हाईकोर्ट के जज ने यह क्या कह दिया, यौन इच्छा पर काबू रखने संबंधी टिप्पणी को सुप्रीम कोर्ट ने आपत्तिजनक माना

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(www.arya-tv.com) कोलकाता हाईकोर्ट की उस टिप्पणी को सुप्रीम कोर्ट ने गलत करार दिया, जिसमें हाईकोर्ट ने कहा था कि किशोरियों को यौन इच्छाओं पर काबू रखना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की इस टिप्पणी का खुद संज्ञान लेते हुए कहा कि आदेश में की गई टिप्पणियों के कई हिस्सों में समस्या है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि किशोरियों की यौन इच्छाओं पर जज को नैतिकता का पाठ नहीं पढ़ाना चाहिए।

मामला क्या है

कोलकाता हाईकोर्ट ने 18 अक्टूबर 2023 को दिए एक फैसले में किशोर अवस्था की महिला को यौन व्यवहार के बारे में सलाह दी थी। पोक्सो मामले में 20 साल जेल की सजा पाए एक शख्स को बरी करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि किशोर अवस्था की महिलाओं को अपनी सेक्सुअल इच्छाओं पर कंट्रोल रखना चाहिए। हाईकोर्ट के फैसले के बाद इस पर देश भर में चर्चा गर्म हुई।

टिप्पणी पर नाराजगी

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की टिप्पणी पर दिसंबर की शुरुआत में संज्ञान लिया था। बाद में पश्चिम बंगाल सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट की इन टिप्पणियों को चुनौती दी।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि जजों से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि वे उपदेश देंगे। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए.एस. ओका की अगुआई वाली बेंच ने हाईकोर्ट की टिप्पणी को गैर-जरूरी और आपत्तिजनक बताया।

संविधान के खिलाफ

टिप्पणी की आलोचना करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद-21 यानी लाइफ एंड लिबर्टी के तहत मिले अधिकार का उल्लंघन करती है।

जजों से उम्मीद की जाती है कि वे विधान और कानून के तय सिद्धांत के हिसाब से चलेंगे न कि सेक्सुअल ऑफेंस के मामले में अपना ओपिनियन देंगे और नैतिकता का पाठ पढ़ाएंगे। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई 12 जनवरी को होनी है।

संवेदना की कमी

पहले भी कई बार ऐसे मामले देखने को मिले हैं जिनमें हाईकोर्ट द्वारा टिप्पणी की गई, मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और फिर शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट की टिप्पणी पर स्टे दिया।

पिछले साल जून में इलाहाबाद हाईकोर्ट की उस टिप्पणी और आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी, जिसमें हाईकोर्ट ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से यह पता लगाने को कहा था कि कथित रेप विक्टिम मांगलिक है या नहीं।

दूसरे पेशों में भी ऐसे उदाहरण हैं। एक महिला गाइनोकॉलजिस्ट के पास गई तो उसने उपदेश देना शुरू किया कि महिला को शादी से पहले सेक्स नहीं करना चाहिए। हालांकि गाइनोकॉलजिस्ट का काम मेडिकल ओपिनियन देना है, न कि नैतिकता का पाठ पढ़ाना।

उपदेश की आदत

दरअसल, ऐसा देखने में आता रहा है कि जब भी कोई शख्स किसी पद पर आसीन होता है तो वह अपने काम तक सीमित नहीं रहता बल्कि अपने मंच का उपयोग उपदेश देने के लिए करने लगता है।

यह भी कहा गया है कि पैरंट्स को यह नहीं समझना चाहिए कि वे बच्चों के टीचर हैं क्योंकि पैरंटिंग और टीचिंग अलग-अलग चीजें हैं।

बहुमत की नैतिकता

हालांकि विधायिका भी बहुमत की नैतिकता के मद्देनजर कानून बनाती है। उसके जरिए इस तरह नैतिकता और नीति कानून का स्वरूप लेती है। कई बार जज इसके लिए खुद सिफारिश करते हैं।

पहली बार जब तलाक का केस अदालत के सामने आया था, तब जज ने कहा था कि भारत में इसके लिए कानून नहीं है कि हम तलाक की डिक्री पारित करें। उन्होंने कहा था कि वह विधायिका से तलाक का कानून बनाने पर विचार करने की सिफारिश करेंगे।

यौन स्वायत्तता

सुप्रीम कोर्ट भी कई बार कह चुका है कि संवैधानिक नैतिकता के नजरिये से मामले को देखना होता है। इससे भी आगे जाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा है कि स्वायत्तता का अधिकार, व्यक्तिगत इच्छा का अधिकार और गरिमा का अधिकार संवैधानिक अधिकार हैं। इस दायरे में यौन स्वायत्तता भी आती है।

व्यक्तिगत इच्छा

यौन स्वायत्तता हर व्यक्ति की गरिमा के मूल में है। यहां तक कि शादी के बाद भी यौन स्वायत्तता संवैधानिक अधिकार है। सेक्सुअल पसंद व्यक्तिगत इच्छा है और इसे मानवीय व्यक्तित्व से अलग नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट यौन इच्छा और सेक्सुअल ओरिएंटेशन को लेकर अहम फैसला पहले दे चुका है। 24 अगस्त 2017 के ऐतिहासिक फैसले में कोर्ट ने कहा था कि सेक्सुअल ओरिएंटेशन (अनुकूलन) निजता का महत्वपूर्ण अंग है। व्यक्ति की चाहत उसकी निजता है।

नीतिशास्त्र और नैतिकता

क्या नीतिशास्त्र (इथिक्स) और नैतिकता (मोरैलिटी) का एक ही मतलब है? नीतिशास्त्र के मूल्य कभी नहीं बदलते। वे सार्वभौमिक हैं। नैतिकता बदलती रहती है क्योंकि उसकी अवधारणा परिवर्तनशील है।

नैतिकता वास्तव में नीतिशास्त्र से ज्यादा व्यक्तिपरक है क्योंकि यह मूल्यों और व्यवहार पर आधारित होती है जिस समुदाय, समाज व धर्म से उसका ताल्लुक होता है।

इसीलिए जिस बात को एक संस्कृति या समाज में अनैतिक माना जाता है, उसे दूसरी संस्कृति या समाज में सामान्य व्यवहार का हिस्सा समझा जा सकता है। इसके विपरीत नीतिशास्त्र सार्वभौमिक है क्योंकि इसके तहत क्या सही है और क्या गलत, यह पूरी तरह तय है।

फैसले का इंतजार

आज के दौर में शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाना कहीं से भी टैबू नहीं रहा है। इसी कारण सेक्स संबंध को लेकर परहेज करने से संबधित टिप्पणी पर विवाद हुआ है।

बहरहाल, हाईकोर्ट की टिप्पणी के बाद छिड़ी बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट ने यह तय किया है कि वह इस मामले में सुनवाई करेगा। मामले के पक्षकारों को नोटिस जारी किया जा चुका है।

ऐसे में आने वाले दिनों में जब भी सुप्रीम कोर्ट इस मामले में फैसला देगा तो वह आगे के लिए नजीर बन सकता है।