सऊदी अरब को शामिल करने के लिए क्‍यों आतुर हैं ब्रिक्‍स देश, दक्षिण अफ्रीका में होगा फैसला, समझें रणनीति

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(www.arya-tv.com) ब्रिक्स शिखर सम्मेलन 2023 के लिए सदस्य देशों के नेता 22-24 अगस्त को दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में मिलेंगे। ब्रिक्स समिट के दौरान इस साल कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए जा सकते हैं। इसमें ब्रिक्स का विस्तार भी शामिल है। ब्रिक्स के दरवाजे सऊदी अरब और अफ्रीकी यूनियन के लिए खोले जा सकते हैं। इसके साथ ही स्थानीय मुद्रा में व्यापारिक लेनदेन और व्यापार को बढ़ावा देने से जुड़ी चिंताओं पर बात हो सकती है। शिखर सम्मेलन में ब्राजील, भारत और चीन के नेता हिस्सा लेंगे।

ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा, पीएम नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा के साथ बैठक करेंगे। इस बैठक में रूसी राष्ट्रपति पुतिन हिस्सा नहीं लेंगे, लेकिन उनका प्रतिनिधित्व रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव करेंगे। रिपोर्ट्स के मुताबिक अधिकारियों का कहना है कि शिखर सम्मेलन के दौरान सऊदी अरब, मिस्र और अर्जेंटीना के औपचारिक रूप से ब्रिक्स का सदस्य बनने का रास्ता साफ हो सकता है।

22 देश होना चाहते हैं शामिल

हालांकि इन देशों को सीधे न जोड़कर चरणबद्ध तरीके से जोड़ा जाएगा, जिसमें इन देशों को पहले पर्वेक्षक या डायलॉग पार्टनर्स की तरह जोड़ा जाएगा और फिर बाद में पूरी सदस्यता दी जाएगी। कम से कम 22 देशों ने आधिकारिक तौर पर इस गुट में शामिल होने का अनुरोध किया है। गुरुवार को चीन की ओर से पुष्टि की गई है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग ब्रिक्स समिट में भाग लेंगे। हालांकि यह शी जिनपिंग की दक्षिण अफ्रीका में राजकीय यात्रा भी होगी, इसलिए वह 21 अगस्त को जोहान्सबर्ग पहुंचेंगे और दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति रामाफोसा के साथ द्विपक्षीय बैठक करेंगे।

ब्रिक्स के लिए सऊदी महत्वपूर्ण

दक्षिण अफ्रीका और चीन का मजबूत रणनीतिक संबंध है। दक्षिण अफ्रीका चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल होने वाले पहले देशों में एक था। जिनपिंग और रामाफोसा की बैठक ब्रिक्स से अलग होगी, लेकिन इसका असर ब्लॉक पर पड़ सकता है। सऊदी अरब का शामिल होना BRICS के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अधिकारियों का कहना है कि सऊदी के पास खूब पैसा है और इसके शामिल होने से BRICS का न्यू डेवलपमेंट बैंक विश्व बैंक या आईएम एफ के विकल्प की तरह स्थापित हो सकता है। ब्रिक्स सदस्यों का मानना है कि NDB को अत्यधिक फंड की जरूरत है, ताकि वे विकासशील देशों को प्रभावी ढंग से समर्थन दे सकें।