जिससे लाखों किसानों की जीविका और भविष्य जुड़ा है। हालांकि केंद्र सरकार आश्वासन देती रही है कि एमएसपी को खत्म नहीं किया जायेगा और इस वर्ष भी इसमें वृद्धि के साथ किसानों की फसल खरीदी गई है, लेकिन किसानों को भविष्य की रूपरेखा को स्पष्ट रूप से समझाने की आवश्यकता है।

दरअसल, किसानों ही नहीं, कृषि विशेषज्ञों के विचारों को तरजीह देते हुए गतिरोध से बाहर निकलने के लिये स्थायी समाधान तलाशने की जरूरत महसूस की जा रही है। वास्तव में केंद्र सरकार के सुधारों को निष्प्रभावी बनाने के लिये पंजाब की कांग्रेस सरकार द्वारा जो समानांतर कानून विधानसभा में पारित किये गये हैं, उससे उपजे अविश्वास को दूर करने की भी जरूरत है।

राज्य में किसानों का आंदोलन कई तरह से जारी है, जिसके चलते रेल यातायात पूरी तरह से ठप है। इसका राज्य की अर्थव्यवस्था पर खासा प्रतिकूल असर पड़ रहा है। वहीं किसान केवल मालगाडिय़ों को शुरू करने पर जोर दे रहे हैं। दूसरी ओर केंद्र यात्री गाडिय़ों को भी चलने देने की बात कर रहा है, जिससे समस्या के समाधान में विलंब हुआ है।

निस्संदेह मालगाडिय़ों ने लॉकडाउन के दौरान सप्लाई चेन को बनाये रखने में बड़ी भूमिका निभायी है। इन्हें अवरुद्ध करने से पंजाब व पड़ोसी राज्यों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। सर्दियों की शुरुआत में सेना की आपूर्ति पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में ट्रेनों की बहाली होनी चाहिए।

ऐसे वक्त में जब कोविड संक्रमण की दूसरी लहर की आशंका बलवती हो रही है, रेल यातायात को बहाल करने की दिशा में कारगर पहल होनी चाहिए। साथ ही आंदोलनकारियों को भी संक्रमण के खतरे को ध्यान में रखते हुए आंदोलन की रूपरेखा नये सिरे से तैयार करनी चाहिए। पंजाब में वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर भी इस मुद्दे पर राजनीतिक कवायद जारी है। निस्संदेह इस गतिरोध का असर राजनीतिक परिदृश्य पर भी होना लाजिमी है।

किसान आंदोलन को देखते हए शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस ने केंद्र सरकार के कृषि सुधार कानूनों पर सख्त रुख दिखाया है लेकिन लंबे समय तक किसान आंदोलन का जारी रहना राज्य की मुश्किलों को बढ़ा सकता है। जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है, भले ही वह बिहार विधानसभा चुनाव परिणामों से खासी उत्साहित हो, मगर पंजाब में उसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

राज्य में राजग के पुराने सहयोगी अकाली दल से अलग होने के बाद भले ही भाजपा इसे नये अवसर के रूप में देखकर राज्य के हर जनपद में अपने कार्यालय खोलकर चुनाव लडऩे की तैयारी करने की बात कर रही हो, लेकिन किसानों के मुखर विरोध के बीच भाजपा की आगे की राह उतनी आसान भी नहीं है।

दरअसल भाजपा व अकाली दल का गठबंधन महज चुनावी गठबंधन ही नहीं था बल्कि एक सामाजिक गठबंधन भी था। ऐसे में इस गठबंधन के अप्रिय स्थितियों में टूटने का नकारात्मक प्रभाव किसान व राज्य के हितों पर नहीं पडऩा चाहिए। राज्य के राजनेताओं को वक्त की नजाकत को भी समझना चाहिए कि यह एक सामान्य समय नहीं है और कोरोना संकट अभी भी पैर पसार रहा है। ऐसे में किसान व राज्य के हित में पंजाब व केंद्र सरकार को गतिरोध खत्म करने के प्रयास तुरंत करने चाहिए। केंद्र व राज्य के बीच टकराव टालने के लिये भी यह जरूरी है क्योंकि केंद्र के इन नये कानूनों से राज्यों के वित्तीय संसाधनों का भी संकुचन हुआ है।