नीतीश को फिर कमान

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(www.arya-tv.com) सोमवार को बिहार को नई सरकार मिल गई। यूं तो नीतीश कुमार सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं, मगर वे राज्य में लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री बनने वाले पहले मुख्यमंत्री हैं। लेकिन शायद इस बार की पारी में उन्हें स्वतंत्र रूप से बड़े फैसले लेने में पहले जैसी आजादी न रहे।

विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद राजग में उनकी बड़े भाई की भूमिका अब नहीं रही, भाजपा ने अब यह भूमिका हासिल कर ली है। राजभवन में हुए शपथ ग्रहण समारोह में तीन दशक तक बिहार भाजपा का प्रतिनिधि चेहरा रहे सुशील कुमार मोदी का नदारद होना इस बात का संकेत है कि पार्टी नये चेहरों पर भरोसा जता रही है।

ग्यारह साल तक उपमुख्यमंत्री रहे सहज-सरल स्वभाव के सुशील मोदी का नीतीश कुमार के साथ बेहतर तालमेल रहा है। इसकी कमी नीतीश कुमार को जरूर खलेगी। शपथ ग्रहण समारोह में नीतीश कुमार के अलावा जिन चौदह लोगों को शपथ दिलायी गई है उनमें भाजपा के दो नये चेहरे तारकिशोर प्रसाद व रेणु देवी शामिल हैं।

बताया जा रहा है कि उन्हें राज्य में उपमुख्यमंत्री पद का दायित्व दिया जाना है। तारकिशोर प्रसाद पहली बार मंत्री बने हैं। इसके अलावा पिछली नीतीश सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय देख रहे कई वरिष्ठ भाजपा विधायकों को भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की उपस्थिति में हुए शपथ ग्रहण समारोह में तारकिशोर प्रसाद व रेणु देवी के अलावा पांच भाजपा विधायकों ने भी मंत्री पद की शपथ ली।

इसी तरह मुख्यमंत्री के अलावा जदयू से पांच तथा हम व वीआईपी पार्टी से एक-एक विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलायी गई। बहरहाल, इतना तय है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में बड़े दल के रूप में उभरी भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की दखल सरकार में बढऩे वाली है। दो उपमुख्यमंत्री बनाने की सोच और मंत्रिमंडल में नये चेहरों को तरजीह देना इसी सोच को पुख्ता करती है।

इससे पहले रविवार को नीतीश कुमार का राजग का नेता चुने जाने तथा राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा करने के बाद उनके मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया था। लेकिन इसके बावजूद यह साफ है कि इस बार उनकी पारी इतनी आसान नहीं रहने वाली। हालिया विधानसभा चुनाव में जदयू के विधायकों की संख्या कम होना संकेत दे गया था कि नीतीश कुमार पहले की तरह राजकाज चलाने में आजादी नहीं ले पायेंगे।

वहीं उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी के साथ स्थापित कैमिस्ट्री भी नहीं होगी। उनकी जगह दो उपमुख्यमंत्री बनाये जाने की जटिलताएं भी सामने होंगी। इस बात का अहसास नीतीश कुमार को भी है। शपथ ग्रहण समारोह से पहले नीतीश ने मीडिया से यह खिन्नता दर्शायी भी कि वे मुख्यमंत्री बनने के इच्छुक नहीं थे, भाजपा के कहने पर वे गठबंधन धर्म निभा रहे हैं। भाजपा में संख्याबल के आधार पर पार्टी का मुख्यमंत्री बनाये जाने की मांग भी उठी।

कालांतर भाजपा नेतृत्व ने स्पष्ट किया कि चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा गया था, अत: वे ही राजग के मुख्यमंत्री होंगे। कहीं न कहीं भाजपा ने राजग के सहयोगियों को यह संदेश देने का प्रयास किया कि पार्टी सहयोगियों से किये वादों को निभाना जानती है और सिर्फ सत्ता की भूखी नहीं है।

बहरहाल, सुशासन बाबू के सामने तमाम चुनौतियां मौजूद हैं। बिहार में शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली-पानी की समस्याएं प्राथमिकता के आधार पर दूर करनी होंगी। वहीं पलायन व बेरोजगारी का मुद्दा भी अहम होगा। तेजस्वी यादव इस चुनाव में रोजगार को बड़ा मुद्दा बनाने में कामयाब हुए।

भाजपा ने भी 19 लाख रोजगार देने का वादा किया था। यह वक्त बतायेगा कि राज्य में साढ़े चार लाख सरकारी नौकरियों के रिक्त पदों के बाबत नीतीश सरकार क्या फैसला लेती है। राज्य में निवेश व रोजगार बढ़ाने के लिए उद्योगों के लिये अनुकूल माहौल बनाने की जरूरत भी है। देखना होगा कि अब डबल इंजन वाली सरकार बिहार को बीमारू राज्य के अभिशाप से कब तक निकाल पाती है।