विपुल लखनवी ब्यूरो प्रमुख पश्चिमी भारत
- क्या होते हैं रैट माइनर
उत्तराखंड की सिलक्यारा से बड़कोट के बीच में निर्माणाधीन सुरंग धंसने के कारण 17 दिन तक 41 मजदूर फंसे रहे। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश निगरानी में विदेश से बड़ी-बड़ी मशीन मंगाई गईं। पहले दिन से आपदा प्रबंधन दल श्रमजीवी को निकालने के लिए जुट गया। 16 दिन तक जूझते रहे आधुनिक तकनीकी से निकालने का प्रयास करते रहे लेकिन परेशानियां आती रही और सफलता हाथ नहीं लगी। अंत में प्राचीन भारतीय पद्धति जिसके द्वारा पहले चट्टानों से कोयला निकाला जाता था जिसमें किसी चूहे की भांति केवल एक आदमी के उतरने का गढ्ढा बनाया जाता है जो केवल अधिक से अधिक तीन से चार फीट चौड़ा होता है उसमें रस्सी की सीढ़ियों के सहारे उतरा जाता है और नीचे से कोयला ऊपर भेजा जाता है।
अब क्योंकि इनकी पद्धति किसी चूहे की भांति बहुत तीव्र और कुशल होती है इस कारण इन लोगों को अंग्रेजों ने रैट माइनर यानी चूहे की भांति खानों में छेद करने वाले व्यक्तियों की संज्ञा दी।
हालांकि आधुनिक समय में सेफ्टी यानी संरक्षण के नाम पर इस पद्धति पर कानूनी बैन लग गया और यह अवैध घोषित कर दी गई थी।
हिंदी में कहावत है मरता क्या ना करता जब आधुनिक विज्ञान पूरी तरीके से फेल हो गया और समय हाथ से निकलता जा रहा था तब इन्हीं रैट होल माइंनर्स को लगाया गया और इन्होंने बहुत तेजी के साथ 57 मी सुरंग के अंदर किसी व्यक्ति के आने-जाने के लिए रास्ता बना दिया।
ज्ञात हो 41 श्रमिक सुरंग के अंदर सिलक्यारा पोर्टल से 260 मीटर से 265 मीटर अंदर रिप्रोफाइलिंग का काम कर रहे थे, तभी सिलक्यारा पोर्टल से 205 मीटर से 260 मीटर की दूरी पर मिट्टी का धंसाव हुआ और सभी 41 श्रमिक अंदर फंस गए। यह घटना 12 नवंबर को सुबह 5:30 बजे घटित हुई।
सुरंग के सिल्क्यारा हिस्से में 60 मीटर की दूरी में मलबा गिरने के कारण यह घटना हुई थी। घटना की सूचना तुरंत राज्य और केंद्र सरकार की सभी संबंधित एजेंसियों लगी और उपलब्ध पाइपों के जरिए सुरंग में फंसे हुए श्रमिकों को ऑक्सीजन, पानी, बिजली, पैक भोजन की आपूर्ति के साथ बचाव कार्य शुरू किया गया। फंसे हुए श्रमिकों से वॉकी-टॉकी के माध्यम से भी संचार स्थापित किया गया है। कुल मिलाकर 16 दिन यही सब होता रहा।
बाद में पूर्वोत्तर के राज्य मेघालय में प्रचलित रैट माइनर पद्धति, जो वास्तव में गैरकानूनी है, उसको अपनाना पड़ा।
वास्तव में यह देखा गया कि बरसात में रैट होल माइनिंग के कारण खनन क्षेत्रों में पानी भर जाता था जिसके चलते श्रमिकों की जानें चली जाती थी। इसी कारण है कि साल 2014 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने मेघालय में इस पद्धति से होने वाली खुदाई पर पाबंदी लगा दिया।
सिलक्यारा बचाव अभियान में लगातार विफल होते विकल्पों के बीच सोमवार को छह सदस्यीय रैट माइनर्स की टीम को तैनात किया गया। आधुनिक मशीनों के फेल होने के बाद हाथ से खुदाई कराने का फैसला किया गया। श्रमिकों की कुशल टीम रैट होल माइनिंग पद्धति का इस्तेमाल करके हाथ से मलबा हटाने का काम किया।
विशेषज्ञों के अनुसार कि एक आदमी खुदाई करता है, दूसरा मलबा इकट्ठा करता है और तीसरा उसे बाहर निकालने के लिए ट्रॉली पर रखता है। विशेषज्ञ मैन्युअली मलबे को हटाने के लिए 800 मिमी पाइप के अंदर काम कर रहे थे। इस दौरान एक फावड़ा और अन्य विशेष उपकरण का उपयोग किया जा रहा था ऑक्सीजन के लिए एक ब्लोअर भी लगाया गया था।
इस प्रकार की ड्रिलिंग काफी मेहनत वाला काम है और खुदाई करने वालों को बारी-बारी से खुदाई करनी पड़ती है। हालांकि, ये खनिक ऐसे कामों के लिए कुशल होते हैं।
कुल मिलाकर सभी श्रमजीवियों को सकुशल बाहर निकाल लिया क्या यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है और मैं समझता हूं पूरे विश्व के लिए यह एक उदाहरण भी बन सकती है। चलिए हम और आप मिलकर इन रैट माइंनर्स को नमन करने के साथ आपदा प्रबंधन टीम सहित तमाम सहायता दलों को और स्थानीय निवासियों को सहयोग हेतु प्रणाम करते हैं।