सबके गले की हड्डी बनेंगे ओवैसी !

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(www.arya-tv.com)”पश्चिम बंगाल और यूपी जैसे राज्यों के क्षेत्रीय दलों के लिए ओवैसी  की दोस्ती का पैग़ाम गले की हड्डी साबित होगा। यदि पैग़ाम क़ुबूल लिया तो ध्रुवीकरण और फिर भाजपा को फायदा मिलेगा। और यदि ठुकरा दिया तो क्षेत्रीय दलों के हिस्से का मुस्लिम वोट बैंक एआईएमआईएम की झोली में सटक जायेगा “

पश्चिम बंगाल में TMC सुप्रीमों ममता बेनर्जी से चुनावी समझौता करने का प्रस्ताव रखकर AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवेसी ने कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। यदि TMC ने ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तो कांग्रेस के हिस्से के मुस्लिम वोट सटक कर ओवेसी के आकर्षण से टीएमसी की झोली में एकतलफा पंहुच सकते हैं।

AIMIM दूसरे राज्यों में भी ऐसा ही फार्मूला अपनाकर क्षेत्रीय दलों से हाथ मिला कर कांगेस को अलग-थलग कर सकता है। बिहार के नतीजों के बाद वैसे भी क्षेत्रीय दल कांग्रेस से परहेज करने लगे हैं और ओवेसी का राजनीतिक वज्न का अहसास करने लगे है।

बिहार में पांच सीटें जीतने की सफलता हासिल करने वाले AIMIM से घबराकर कांग्रेस ने ओवेसी पर आरोपों के हमले तेज कर दिए हैं। भाजपा की बी टीम और संघ के एजेंट जैसे इल्जामों से बचने और कांग्रेस पर पलटवार करने के लिए AIMIM ने एक तीर से कई निशाने लगाने की रणनीति बनाई है।
उनका पहला निशाना कांग्रेस को बर्बाद करना है। ममता दीदी मान गईं तो ममता और एआईएमआईएम का गठबंधन कांग्रेस को सबसे बड़ा नुकसान पंहुचायेगा।

पश्चिम बंगाल में TMC कांग्रेस के साथ कोई समझौता करने के मूड में नहीं है। पश्चिमी बंगाल के आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस- लेफ्ट, टीएमसी और एआईएमआईएम एवं भाजपा, ये तीन शक्तियां त्रिशंकु मुकाबला बन सकती हैं। जिसमें कांग्रेस के लिए मुस्लिम वोटों से हाथ धोना पड़ सकता है। क्योंकि टीएमसी के पारंपरिक बंगाली मूल के समर्थकों के साथ ओवेसी के सहयोग से एकतरफा मुस्लिम समर्थन मिल सकता है। जबकि ऐसे में भाजपा को ध्रुवीकरण का लाभ होगा। इन समीकरणों के बीच बड़ा घाटा कांग्रेस और लेफ्ट का हो सकता है।

ओवैसी का दूसरा निशाना BJP की बी टीम जैसे आरोपों से बचने की रणनीति है। इन आरोपों को गलत साबित करके वो सौ फीसद मुस्लिम वोट बैंक को अपने पक्ष में करना चाहते हैं। विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो कांग्रेस को बर्बाद करने के लिए हर राज्य के उस क्षेत्रीय दल से ओवैसी दोस्ती का हाथ बढ़ायेंगे जो भाजपा को टक्कर देने की कूबत रखता है। ऐसे में उनपर से वो आरोप भी गलत साबित हो जायेगा जिसके तहत उन्हें भाजपा का मददगार कहा जाता है। और यदि क्षेत्रीय दल एआईएमआईएम का प्रस्ताव मंजूर नहीं करते हैं तो ओवेसी मुस्लिम क़ौम को ये जता देंगे कि वो तो भाजपा को हराने और हुकुमत में मुस्लिम नुमांइदगी के लिए भाजपा विरोधी गठबंधन में शामिल होना चाहते हैं लेकिन उनको मौका ही नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में उन्हें मजबूरी में अकेले या कम प्रभावशाली छोटे दलों के साथ मिल कर चुनाव लड़ना पड़ रहा है। बताया जा रहा है कि जिस तरह पश्चिम बंगाल में ममता बेनर्जी के साथ हाथ मिलाने का प्रस्ताव रखकर ओवेसी ने ये संदेश दे दिया कि वो भाजपा को टक्कर देने वाली शक्ति की ताकत बनना चाहते हैं, उसी तरह वो उत्तर प्रदश के सपा-बसपा जैसे ताकतवर क्षेत्रीय दलों के सामने भी प्रस्ताव रखेंगे। ऐसी स्थिति में पहले से ही कमज़ोर कांग्रेस अलग-थलग पड़ कर और भी कमज़ोर पड़ जायेगी।

हांलाकि राज्यों के क्षेत्रीय दलों के लिए ओवैसी का दोस्ती का पैग़ाम गले की हड्डी बनेगा। यदि वो इस प्रस्ताव को कुबूल करते हैं तो ध्रुवीकरण होगा और भाजपा बाजी मार लेगी। बसपा ओवेसी से हाथ मिलाती है तो उसके साथ बचा खुचा दलित नाराज होकर भाजपा का हाथ थाम सकता है। इसी तरह सपा को ओवेसी से इसलिए एलर्जी होगी कि कट्टर छवि वाले दल से दोस्ती यादव और अन्य पिछड़े वर्ग के कॉडर को नाराज ना कर दे !
इन कारणों से सपा और बसपा ओवेसी के संभावित पैगाम को ठुकरा देंगे तो एआईएमआईएम को मुस्लिम वोट बैंक तोड़ने का मौका मिल जायेगा।

बिहार चुनाव में भाजपा को जिताने के इल्जाम से बरी होने के लिए ओवेसी ने बताया था कि उनकी पार्टी के प्रदेश नेतृत्व ने राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले भाजपा विरोधी महागठबंधन में शामिल होने का प्रस्ताव रखा था लेकिन उनका प्रस्ताव नहीं कुबूल किया गया।

अब इसीलिए ओवेसी ने सार्वजनिक तौर पर ममता बेनर्जी का साथ देने के पैगाम को प्रचारित किया है। हांलाकि टीएमसी सुप्रीमों अप्रत्यक्ष रूप से असदुद्दीन ओवेसी पर आक्रमक हो चुकी हैं।

– नवेद शिकोह ( लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं)