(www.arya-tv.com) उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हलचल बढ़ गई है। सावन मास के आखिरी सोमवार को लेकर काशी विश्वनाथ में भक्तों का रेला पहुंचा है। बाबा विश्वनाथ को भक्त जल अर्पण कर रहे हैं। वहीं, चर्चा काशी विश्वनाथ मंदिर ज्ञानवापी मस्जिद विवाद की भी हो रही है। इस विवाद की मूल याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आना है।
जस्टिस प्रकाश पाडिया ने सभी पक्षों को सुनने के बाद 25 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था।फैसला को सुनाने के लिए 28 अगस्त यानी सोमवार का दिन मुकर्रर किया गया था। काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में यह केस काफी महत्वपूर्ण रहा है। कोर्ट ने केस की पोषणीयता और एएसआई सर्वे से संबंधित मामलों की एक साथ सुनवाई की।
विवाद में मूल मुकदमा अक्टूबर 1991 में दायर किया गया था।वाराणसी स्थित स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से अक्टूबर 1991 में एक केस दायर किया गया, इसमें दावा किया गया कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण पुराने शिव मंदिर के ढांचे पर किया गया। पूरे ज्ञानवापी परिसर को काशी विश्वनाथ मंदिर का हिस्सा घोषित करने, परिसर क्षेत्र से मुसलमानों को हटाने और मस्जिद को ध्वस्त करने की मांग की गई।
अंजुमन इंतजामिया मसाजिद- ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति ने 1998 में हाई कोर्ट में मुकदमे की पोषणीयता को चुनौती दी। कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। यह रोक लगभग 20 वर्षों तक रही। वर्ष 2020 में एक बार फिर यह मामला गरमाया। हाई कोर्ट की ओर से 20 वर्षों तक लगी मुकदमे की सुनवाई पर रोक को आगे नहीं बढ़ाए जाने के बाद हिंदू पक्षकारों ने वाराणसी कोर्ट का रुख किया।
केस को फिर से खोलने की मांग की गई। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद इस केस में हाई कोर्ट चली गई। हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद मार्च 2020 में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
हाई कोर्ट में फिर से शुरू हुई सुनवाई
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस प्रकाश पाडिया ने 25 मई 2023 को अपने आदेश में कुछ स्पष्टीकरण के लिए मामले की फिर से सुनवाई शुरू की। इस केस से कई मामलों को जोड़ दिया गया। याचिकाकर्ताओं ने 8 अप्रैल 2021 के वाराणसी कोर्ट के आदेश को भी चुनौती दी थी, जिसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को ज्ञानवापी मस्जिद का व्यापक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया गया था।
कोर्ट ने यह आदेश 2019 में दायर एक याचिका पर पारित किया था और सितंबर 2021 में हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह मुकदमा पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 4 के तहत चलने योग्य नहीं है।
याचिका में कहा गया कि यह किसी भी मौजूदा पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप में 15 अगस्त 1947 की स्थिति में परिवर्तन के संबंध में मुकदमा दायर करने या किसी अन्य कानूनी कार्यवाही पर रोक लगाता है। 15 अगस्त 1947 को मौजूद किसी धार्मिक स्थान के संबंध में कोई दावा नहीं किया जा सकता है।
1991 के अधिनियम के अनुसार, किसी भी धार्मिक स्थान की स्थिति को बदलने के लिए कोई राहत नहीं मांगी जा सकती है, क्योंकि वह 15 अगस्त 1947 को अस्तित्व में था। मंदिर पक्ष की ओर से दलील दी गई कि 1991 का यह अधिनियम उन पर लागू नहीं होगा। इसलिए मुकदमा चलने योग्य है। उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड और ज्ञानवापी मस्जिद की प्रबंधन समिति ने याचिका दायर की थी।