(www.arya-tv.com) कहते हैं मुश्किलों के भंवर से गुजरकर जो दरिया पार करता है, वही जीत का स्वाद चखता है, रियल हीरो होता है…। यह कहावत अदिति स्वामी पर सौ फिसदी सटकी बैठती है। महज 17 वर्ष की उमें अदिति ने इस साल विश्व तीरंदाजी चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीता, जिससे वह इस खेल में सबसे कम उम्र की विश्व चैंपियन बन गईं हैं। देश की छाती गर्व से चौड़ी कर रही हैं। आज भी टीन शेड के घर में रहने वाली इस देश की बिटिया का सफर किसी बॉलीवुड की फिल्म से कम नहीं है।
10 साल की उम्र में अदिति स्वामी अपने पिता के साथ महाराष्ट्र के सतारा के शाहू स्टेडियम में एक मल्टीस्पोर्ट कार्यक्रम में गई थीं। उस कार्यक्रम के दौरान उन्होंने पहली बार तीर चलाने के लिए धनुष का इस्तेमाल होते देखा। यहीं से उनका इस खेल से जुड़ाव हो गया। उनकी मुलाकात कोच प्रवीण सावंत से हुई, जो सतारा में दृष्टि तीरंदाजी अकादमी चलाते हैं। तालुका स्कूल में शिक्षक उनके पिता गोपीचंद स्वामी इस बारे में कहते हैं- अदिति दुबली-पतली थी, इसलिए सावंत सर ने उसे अकादमी में प्रवेश देने से पहले 15 दिनों का फिटनेस परीक्षण करने का प्रस्ताव रखा।
अदिति की एकाग्रता को देखते हुए सावंत सर ने उसे एडमिशन दे दिया।उनका पैतृक गांव शेरेवाड़ी है, जिसकी आबादी लगभग 600 है। यह सतारा से लगभग 15 किमी दूर है। अदिति के तीरंदाज बनने के सपने को पूरा करने में मदद करने के लिए उनके पिता ने अपनी सैलरी पर लोन लेकर किया। महाबलेश्वर में जन्मी 17 वर्षीय तीरंदाज 2016 से अपने परिवार के साथ सतारा में एक छोटे से टिनशेड वाले घर में रह रही हैं। उनकी मां शैला स्वामी घर से 12 किमी दूर अंबावडे गांव में ग्रामसेवक हैं। वह अदिति के लिए खाना पैक करती हैं और काम पर निकल जाती हैं।
इसके बाद की जिम्मेदारी उनके पिता निभाते हैं। वह अदिति को अकैडमी या स्कूल भेजते हैं। फिर वापस भी लाते हैं। अदिति 5 दिन 3 से 4 घंटे और वीकेंड पर 5 घंटे से अधिक समय तक प्रैक्टिस करती हैं। गोपीचंद को शुरुआत में ही बिटिया के हुनर का अंदाजा लग गया था। उनके कोच और पिता उन्हें पदक जीतने वाले भारतीय तीरंदाजों के वीडियो दिखाते थे। ऐसे ही एक वीडियो में भारतीय राष्ट्रगान की ध्वनि ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर सफल होने और अपने देश को गौरवान्वित करने के लिए दृढ़ संकल्पित कर दिया।
उन्होंने एक साल के भीतर जिलास्तर पर पदक जीता और 2017 में एक इंटर-स्कूल टूर्नामेंट में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए शानदार प्रदर्शन किया। उन्होंने नेशनल लेवल पर पहली बार हिस्सा लेते हुए 2018 में सिल्वर मेडन अपने नाम किया तो 2021 में अमरावती में सब-जूनियर इवेंट में पहला इंडिविलिजुअल गोल्ड जीता। उसी वर्ष उन्होंने सीनियर नेशनल के लिए क्वॉलिफाइ किया और जम्मू-कश्मीर में टीम को सिल्वर मेडल दिलाया। उन्होंने फुकेत में मार्च 2022 में एशिया कप लेग-1 में इंटरनेशल डेब्यू करते हुए टीम को सिल्वर जीतने में मदद की। अदिति मई और दिसंबर 2022 में क्रमशः इराक और शारजाह में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम में थीं।
उनका पहला व्यक्तिगत पदक शारजाह में रजत पदक था। वह फाइनल में हमवतन प्रगति से 142-144 से हार गईं। अदिति का व्यक्तिगत स्वर्ण जीतने का सपना बर्लिन में विश्व चैम्पियनशिप के दौरान पूरा हुआ। वह इस खेल में किसी भी स्पर्धा में सबसे कम उम्र में विश्व चैंपियन बनने वाली खिलाड़ी बन गईं। इस दौरा उनके पिता ने खर्च उठाने के लिए काफी मेहनत की। वह बताते हैं कि सैलरी खर्च करने के बाद 12 लाख रुपये से अधिक उधार लेना पड़ा।
उन्होंने बताया- पिछले तीन-चार महीनों से अदिति को खेलो इंडिया की ओर से 10,000 रुपये प्रति माह स्कॉलरशिप मिल रही है। उनके विश्व चैंपियन बनने के बाद इंडियन ऑयल ने भी 20,000 रुपये प्रति माह स्कॉलरशिप के रूप में देना शुरू कर दिया है। गुजरात में 2022 के राष्ट्रीय खेलों के दौरान अदिति के स्वर्ण पदक से 7 लाख रुपये मिले, जिससे गोपीचंद ने अपने कर्ज का बड़ा हिस्सा चुकाया। स्वामी परिवार के पास अदिति अभी भी एक ढंग का घर नहीं है। उनकी फैमिली टिन शेट में रहती है। वह कहते हैं- विश्व चैंपियन बनने के बाद जब मेहमान घर आते हैं तो अदिति थोड़ी असहज महसूस करती है।
हालांकि उसने ये सभी पदक जीते हैं, लेकिन उनके साथ कोई पुरस्कार राशि नहीं है… अदिति अपनी कमाई का उपयोग घर बनाने में करने का सपना देखती है और उसका फिलहाल लक्ष्य है एशियाई खेलों में मेडल जीतना है। 2024 पेरिस ओलिंपिक में केवल रिकर्व इवेंट होगा, जबकि कंपाउंड इवेंट 2028 में लॉस एंजिल्स में आयोजित किया जाएगा, इसलिए दुनिया की सबसे कम उम्र की तीरंदाजी चैंपियन को ओलिंपिक में खेलने के लिए अभी लंबा इंतजार करना होगा।