वास्तविक मुद्दों से मुंह चुराती हुई राजनीति

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(www.arya-tv.com) हैरानी हुई पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी का यह वक्तव्य सुनकर कि उनके सामने पंजाब के केवल दो ही मुद्दे हैं- बेअदबी के दोषियों को दंड देना और नशों के जाल से पंजाब को मुक्त करना। जो सरकारें शराब को नशा नहीं मानतीं वे कभी भी नशामुक्त पंजाब या देश नहीं बना सकतीं। हाल ही में पंजाब के एक बेटे ने नशे के लिए पचास रुपये न देने पर बाप का कत्ल कर दिया।

जहां तंबाकू पर रोक को दंड और जागरूकता अभियान चले, वहीं शराब को प्रोत्साहित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शराब को भी वैध और अवैध का नाम दे दिया। जिस प्रकार सरकारी भाषा में बड़े-बड़े होटलों में जुआ खेलना अपराध नहीं, पर गरीब का जुआ अपराध है, वैसी ही हालत नशों की भी है।

जब कोई पुलिस कर्मचारी या अधिकारी चालीस लाख रुपये की रिश्वत लेकर नशा तस्करों को छोड़ देता है, अनेक केस ऐसे मिले, जिसमें पुलिस कर्मचारी नशा किसी की जेब में या दुकान में डालें या नशे में फंसाने की धमकी देकर मोटी रकम ऐंठना चल रहा हो, वहां नशामुक्त करने का सरकारी स्वप्न कैसे साकार हो सकता है।

पहले सरकार सुनिश्चित करे कि कोई भी राजनेता नशा तस्करों का संरक्षक नहीं, हिस्सेदार नहीं। जब तक ऐसा नहीं हो जाता तब तक नशों पर नकेल डालने का लक्ष्य पूरा हो ही नहीं सकता। निस्संदेह, राजनेताओं के संरक्षण और पुलिस के कुछ बेईमान कर्मचारियों और अधिकारियों के सहयोग के बिना नशा नहीं बिक सकता।

नि:संदेह ये दोनों ही मुद्दे महत्वपूर्ण हैं, पर महंगाई, बेकारी, कानून व्यवस्था की बुरी हालत भी पंजाब की जनता की मुख्य कठिनाइयां हैं और पंजाब की जनता को डेंगू का डंक भी बुरी तरह सता रहा है, किंतु सरकार डेंगू पीडि़तों का दर्द नाममात्र भी नहीं समझती। प्रतिदिन रोगियों की संख्या के जो सरकारी आंकड़े दिए जा रहे हैं, वे भी पूरी तरह गलत हैं।

क्या सरकार बता सकती है कि डेंगू के हजारों रोगियों के लिए उसने क्या किया। डेंगू के सभी रोगियों के लिए प्लेटलेट देने की व्यवस्था सरकारी अस्पतालों में करवाई गई? सरकारी अस्पतालों में डाक्टर और अन्य मेडिकल स्टाफ पूरा किया गया? जब जनता का दर्द ही सरकार को नहीं है तो फिर यह उनके लिए मुद््दा कैसे बन सकता है।

राज्य सरकार के मंत्रियों को केवल एक चिंता है कि ऊंचे पदों पर अपने रिश्तेदारों को कैसे बैठाया जाये। क्या मुख्यमंत्री के समर्थन के बिना ऐसा हो सकता था। वैसे चार दिन की सत्ता की चांदनी कभी भी अमावस्या में बदल सकती है, इसलिए उन्होंने कल करे सो आज कर की नीति पर काम करते हुए अपने संबंधी तो प्रसन्न कर लिए।

मुख्यमंत्री अमरेंद्र के त्यागपत्र और उसके बाद नई सरकार का गठन होने के साथ-साथ ही यह सिद्ध हुआ कि बहुत से विधायक और मंत्री जो अमरेंद्र की वफादारी का ढोल बजाते थे, मन से वे भी उसके विरोधी थे या नए साहब को प्रसन्न करने के लिए बदले-बदले नजर आए।

विडंबना देखिए कि चुनाव निकट आते-आते ही राजनीति की मंडी में बोली लगती है और बड़े-बड़े राजनेता पाला बदल लेते हैं। पौने पांच साल जिनके दिल अपनी पार्टी के साथ थे, चुनावों की आहट के साथ ही दिल बदल गए, दल बदल गए। आप पार्टी के दो एमएलए तेजी से कांग्रेस में गए, कुछ कांग्रेसी अकाली दल में और कुछ अकाली कांग्रेस पार्टी के घाट पर पानी पीने के लिए तैयार हो गए।

सच्चाई यह है कि जनता आज राजनीति और राजनेताओं से इसलिए विमुख हो रही है कि उनके समक्ष कोई आदर्श उदाहरण नहीं। सच यह भी है कि जो आदर्शों का पालन करते हैं, उनकी आवश्यकता न सरकारों को है, न राजनेताओं को।