सऊदी अरब के राजदूत से मिले पाकिस्तान के आर्मी चीफ

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  • पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कश्मीर मुद्दे पर साथ नहीं देने के लिए दो बार सऊदी अरब की आलोचना की थी
  • पाकिस्तान से नाराज सऊदी ने इसे कर्ज की रकम लौटाने को कहा था, पाकिस्तान ने चीन से उधार लेकर इसकी पहली किश्त चुकाई

(www.arya-tv.com) पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच बढ़ी दूरियों को आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा ने कम करने की पहल की है। बाजवा ने सोमवार को सऊदी अरब के राजदूत नवफ सईद अल- मलकी से मुलाकात की। पाकिस्तानी सेना के मुताबिक, बाजवा ने सऊदी के राजदूत से आपसी हितों, क्षेत्र में सुरक्षा की स्थिति और दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों को मजबूत करने पर चर्चा की। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कश्मीर मुद्दे पर साथ नहीं देने के लिए दो बार सऊदी अरब की आलोचना की थी। प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी इसे लेकर सऊदी अरब पर तंज कसा था। इससे सऊदी अरब पाकिस्तान से नाराज है।

कुरैशी के बयान को पाकिस्तान की कई विपक्षी पार्टियों ने देश के हितों के खिलाफ बताया था। विपक्ष ने इमरान सरकार पर सऊदी और यूएई से पाकिस्तान के रिश्ते खराब करने का आरोप लगाया था। विपक्षी पार्टियों ने कहा था कि मुल्क को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

पाकिस्तान को चुकाना पड़ा सऊदी अरब का कर्ज

सऊदी अरब ने पाकिस्तान से 3 अरब डॉलर (करीब 22 हजार करोड़ रुपए) लौटाने को कहा था। सऊदी अरब ने पाकिस्तान को यह रकम डेढ़ साल पहले उस समय दी थी, जब पाकिस्तान दिवालिया होने की कगार पर था। इसके बाद पाकिस्तान को चीन से एक अरब डॉलर उधार लेकर सऊदी के कर्ज की पहली किश्त चुकानी पड़ी।

क्यों बिगड़े सऊदी और पाकिस्तान के रिश्ते?

पाकिस्तान और सऊदी के रिश्तों में कड़वाहट कश्मीर मुद्दे पर शुरू हुई। दरअसल, पाकिस्तान चाहता है कि इस मुद्दे पर चर्चा के लिए ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज (ओआईसी) की अर्जेंट मीटिंग बुलाई जाए। लेकिन, सऊदी अरब ओआईसी मीटिंग बुलाने और इस मुद्दे पर विचार के लिए तैयार नहीं हैं। इसने साफ तौर पर पाकिस्तान को इसके लिए मना कर दिया है।

कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को नहीं मिल रहा समर्थन

पिछले साल जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह मुद्दा उठा रहा है। हालांकि इसे समर्थन नहीं मिल रहा। इसी हफ्ते पाकिस्तान ने यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में कश्मीर मुद्दा उठाने की कोशिश की थी। पांच स्थायी देशों में से सिर्फ चीन ने उसका साथ दिया। ओआईसी में भी उसको समर्थन हासिल नहीं है। यूएन और ओआईसी में सिर्फ तुर्की उसका साथ देता है। मलेशिया ने भी हाथ पीछे खींच लिए हैं।