दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते वर्चस्व को कम करने के लिए बनाई जा रही नई वैश्विक रणनीति

# National

(www.arya-tv.com)  अमेरिका अपनी असफल रणनीतिक कार्यशाला को अफगानिस्तान से हटाकर पूरब में स्थानांतरित करने की दिशा में जुट गया है। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के पीछे अपने मंतव्य को दर्शाते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस तथ्य की स्वाकारोक्ति भी की थी।

उन्होंने यह भी दर्शाया कि अमेरिका अपने रणनीतिक अभियान को पूरब और हिंद-प्रशांत क्षेत्र की ओर ले जा रहा है। उनके इस बयान के उपरांत अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस समेत वहां के कई अन्य प्रमुख नेताओं ने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का दौरा किया। दरअसल यह यात्र इस बात का संकेत थी कि विस्तारवादी चीन के खिलाफ अमेरिका अब बेहद गंभीर हो चुका है और पूरब में वह स्वयं को उसके विरुद्ध स्थापित करते हुए मजबूत बनना चाहता है।

हालांकि वियतनाम युद्ध के बाद से अमेरिका ने इस क्षेत्र में अपने सैनिकों की पर्याप्त संख्या में मौजूदगी के साथ ही एक मजबूत सैन्य अड्डा पहले से ही बना रखा है। अमेरिका ने जापान में करीब 50 हजार, दक्षिण कोरिया में लगभग 30 हजार और गुआम में पांच हजार सैनिकों को जमा किया है। मालूम हो कि गुआम एक छोटा सा अमेरिकी द्वीप है जो पश्चिमी प्रशांत महासागर के माइक्रोनेशिया उपक्षेत्र में अवस्थित है। फिलीपींस में अमेरिकी सेना की उपस्थिति का अलग इतिहास है।

हालांकि इस पूरे प्रकरण का केंद्र बिंदु दक्षिण चीन सागर है, जहां अमेरिका काफी पहले से ही चीन से मुकाबला करने में बुरी तरह विफल रहा। चीन ने इस क्षेत्र के कई द्वीपों को घेरकर उनकी महत्वपूर्ण प्रवाल भित्तियों को नष्ट करते हुए उन द्वीपों के आधुनिक विकास पर अरबों डालर खर्च करने के साथ ही वहां पर अपने सामरिक आधार को मजबूत कर लिया है। दरअसल ये वो प्रवाल भित्तियां हैं जहां हजारों प्रकार के समुद्री जीव प्रजनन के उद्देश्य से प्रवास करते हैं। इस प्रकार चीन न केवल सामुद्रिक अंतरराष्ट्रीय धरोहर को, बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाने का बहुत बड़ा अपराध कर रहा है।

आकस का गठन और संभावित प्रभाव :

ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिकी प्रशासन बाइडन और ट्रंप के सिद्धांत के अनुरूप, आस्ट्रेलिया जैसे अपने सहयोगियों के प्रति अपनी ओर से सैन्य दबाव को कम करने की कोशिश कर रहा है। ऐसा भी लग रहा है कि अमेरिका इस मामले में भारत को अनदेखा कर रहा है, क्योंकि चीन के बाद भारत ही इस पूरे क्षेत्र से भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से जुड़ा हुआ है।

इसके अलावा, यदि हम अतीत को देखें तो आस्ट्रेलिया की भौगोलिक स्थिति और निकटता के बावजूद उसका रवैया कभी दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के प्रति सराहनीय नहीं रहा और इस बात पर कई बार आस्ट्रेलिया की आलोचना की गई है। अब आकस (आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका) एक ऐसा समूह बना है जहां अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विश्लेषक इसे भारत-प्रशांत में पूरी तरह से चीन पर लक्षित एक मजबूत शक्ति ब्लाक बनाने की शुरुआत के रूप में देखते हैं।

हालांकि आसियान देशों का रक्षा खर्च चिंताजनक नहीं है, पर चीन उनके दरवाजे पर बहुत ही करीब से दस्तक दे रहा है। आसियान देशों का आपस में भी कई समुद्री विवाद है, लेकिन वे किसी फसाद में शामिल होने के बजाय अंतरराष्ट्रीय न्यायालय पर भरोसा करते हैं। थाइलैंड, इंडोनेशिया, वियतनाम, सिंगापुर और फिलीपींस सभी अपनी सामथ्र्य को देखते हुए नवीनतम पनडुब्बी हासिल करने का प्रयास करेंगे और सभी यह चाहेंगे कि जल के भीतर अपनी युद्ध क्षमता को कैसे बढ़ाया जाए।