नए कानूनों की नई किताबों को छापने से लेकर क्‍या-क्‍या किया जाएगा… जिसकी वजह से इनके लागू होने में लगेगा वक्‍त

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(www.arya-tv.com)देश की संसद ने अंग्रेजों के कानून IPC, CrPC और Indian Evidence Act को बदलकर भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और साक्ष्य अधिनियम को मंज़ूरी दे दी है. देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू ने भी इन्हें मंज़ूरी दे दी है, लेकिन अभी इन कानूनों को अमल में लाने में समय लगेगा. केंद्रीय गृह मंत्रालय की कोशिश है कि अगले एक साल के भीतर सभी केंद्र शासित राज्यों में इन्हें लागू कर दिया जाए. बाकी राज्यों में ये कब तक लागू हो सकेंगे, इसके बारे में कुछ समय बाद ही अंदाज़ा लगाया जा सकेगा.

दरअसल नये कानूनों को देशभर में लागू करना एक बेहद ही चुनौतीपूर्ण काम है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसकी रणनीति बनाना शुरू कर दिया है. इसी के तहत केंद्र शासित राज्यों में अगले साल दिसंबर तक इन्हें लागू करने का लक्ष्य रखा गया है. इस समय देश के करीब 95 फ़ीसदी पुलिस थानों में FIR एक कॉमन एप्लीकेशन सॉफ़्टवेयर, जिसे Crime & criminal tracking network & system यानी CCTNS भी कहते है के तहत दर्ज की जाती हैं. देश के 17379 थानों में से 16733 थाने CCTNS से लिंक है. अब इन सॉफ़्टवेयर को नये कानूनों की धाराओं के मुताबिक अपग्रेड किया जाएगा.

कानून की किताबों को भी नये सिरे से छापने का काम होगा. सरकार कानून की किताबों के पब्लिशरों के साथ भी बैठक करेगी, क्योंकि अब IPC, CrPC और evidence एक्ट की जगह तीनों नये कानूनों की किताबों को छापना पड़ेगा. कानूनी प्रक्रिया की अनेक पेचीदगियां भी सरकार के सामने हैं, जिनका समाधान निकालने की कोशिश की जा रही है. जैसे की अगर किसी अपराध में चार्जशीट अदालत में पुराने कानून के तहत दाखिल हो गई हो और इस बीच नये कानून के लागू होने की स्थिति में अगर पूरक चार्जशीट दाखिल करने की ज़रूरत हुई, तो उसे कैसे किया जाएगा.

ज़ाहिर है कि कानूनों को पूर्ण रूप से बदलकर भारत सरकार ने एक बहुत बड़ा अभियान शुरू किया है. इसे तार्किक रूप से अमलीज़ामा पहनाने में अभी समय लग सकता है, लेकिन सरकार का दावा है कि एक बार नये कानून लागू होने के बाद किसी भी आपराधिक मामले के निपटारे में तीन साल से ज्यादा समय नहीं लगेगा. अगर ऐसा हुआ तो ये न्यायिक सुधारों की दिशा में बेहद सकारात्मक कदम होगा.