किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर बोलीं-जो छक्का बोलकर चिढ़ाते थे, वह अब आशीर्वाद लेते हैं

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(www.arya-tv.com)“6 महीने की मासूम बच्ची थी, जब मुझे पापा ने घर से निकाल दिया और किन्नरों को सौंप दिया। बचपन से ही लावारिश जैसी हो गई। किन्नरों की उस्ताद सलमा ने अपने बच्चों की तरह मेरा पालन-पोषण किया। मेरी उम्र 6-7 साल की होने पर सामान्य बच्चों के बीच में खेलने जाती तो वो बच्चे और उनके मां-बाप मुझे उनके साथ खेलने के लिए मना करते थे। मैं आकर अपने गुरु से कहती तो वह भी सही जवाब नहीं देती थीं। सिर्फ इतना कहकर मुझे चुप करा देती थीं कि हम लोग स्पेशल हैं। थोड़ी समझने लायक हुई तो पता चला कि मैं तो किन्नर हूं। समाज में हर जगह उपेक्षा ही मिलती रही। मगर अब VVIP हमसे आशीर्वाद लेने आते हैं। वही समाज जो कभी मुझे अपमानित करता था, वही आज मेरे साथ सेल्फी लेने में गर्व महसूस करता है।

किन्नर थी, इसलिए नहीं मिला मां-बाप का प्यार
टीना मां कहती हैं,”मेरा जन्म देहरादून शहर के विकास नगर में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। पिता पंडित टेकनारायण शर्मा सेना में थे। मेरे दो भाई और दो बहनें हैं। मेरा जन्म हुआ तो 6 माह बाद ही मेरे पापा ने मुझे किन्नरों की उस्ताद सलमा को सौंप दिया। मेरी मां नहीं चाहती थी कि मुझे इस तरह से घर से दूर किया जाए। लेकिन सामाजिक लोक-लाज के चलते पापा को मुझे खुद से दूर करना पड़ा। मेरी गुरु (सलमा) ने मेरा पालन पोषण किया। मेरे सभी कागजों में मेरे गुरु का ही नाम है। उनके साथ-साथ रहती थी। वह जहां जाती थीं, हम भी उनके साथ जाते। आज भी वह मेरे साथ है। मैं किन्नर थी इसलिए मुझे मां-बाप और भाई-बहन का प्यार नहीं मिल सका।”

‘स्कूल ने एडमिशन से मना किया तो गुरुजी ने ट्यूशन लगवाई’
टीना मां कहती हैं कि मेरी गुरु मेरा दाखिला स्कूल में कराना चाहती थीं। लेकिन स्कूल में यह कहकर मना कर दिया गया कि इनका एडमिशन मैं नहीं कर सकता। गुरु ने घर में मुझे ट्यूशन कराया। काफी विषम परिस्थितयों के बीच मैंने इंटर तक की पढ़ाई कर ली।

वह कहती हैं “जब मैं सड़क पर चलती थीं तो और बच्चे छक्का, हिजड़ा, मामू आदि नामों से संबोधित करके मुझे चिढ़ाते थे। मैं अकेले में बैठकर रोती थी। क्योंकि मेरे पास मां-बाप तो नहीं थे जिन्हें जाकर मैं अपनी पीड़ा बताती।”

“मैं सुसाइड करना चाहती थी”
“समाज में मुझे इतना अपमानित होना पड़ता था। सड़क पर कुछ लोग सड़ा टमाटर फेंकते थे और अपशब्द भी बोलते थे। मुझे लगा कि यह समाज मेरे लिए नहीं है। एक दिन हमने ठान लिया कि इस जिंदगी से बेहतर ताे मौत ही होगी। हमने सुसाइड करने का मन बना लिया। लेकिन यह बात मेरी गुरु को पता चल गया। उन्होंने मुझे समझाया कि हारना नहीं है। तुम्हें कुछ अलग करना होगा, इसी समाज के लिए तुम अच्छा करो, देखना सब तुम्हारी इज्जत करेंगे। मैंने संकल्प लिया कि अब मैं अलग ही रास्ते पर चलूंगी।” मैं लोगों की मदद करती थी। सभी के सुख और दु:ख में खड़ी रहती थी। मैंने अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बनाई और आगे बढ़ती गई। सनातन धर्म को आगे बढ़ाने का काम किया।

पीठाधीश्वर और महामंडलेश्वर बनी
मेरे कार्य को देखते हुए प्रयागराज में 2019 के कुंभ मेले में मुझे पीठाधीश्वर बनाया गया। 2021 में किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर बनी। प्रदेश सरकार ने किन्नर कल्याण बोर्ड का मेंबर भी बनाया है। आज समाज के हर वर्ग के लोग मेरे आश्रम में आते हैं। प्रयागराज के लोगों का स्नेह मिलता है। लोग विशेष अवसरों पर मुझे आंमत्रित करते हैं। आज मैं 40 किन्नर बच्चों की गार्जियन हूं। उनके आधार कार्ड पर मेरा नाम लिखा है। मैं ही उनकी मां हूं और उनका पिता भी।