मंत्री की बहू ने बताया द कश्मीर फाइल्स का पूरा सच, कहा- कश्मीरी पंडितों के लिए जगह-जगह दीवारों पर लिख दिया था इंडियंस…गो अवे

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(www.arya-tv.com) कश्मीर में 32 साल पहले वहां के हिंदुओं के नरसंहार और पलायन पर बनी विवेक रंजन अग्निहोत्री की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ पर बहस और प्रतिक्रियाओं का दौर जारी है। घाटी से हिंदुओं को निकालने की साजिश पर सवाल खड़े करने वालों को निवर्तमान औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना के छोटे भाई मधुकर महाना की पत्नी भावना ने आपबीती से आइना दिखाया है। लालबंगला निवासी भावना के मुताबिक, जो लोग यह कहते हैं कि 19 जनवरी, 1990 की घटना में कश्मीरी मुसलमानों का कोई हाथ नहीं था, वे सच नहीं जानते। सच तो यह है कि पड़ोसियों और उनके पिता के साथी व्यापारियों को घाटी से हिंदुओं को निकाले जाने की हो रही साजिश का पता महीनों पहले से था।

कश्मीर में जन्मीं और स्नातक तक वहीं पढ़ीं भावना ने एक न्यूज चैनल से बात करते हुए कहा कि पिता के साथ व्यापार करने वाले व्यापारी ने पहले ही कह दिया था कि लाला जी व्यापार के लिए परेशान मत हो। कुछ दिन बाद आपको यहां से जाना ही है। आश्चर्यचकित पिता ने कहा था कि भला वह घाटी से क्यों जाएंगे। 19 जनवरी, 1990 को यह बात समझ में आई कि पहले से कश्मीर के मुसलमानों को हिंदुओं से घाटी खाली कराने की साजिश का पता था। आतंकी संगठनों ने सेना और कश्मीरी पंडितों के लिए जगह-जगह दीवारों पर लिख दिया था, इंडियंस…गो अवे। बहुत भयावह माहौल था वो। 30 साल में जमाया व्यापार जान और इज्जत बचाने के लिए छोड़कर भागना पड़ा।

उन्होंने बताया कि पिता योगेंद्र मोहन सचदेवा वर्ष 1960 में भाई के पास कश्मीर गए थे। वहां फलों का व्यापार करने लगे। 1968 में उनकी शादी हुई। वहां पिता ने व्यापार जमाया और संपत्तियां खरीदीं। वर्ष 1987 तक वहां के संगठन कहते थे कि हिंदुओं से परेशानी नहीं है। उनकी लड़ाई सरकार से है लेकिन, 1988 का दौर ऐसा था, जब हत्याएं शुरू हो गई थीं। दरअसल, उनकी समस्या कश्मीरी हिंदू ही थे जो अनुच्छेद 370 के बावजूद संपत्ति और खेतों के मालिक थे। आतंकी संगठन उन्हें बाहर करना चाहते थे। हम जैसे बाहर से आए लोगों से ज्यादा समस्या नहीं थी, क्योंकि हमें अनुच्छेद 370 के तहत कभी भी बाहर किया जा सकता था। इस अनुच्छेद को पहले हटा दिया जाता तो हिंदुओं का नरसंहार और पलायन नहीं होता।

पूरे षड्यंत्र को पाकिस्तान का समर्थन मिल रहा था। क्षेत्रीय पुलिस ने भी इसे खुलकर समर्थन दिया। आज वही कश्मीरी हमारी संपत्तियों के मालिक बनकर बैठे हैं। कश्मीर के लोग ठंड में रहने के आदी होते हैं। जब हिंदुओं को भगाया गया तो वे कैंप में आ गए। आतंकियों ने जितने कश्मीरी हिंदुओं की हत्याएं कीं, उससे ज्यादा की जम्मू और दिल्ली के शिविरों में बदले मौसम के कारण हुई बीमारियों से मौत हो गई।

भावना के मुताबिक, मस्जिदों के लाउडस्पीकर से लगातार कश्मीरी हिंदुओं को घर और महिलाओं को छोड़कर भागने के लिए कहा जा रहा था। 19 जनवरी से 15 दिन पहले पूरा परिवार दिल्ली आ गया लेकिन, पिता रुक गए थे। 19 जनवरी की रात वह पूरी रात सूटकेस तैयार कर बैठे रहे। हमारे एक रिश्तेदार ने फोन किया कि कर्फ्यू पास बनवा लिया है। कार लेकर आ रहे हैं। दोबारा फोन नहीं करेंगे और न ही हार्न बजाएंगे। आप नीचे आ जाना। पिता उनके साथ वहां से दिल्ली आए।