भारत की सबसे भयंकर खदान दुर्घटना

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  • विपुल लखनवी ब्यूरो प्रमुख पश्चिमी भारत

उत्तराखंड की सिल्यारा टनल में फंसे 41 मजदूर तो बचा लिए गए पर 1975 का चासनाला कांड याद आता है। मैं उस समय दसवीं कक्षा में पढ़ता था और मेरे घर स्वतंत्र भारत नामक अखबार आया करता था। उस दुर्घटना में सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 375 मजदूर मर गए थे।

27 दिसम्बर 1975 को भारत के इतिहास के सबसे बडी़ खान दुर्घटना धनबाद से 20 किलोमीटर दूर चासनाला में घटी थी जिसमें सरकारी आँकडों के अनुसार लगभग 375 लोग मारे गये थे। जबकि प्रत्यक्ष दर्शनों के अनुसार यह संख्या इसकी तीन गुनी तक हो सकती थी। कोल इंडिया के अंतर्गत आनेवाली भारत कोकिंग कोल लिमिटेड की चासनाला कोलियरी के पिट संख्या 1 और 2 के ठीक ऊपर स्थित एक बडे़ तालाब में जमा करीब पाँच करोड़ गैलन पानी, खदान की छत को तोड़ता हुआ अचानक अंदर घुस गया। इस प्रलयकालीन बाढ़ में वहां काम करे, सभी लोग फँस गये। आनन-फानन में मंगाये गये पानी निकालने वाले पम्प छोटे पड़ गये। कलकत्ता स्थित विभिन्न प्राइवेट कंपनियों से संपर्क साधा गया। तब तक काफीं समय बीत गया था। फँसें लोगों को निकाला नहीं जा सका। कंपनी प्रबंधक ने नोटिस बोर्ड में मारे गये लोग की लिस्ट लगा कर इतिश्री कर दी।

ज्ञात हो उस समय केन्द्र और राज्य दोनो जगह सत्ताधारी कांग्रेस का अधिवेशन चंडीगढ़ में चल रहा था। जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, बिहार के मुख्यमंत्री डा. जगन्नाथ मिश्र, खान मंत्री चंद्रदीप यादव, श्रम मंत्री रघुनाथ राव आदि भाग ले रहे थे।

खदान दुर्घटना की बात आग के तरह फैली, तब के देश विदेशों के अखबारो व समाचार तंत्रो ने प्रश्नों की बोछार कर दी। इधर चासनाला में पीडि़त परिवारजन और दुखी धनबादवासीयों की हिंसा की आंशका से जिले के आरक्षी आधीक्षक तारकेश्वर प्रसाद सिन्हा तथा उपायुक्त लक्ष्मण शुक्ला ने स्वंय कानून व्यवस्था की कमान संभाल ली थी और कोई अप्रिय घटना नहीं घटी।

अचानक ही विभिन्न मीडिया और समाचार में हाल ही में बचे 41 खदान मजदूर के समाचार से आम जनमानस में हर्ष की लहर छाई हुई है लेकिन विपक्ष ने आज तक बधाई नहीं दी। उनके खेमे में तो मायूसी छाई हुई है कि उनको कोई भी ऐसा बिंदु नहीं मिला जिस पर राजनीति की जा सके। हालांकि वे यह सब चिल्ला रहे थे कि जब चंद्रयान चंद्रमा तक पहुंच गए पर पहुंच गए और श्रमिकों को नहीं निकाल सकते तो चंद्र पर पहुंचने का क्या फायदा। वर्तमान रेस्क्यू ऑपरेशन वास्तव में मजाक बनाने वालों के मुंह पर और दुर्घटना में भी राजनीति करने वालों के गाल पर एक गहरा चपत है जिसका निशान आने वाले लंबे समय तक गहराता रहेगा।