(www.arya-tv.com) भारत ने चंदा मामा के घर में कदम रख दिया है। भारत की इस कामयाबी पर पूरे देश में जश्न का माहौल है। चंद्रयान-3 की कहानी कछुए और खरगोश की कहानी की तरह है। बचपन में हम सबने कछुए और खरगोश की रेस की कहानी सुनी-पढ़ी है। कैसे कछुए को कमजोर समझ कर खरगोश रेस के बीच में सो जाता है और कछुए धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहता है और आखिर में रेस जीत जाता है।
कुछ ऐसा ही हुआ भारत के चंद्रयान-3 और रूस के लूना-25 के साथ। रूस ने महज 8 दिन में चांद पर उतरने की कोशिश की, वहीं भारत कछुए की तरह 40 दिन तक अंतरिक्ष में घूमता रहा। आज नतीजा सबके सामने है। धैर्य के साथ आगे बढ़ने वाला चंद्रयान-3 चांद पर सफलतापूर्वक उतर गया है।
जल्दबाजी के चक्कर में बिगड़ा रूस का खेल
चांद के साउथ पोल पर पहुंचने वाला भारत पहला देश बन चुका है। अगर 8 दिन के लूना-25 मिशन की बदौलत रूस चंद्रमा के साउथ पोल पर पहुंचता, तो ये कामयाबी उसके हाथ लगती। शायद इसी कामयाबी की जद्दोजहद में उसने 200 मिलियन डॉलर खर्च करके लूना-25 को चांद की ओर भेजा, जो चंद्रमा की सतह पर क्रेश हो गया।
दूसरी ओर भारत का चंद्रयान-3 सिर्फ 75 मिलियन डॉलर के खर्च से बना। इस मिशन के लिए 40 दिन का वक्त लिया गया। हमारे चंद्रयान-3 ने धरती और चांद की खूब परिक्रमा लगाई, जबकि लूना-25 सीधे चांद की ओर उड़ा।
रूस वाले बजट में भारत भेज सकता है तीन चंद्रयान
भारत का चंद्रयान-3 रूस के लूना-25 से करीब ढाई गुना कम लागत में तैयार हुआ। ज्यादा समय लगाकर हमारे वैज्ञानिकों ने जो कामयाबी हासिल की है और जिस तरह हम चांद के साउथ पोल पर पहुंचने वाले पहले देश बने हैं, उसकी जितनी तारीफ की जाए वो कम है।
ये सफलता सिर्फ हमारे वैज्ञानिकों के कौशल और कम बजट में ज्यादा हासिल करने की नीति का कमाल है। रूस ने जितने रुपये और एडवांस टेक्नोलॉजी अकेले लूना-25 पर खर्च कर दी, उतने में भारत चांद पर सफलता पूर्वक तीन मिशन भेज सकता है।
पुरानी गलतियों से भारत तो सीखा, लेकिन रूस नहीं
चार साल पहले भारत का चंद्रयान-2 मिशन सफल नहीं हो पाया। इसके बाद इसरो ने जब चंद्रयान-3 लॉन्च किया तो पुरानी गलतियों को सुधारने पर फोकस किया। वैज्ञानिकों की मानें तो चंद्रयान-3 के लैंडिंग के वक्त उसकी स्पीड कंट्रोल से बाहर हो गई थी। इसलिए इस बार भारत ने फूंक-फूंक कर कदम रखा और शुरू से ही चंद्रयान की स्पीड पर संतुलन बनाए रखा।
दूसरी ओर रूस का लूना-25 के क्रेश होने की वजह भी ज्यादा स्पीड ही रही। जरूरी थोड़े ही है कि खुद असफल होने के बाद सीखा जाए, दूसरों की गलतियों से भी सीखा जा सकता है। अगर रूस ने चंद्रयान-2 में हुई गलतियों से सीखा होता, तो शायद आज भारत से पहले वो चांद पर कदम रखता।