युवा पीढ़ी के लिए कॉम्युनिष्टों का धूर ​कहा जाने वाला कन्हैया, क्यों हो रहे कांग्रेस में शामिल

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(www.arya-tv.com)हम सुन रहे थे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के युवा नेता अपनी पार्टी से दरकिनार ले रहे हैं। तथ्य तो यह है आपसी गतिविधियों के कारण कन्हैया कुमार का CPI से मोहभंग हो चुका है, जिससे कि 28 सितंबर को यानी शहीद-ए-आजम भगत सिंह के जन्मदिन पर कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं।

हलांकि बिहार ​कि राजनीति में अपना जनाधार खो चु​की कांग्रेस को ​कोई युवा चेहरा नही दिखा। जिस कारणवश कांग्रेस को कन्हैया कुमार में भविष्य का नेता दिख रहा है? तो जानिए वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन इस विषय क्या कहते हैं?

CPI में किसी के लिए कोई बड़ी संभावना नहीं बची है। ऐसे में कोई युवा नेता अगर राजनीति में करियर बनाना चाहता है तो उसे परेशानी होगी। इसलिए कन्हैया भी अपने लिए नए विकल्प तलाश रहे थे। वो कहते हैं कि CPI भी कन्हैया को बढ़ाने में रुचि नहीं ले रही थी। पिछले चुनाव में जब गठबंधन बढ़िया बन गया था, लेकिन उनकी पार्टी ने उन्हें प्रमोट नहीं किया। चुनाव के दौरान कन्हैया ने जो टूर शुरू किया था उसे भी पार्टी लीडरशिप ने रुकवा दिया था।

दरअसल, उनके सामने कोई रास्ता ही नहीं था। उनकी अपनी पार्टी CPI फरवरी में उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित कर चुकी है। पार्टी के पटना ऑफिस में कन्हैया ने 1 दिसंबर 2020 को कार्यालय सचिव इंदुभूषण वर्मा के साथ मारपीट की थी। उस समय हैदराबाद में सीपीआई नेशनल काउंसिल की बैठक चल रही थी।

दरअसल, बेगूसराय जिला काउंसिल की बैठक होनी थी। इसके लिए ही कन्हैया अपने समर्थकों के साथ पार्टी दफ्तर पहुंचे थे। किसी कारण से बैठक स्थगित कर दी गई। इसकी सूचना न देने को लेकर कन्हैया नाराज थे। इस पर कन्हैया समर्थकों ने वर्मा के साथ बदसलूकी की। तब हैदराबाद में कन्हैया के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित हुआ था। यहीं से कन्हैया का सीपीआई से मोहभंग हो गया।

पिछले काफी समय से कन्हैया के कांग्रेस जॉइन करने की खबरें चल रही थीं। पिछले हफ्ते CPI महासचिव डी. राजा ने उनसे प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अफवाहों को खारिज करने को कहा था। दिल्ली में पार्टी के दफ्तर में केंद्रीय नेता उनका इंतजार कर रहे थे, पर कन्हैया गए नहीं। पार्टी नेताओं के मैसेज और फोन कॉल्स का भी जवाब नहीं दिया।

आखिर CPI से क्यों दरकिनार होना चाहते हैं कन्हैया ​कुमार

कन्हैया ने इस संबंध में कुछ नहीं कहा है। सूत्रों का कहना है कि CPI के कुछ नेता कन्हैया के संपर्क में थे। कन्हैया ने उन्हें दो टूक कह दिया है कि वे CPI के स्टेट चीफ बनना चाहते हैं। साथ ही चुनाव समिति का चेयरमैन बनना चाहते हैं। ताकि प्रत्याशियों का सिलेक्शन वह करें।

CPI के नेताओं का कहना है कि कोई भी नेता इस तरह की मांग नहीं कर सकता। यह पार्टी अपने लोगों पर फैसले खुद लेती है। जिम्मेदारी भी पार्टी की सर्वोच्च बॉडी ही तय करती है। अगर कन्हैया की कोई महत्वाकांक्षा है तो उसे टॉप लीडरशिप से बात करना चाहिए। हालांकि, लग नहीं रहा कि कन्हैया अब पीछे हटने वाले हैं।

CPI ने कन्हैया को 2019 के लोकसभा चुनाव में बेगूसराय सीट से भाजपा के गिरिराज सिंह के खिलाफ उतारा था। इस चुनाव में कन्हैया 4 लाख से अधिक वोटों से हारे थे। कन्हैया ने भीड़ को तो खींचा पर जीत नहीं पाए, इस वजह से पार्टी उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी देने में हिचक रही है। पार्टी की नेशनल काउंसिल की मीटिंग में 2 अक्टूबर को कन्हैया पर फैसला हो सकता है।

क्या कन्हैया के लिए कांग्रेस ही विकल्प बचा

कन्हैया की राजनीति भाजपा-विरोध पर आधारित है। जेएनयू के नारेबाजी कांड ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। ऐसे में वे भाजपा में जा नहीं सकते। संसदीय राजनीति के लिए क्षेत्रीय पार्टियां सही नहीं हैं। इस वजह से उन्हें राष्ट्रीय पार्टी की जरूरत है। कांग्रेस के अलावा फिलहाल उनके सामने कोई मजबूत विकल्प नहीं है।

बिहार की बात करें तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा का कार्यकाल समाप्त हो चुका है। हाईकमान बुजुर्ग नेताओं को अलग करना चाहता है। चिराग-तेजस्वी जिस तरह से नीतीश सरकार पर हमले बोल रहे हैं, उतनी ताकत से हमले बोलने वाला कांग्रेस के पास कोई नहीं है। कांग्रेस में शामिल होने के बाद ही कन्हैया राज्य में बड़ी ताकत बन सकेंगे।

क्या कन्हैया की जिम्मेदारी बिहार तक ही सीमित रहेगी

फिलहाल कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। सितंबर की शुरुआत में CPI की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सबसे युवा सदस्य कन्हैया ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात की थी। तब से ही अटकलों का बाजार गरमा गया था। सूत्रों का कहना है कि फिलहाल कन्हैया को राज्य पर फोकस करने के लिए कहा जा सकता है।

राहुल गांधी ने 16 जुलाई को सोशल मीडिया वॉलंटियर्स की बैठक में कहा था, “बहुत-से लोग हैं जो BJP-RSS से नहीं डरते हैं। वे कांग्रेस के बाहर हैं। वे सभी लोग हमारे हैं। उनको लाएंगे और जो हमारी पार्टी में रहकर डरते हैं उन्हें बाहर करना चाहिए। वे RSS में जा सकते हैं। हमें उनकी जरूरत नहीं है। हमें बेखौफ लोग चाहिए।’

अगर राहुल के इस बयान को डीकोड किया जाए तो कन्हैया और जिग्नेश मेवानी जैसे युवाओं को महत्वपूर्ण भूमिका मिल सकती है। अब तक तो पार्टी के युवा चेहरों की आउटगोइंग ही रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव हारने के बाद से कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद और सुष्मिता देब जैसे युवा चेहरों को खोया है।

posted by: RAJESH SINGH