उज्जैन: 12 साल की एक बच्ची के साथ दरिदंगी की घटना, देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई महाकाल!

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(www.arya-tv.com) हम कितने बुजदिल हो गए हैं। हम कितने बेशर्म हैं। हमारे दिलों में इंसानियत मर गई है। उज्जैन की वो बच्ची वहशियों की दरिंदगी के बाद मदद के लिए दर-दर भटक रही थी।

पर इस पवित्र नगरी के लोगों के दिल में इस नन्हीं बच्ची के लिए कोई दर्द नहीं था। हाय ये उज्जैन! क्या हो गया तुम्हें? दिन के उजाले में खून से लथपथ बच्ची की चीखों पर जब तुम्हारे दिल से आवाज नहीं निकली तो धिक्कार है हम सभी के इंसान होने पर।

धिक्कार है! हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में कार्टूनिस्ट संदीप अध्वर्यु का भी दर्द कुछ इसी तरह निकला है। अपने कार्टून के जरिए उन्होंने इस हैवानियत और हम सभी को शर्मसार किया है।

हे भगवान!

ये कार्टून समाज के मुंह पर तमाचा है। वो बच्ची महज 12 साल की है। वहशियों ने दरिदों ने उसकी जो हालत की है, उसे सुनकर खून खौल रहा है। अरे ओ उज्जैनवालो कहां मर गई थी तुम्हारी इंसानियत! उस अर्धनग्न बच्ची को कपड़ो तो पहना देते।

ये तस्वीर हमारे समाज पर ऐसा धब्बा है, ऐसा नासूर है जो कभी नहीं मिट पाएगा। उस बच्ची की चीखें, उसके रोने की आवाजें कलियुग के सीने को चीर रही हैं।

धर्मनगरी में ये कैसा अधर्म?

धर्म की नगरी उज्जैन में इस अधर्म को देख ईश्वर की आंखों में भी आंसू आ गए होंगे। आखिर इस 12 साल की बच्ची का क्या दोष था? कहीं खेलने गई होगी, किसी दोस्त से मिलने गई होगी। उन वहशी दरिंदो ने इस नाबालिग के साथ जो हरकत की है, उसकी सजा तो केवल मौत हो सकती है।

लेकिन इस सबसे पहले उन गलियों और मोहल्ले में रहने वाले उन लोगों का क्या? जिनके दिल में इंसानित मर गई थी। उन गलियों में पानी से बच्ची के जिस्म से निकले खून तो धो देंगे लेकिन इस दाग को क्या धुल पाएंगे?

8 किलोमीटर नंगे पैर पैदल घूमती रही!

अरे इससे बड़ा अपराध नहीं हो सकता। कई बार लावारिस लाश पर हम अपने कपड़े डाल देते हैं। ये तो जिंदा बच्ची थी। एक कपड़ा तो उसके बदन पर डाल देते। सीसीटीवी फुटेज में दर-दर भटकती की उस बच्ची को देख किसी की भी आंखें भर आएंगी।

लेकिन उज्जैन के लोगों का दिल नहीं पसीजा। अंत तक किसी ने भी उस बच्ची की मदद नहीं की। मदद मांगते-मांगते थककर वह बच्ची बेहोश होकर बंदानगर में सड़क पर गिर गई।

हे बेटी! हम शर्मिंदा हैं

संदीप अध्वर्यु ने अपने कार्टून की हेडिंग में लिखा है। 12 साल की लड़की। रेप और खून से लथपथ। मदद मांग रही थी। उज्जैन के स्थानीय लोगों ने उसकी मदद नहीं की। हे राम। आखिर ये समाज क्या मुंह दिखाएगा।

इस बेटी के साथ वहशीपना करने वाला दरिंदा दो गिरफ्तार हो गया है लेकिन समाज ने जो अपना रूप दिखाया है उसका क्या? उस बच्ची जेहन में जो घाव बना है, उसका क्या? जिन चांद और मगंल मिशन के लिए हम महिलाओं की वीरता की गाथा गा रहे हैं, क्या वो महिलाएं इस घटना से दुखी नहीं होगी।

आखिर क्यों? आखिर क्यों? किसी ने दरवाजा तक नहीं खोला। ये खून के धब्बे हमारे समाज पर एक ऐसा दाग लगा दिया है, जिसकी हम भरपाई नहीं कर सकते हैं।