देश भर में NRC की तैयारी पूरी, CAA से जुड़े दूर कर लें सारे भ्रम

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नागरिकता संशोधन एक्ट 2019 (CAA) को लेकर देश भर में विरोध प्रदर्शनों का दौर जारी है. कई इलाकों में हिंसा भी हुई है. इस कानून को लेकर लोगों में काफी भ्रम की स्थिति है. साथ ही इसको लेकर भी काफी भ्रम है कि यह पॉपुलेशन रजिस्टर (PR), नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR), नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (NRC) और नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटीजन्स (NRIC) से किस तरह से जुड़ा है. हम तमाम सरकारी गजट नोटिफिकेशन, कानूनों और नियमों के द्वारा ऐसे तमाम भ्रम और मिथक दूर कर रहे हैं.

यह सच है कि 31 जुलाई, 2019 के गैजेट नोटिफिकेशन के साथ ही देश भर में एक नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (NRC) तैयार करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है.

इस नोटिफिकेशन में कहा गया है: ‘सिटीजनशि‍प रूल्स 2003 (रजिस्ट्रेशन ऑफ सिटीजन्स ऐंड इश्यू ऑफ नेशनल आइडेंटिटी कार्ड्स) के नियम 3 के उपनियम 4 के अनुसार यह तय किया गया है कि जनसंख्या रजिस्टर (PR) को तैयार और अपडेट किया जाए, तथा असम के अलावा पूरे देश में घर-घर गणना के लिए फील्डवर्क किया जाए. इसके तहत 1 अप्रैल 2020 से 30 सितंबर 2020 के बीच स्थानीय रजिस्ट्रार के दायरे में रहने वाले सभी लोगों के बारे में जानकारी जुटाई जाएगी.

असल में ‘सिटीजनशि‍प रूल्स 2003 (रजिस्ट्रेशन ऑफ सिटीजन्स ऐंड इश्यू ऑफ नेशनल आइडेंटिटी कार्ड्स) का नियम 3 ‘नेशनल रजिस्टर फॉर इंडियन सिटीजन्स (NRIC)’ की अवधारणा के बारे में है और इसका उप-नियम 4 ‘नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटीजन्स की तैयारी’ की बात कहता है.

बस अंतर यह है कि इसे NRIC कहा जा रहा है और इसमें असम शामिल नहीं है. NRC अभी तक असम के लिए ही सीमित रहा है जो 1985 के असम समझौते के मुताबिक ही लाया गया था.

रियलिटी चेक: दोनों आपस में जुड़े हैं
गैजेट नोटिफिकेशन में कहा गया है कि NRIC की तैयारी की दिशा में पहला कदम ‘पॉपुलेशन रजिस्टर’ होगा. 2003 रूल्स के नियम 3 का उप-नियम (5) कहता है, ‘भारतीय नागरिकों के स्थानीय रजिस्टर में जनसंख्या रजिस्टर से उपयुक्त वेरिफिकेशन के बाद लोगों का विवरण शामिल होगा.

गैजेट नोटिफिकेशन में यह बात भी साफ है कि जनसंख्या रजिस्टर (PR) के लिए घर-घर जाकर गणना ‘1 अप्रैल 2020 से 30 सितंबर, 2020’ तक की जाएगी. यह NRIC की दिशा में पहला कदम होगा जैसा कि उप नियम (5) कहता है कि इसे जनसंख्या रजिस्टर से ‘उपयुक्त वेरिफिकेशन’ के बाद तैयार किया जाएगा.

क्या है जनसंख्या रजिस्टर और NRIC?
सिटीजनशि‍प (रजिस्ट्रेशन ऑफ सिटीजन्स ऐंड इश्यू ऑफ नेशनल आइडेंटिटी कार्ड्स) रूल्स 2003 में जनसंख्या रजिस्टर को इस तरह से परिभाषि‍त किया गया है: ‘जनसंख्या रजिस्टर का मतलब यह है इसमें किसी गांव या ग्रामीण इलाके या कस्बे या वार्ड या किसी वार्ड या शहरी क्षेत्र के सीमांकित इलाके में रहने वाले लोगों का विवरण शामिल होगा.’

NRIC के बारे में इसमें कहा गया है: ‘ नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटीजन्स का मतलब है कि इस रजिस्टर में भारत और भारत के बाहर रहने वाले भारतीय नागरिकों का विवरण होगा.’ NRIC को चार हिस्सों में बांटा जाएगा: (a) भारतीय नागरिकों का स्टेट रजिस्टर (b) भारतीय नागरिकों का डिस्ट्रि‍क्ट रजिस्टर (c) भारतीय नागरिकों का सब-डिस्ट्रिक्ट रजिस्टर और (d) भारतीय नागरिकों का स्थानीय रजिस्टर .

जनसंख्या रजिस्टर को NRIC में कैसे बदला जाएगा?
नियम 4 का उपनियम (3) कहता है: भारतीय नागरिकों के स्थानीय रजिस्टर की तैयारी और इसमें लोगों को शामिल करने के लिए जनसंख्या रजिस्टर में हर परिवार और व्यक्ति का जो विवरण है उसको स्थानीय रजिस्ट्रार द्वारा सत्यापित और जांच किया जाएगा.

कैसे होगी ‘संदिग्ध नागरिकों’ की पहचान और पुष्टि
2003 रूल्स के नियम 4 के उपनियम (4) में यह बहुत साफ है कि इस वेरिफिकेशन और जांच प्रक्रिया में क्या होगा: ‘वेरिफिकेशन प्रक्रिया के तहत जिन लोगों की नागरिकता संदिग्ध होगी, उनके विवरण को स्थानीय रजिस्ट्रार आगे की जांच के लिए जनसंख्या रजिस्टर में उपयुक्त टिप्पणी के साथ देंगे. ऐसे लोगों और उनके परिवार को वेरिफिकेशन की प्रक्रिया खत्म होने के तत्काल बाद एक निर्धारित प्रो-फॉर्मा में दिया जाएगा.

मनमानेपन की गुंजाइश
इस तरह प्रक्रिया स्पष्ट है: ‘संदिग्ध नागरिकों’ का नाम जनसंख्या रजिस्टर में आगे की जांच के लिए टिप्पणी के साथ होगा और इसके बाद इसकी जानकारी उसके परिजनों को भी दी जाएगी.

लेकिन यहीं मनमानेपन का रास्ता दिखता है. इसकी वजह यह है कि (a) यह साफ नहीं है कि ‘संदिग्ध नागरिक’ मानने या पहचान करने का आधार क्या होगा, (b) किस तरह का खास प्रो-फॉर्मा होगा, वह अभी तक सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आया है. साफ है कि जब तक इस बारे में ब्योरा नहीं आता और छप नहीं जाता इस प्रक्रिया को अपारदर्शी ही माना जाएगा.

2003 रूल्स का उद्देश्य NRIC प्रोजेक्ट को लागू करने के लिए व्यावहारिक निर्देश और प्रक्रिया उपलब्ध करना है. लेकिन किसी विशेष प्रक्रिया के उपलब्ध न होने से यह साफ है कि इसमें मनमानेपन की गुंजाइश है जो स्थानीय अधि‍कारियों की झक और मनमौज पर आधारित हो सकती है. हालांकि इसे और एनआरआईसी लाने के जुलाई 2019 के गैजेट नोटिफिकेशन को कोलकाता हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.

यह मनमानापन और भी बढ़ सकता है, क्योंकि नियम 4 का उपनियम (5) कहता है कि ‘संदिग्ध नागरिकों’ को NRIC में शामिल करने या न करने के अंतिम निर्णय से पहले उनकी सुनवाई सिटीजन रजिस्ट्रेशन के सब-डिस्ट्रिक्ट (तहसील या तालुका) रजिस्ट्रार के यहां होगी, लेकिन इसमें यह साफ नहीं किया गया है कि इस प्रक्रिया के पालन के लिए किस तरह के दस्तावेज की जरूरत होगी.

इसके विपरीत असम में देखें तो दस्तावेज मांगने और वेरिफिकेशन की पूरी प्रक्रिया काफी स्पष्ट और पारदर्शी थी, लेकिन इसके बावजूद वहां बड़ी संख्या में लोगों को फॉरेनर्स ट्राइब्यूनल की शरण में जाना पड़ा है.

NRIC प्रक्रिया में अगली बात कही गई है: ‘भारतीय नागरिकों के स्थानीय रजिस्टर का प्रारूप तहसील या तालुका रजिस्ट्रार द्वारा प्रकाशित किया जाएगा, ताकि उसके बारे में लोगों की किसी तरह की आपत्ति या इसमें शामिल करने के अनुरोध को स्वीकार किया जाए… ‘ 2003 रूल्स के नियम 4 का उपनियम (6) (a).

जनगणना का ब्योरा जैसे लोगों का नाम, उनका पता या अन्य ब्योरा प्रकाशि‍त नहीं किया जाता या किसी भी अन्य प्रक्रिया के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता. इसके अलावा जनगणना एक अलग कानून (सेंसस एक्ट ऑफ 1948) के तहत किया जाता है.

दूसरी तरफ, PR/NPR और NRIC को 1955 के सिटीजनशि‍प (संशोधन) एक्ट (2003 का CAA) और 2003 रूल्स के तहत किया जा रहा है.

साल 2003 में तत्कालीन एनडीए सरकार के दौरान सिटीजनशि‍प एक्ट 1955 में एक सिटीजनशि‍प (संशोधन) एक्ट 2003 (CAA of 2003) लाया गया और इसके द्वारा (a) ‘अवैध प्रवासी’ और (b) भारतीय नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (NRIC) इसमें शामिल किया गया.

साल 2003 के CAA के खंड 2 में कहा गया है: ‘अवैध प्रवासी’ का मतलब ऐसे भारतीय से है जो भारत में घुसा हो – 1. बिना वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज और अन्य किसी दस्तावेज के जो कि कानून के मुताबिक जरूरी हो 2. कानून के मुताबिक वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज या अन्य दस्तावेज के साथ तो आया हो, लेकिन निर्धारित अवधि‍ से ज्यादा दिन तक रुक गया हो या रह रहा हो.

दूसरी तरफ, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) की प्रक्रिया सबसे पहले साल 2010-11 में यूपीए सरकार के दौर में शुरू की गई थी. लेकिन वरिष्ठ सूत्र बताते हैं कि इसे कभी भी NRIC की तैयारी तक आगे नहीं बढ़ाया गया, क्योंकि यूपीए सरकार ‘आधार’ जैसे बड़े प्रोजेक्ट में लग गई. इसके बाद फिर 2015 में NPR को अपडेट किया गया, लेकिन इस बार भी यह NRIC के स्तर तक नहीं पहुंचा.

पिछले दरवाजे से NRIC
रोचक बात यह है कि न तो मुख्य कानून ‘सिटीजनशिप एक्ट 1955’ में जनसंख्या रजिस्टर का उल्लेख था और न हीं इसका उल्लेख 2003 के संशोधन के बाद है. इसे 2003 रूल्स के द्वारा लाया गया था.

पश्चिम बंगाल के नागरिक अधि‍कार संगठन एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (APDR) ने इस बात को उजागर किया था कि किस तरह से जनगणना 2021 के बहाने पश्चिम बंगाल में पिछले दरवाजे से एनआरआईसी को लाने की कोशि‍श की जा रही है. APDR के रंजीत सूर सवाल उठाते हैं कि सिर्फ 2003 रूल्स के सहारे इस तरह के देशव्यापी कवायद का कानूनी आधार कितना मजबूत है. वह कहते हैं कि उन्होंने कई वकीलों से बात की और सबने इस पर संदेह जारी किया है क्योंकि मुख्य कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.

इस बात के उजागर होने के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) का काम रोक दिया था. अब बिहार, ओडिशा, पंजाब, तेलंगाना, केरल और दिल्ली सहित 10 राज्यों के मुख्यमंत्री ने NPR और NRIC का विरोध किया है.

इस बारे में हम गृहमंत्री के बयान को अगर नजरअंदाज भी कर दें तो भी 2003 के CAA के द्वारा ‘अवैध प्रवासी’ और NRIC के बीच साफ लिंक स्थापित किया गया है. CAA (of 2019) में नागरिकता हासिल कर सकने वाले ‘प्रवासियों’ की सूची से मुसलमानों को छांट दिया गया है.

आजतक-इंडिया टुडे को वे दस्तावेज हासिल हुए है जो जिलाधि‍कारियों और एडिशनल डिस्ट्रि‍क्ट मजिस्ट्रेट (ADM) को भेजे गए हैं. इस दस्तावेज में यह बताया गया है कि ‘नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर-2020 को तैयार करने के लिए लोगों से क्या जानकारी हासिल करनी है.

इसके पेज नंबर 2, कॉलम 3 में कहा गया है, ‘माता-पिता के जन्म का स्थान, यदि भारत में है तो राज्य और जिले का नाम लिखे. यदि भारत से बाहर का है, तो देश का नाम लिखें और जिले का कॉलम हाइफन (-) लगाकर खाली छोड़ें.

यह इस बात का घातक संकेत है कि NPR-2020 को अवैध प्रवासियों के पहचान के लिए लाया गया है. एक बार जब यह हो जाएगा तो CAA (2019) के द्वारा सभी ‘अवैध और संदिग्ध मुस्लिमों’ को छांटकर बाहर कर दिया जाएगा और उन्हें देश भर में बने डिटेंशन सेंटर में भेज दिया जाएगा.

सच तो यह है कि पॉपुलेशन रजिस्टर के गैजेट नोटिफिकेशन छपने (31 जुलाई 2019) के 2 दिन पहले एक प्रमुख राष्ट्रीय अखबार ने यह खुलासा किया कि केंद्र सरकार ने सभी राज्यों एवं केंद्र शासि‍त प्रदेशों से यह कहा है कि वे अवैध प्रवासियों को रखने लायक कम से कम एक डिटेंशन सेंटर अपने राज्य में बनाएं.

तो जो लोग असम के एनआरसी टेस्ट या देश भर में चलने वाले NRIC टेस्ट में फेल होंगे उनके लिए कम से कम 12 डिटेंशन सेंटर तो तैयार हैं (असम में 10, नवी मुंबई में 1 और बंगलुरु ग्रामीण में 1).

2003 रूल्स में 12 तरह की जानकारी मांगते हुए कहा गया है: ‘इसमें (जनसंख्या रजिस्टर में) 12 तरह के विवरण होंगे: नाम, पिता का नाम, माता का नाम, लिंग, जन्म स्थान, जन्मतिथि‍, आवास का पता (स्थायी और अस्थायी), वैवाहिक स्थिति (यदि विवाहित हैं तो पति-पत्नी का नाम), शरीर पर पहचान का कोई चिह्न, नागरिक के रजिस्ट्रेशन की तिथि‍, रजिस्ट्रेशन का सीरियल नंबर और नियम 13 के तहत उपलब्ध राष्ट्रीय पहचान संख्या.

दूसरी तरफ, ऑफिस ऑफ रजिस्ट्रार जनरल ऐंड सेंसस कमिश्नर की वेबसाइट को अपडेट कर उसमें एनपीआर के बारे में जानकारी दी गई है. इसमें ‘राष्ट्रीयता’ जैसी 15 तरह की जानकारियां मांगी गई हैं, लेकिन इसमें भी कहीं माता-पिता के जन्म स्थान का ब्योरा देने की बात नहीं कही गई है.

एनपीआर के शुरुआत के बारे में जानकारी अखबारों में व्यापक तौर पर छप चुकी है. 11 अक्टूबर 2019 की पीटीआई की एक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘आरजीआई ने देश के 1,200 गांवों, 40 कस्बों और शहरों में 5,218 गणना ब्लॉक के द्वारा एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है जिसमें लोगों के बारे में कई तरह के आंकड़े जुटाए जा रहे हैं. इस बारे में अंतिम गणना अप्रैल 2020 में शुरू होगी और सितंबर 2020 में खत्म होगी.

इसमें यह भी कहा गया है कि: ‘नेशनल ट्रेनर्स की ट्रेनिंग 14 अक्टूबर, 2019 को शुरू होगी और राज्य के वरिष्ठ अधि‍कारियों को ट्रेनिंग के शेड्यूल के बारे में जानकारी दे दी गई है.’

तो यह कहना सच नहीं है कि NPR या NRIC/NRC की प्रक्रिया की घोषणा नहीं हुई है या यह शुरू नहीं हुई है. यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. घर-घर जाकर वास्तविक गणना अप्रैल 2020 तक से शुरू होगी.

तो कुल मिलाकर यह साफ है कि देश भर में NRIC (असम को छोड़कर) लाने की प्रक्रिया NPR-2020 के साथ ही शुरू हो चुकी है. सीएए तो आ ही चुका है. तो ये दोनों मिलकर ‘संदिग्ध’ या ‘अवैध’ मुसलमानों की छंटाई करेंगे और उन्हें रखने के लिए डिटेंशन सेंटर तैयार हैं.