जनगणना को केंद्र में रखकर लिखा गया पहला उपन्यास है ‘हाता रहीम’ : वीरेन्द्र सारंग

Lucknow
  • राजकमल किताब उत्सव का चौथा दिन
  • पुलिस को अपराध घटनाओं पर लिखते रहना चाहिए : राजेश पांडेय, पूर्व आईजी

(www.arya-tv.com)लखनऊ। राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान, लखनऊ में आयोजित ‘किताब उत्सव’ के चौथे दिन का पहला सत्र पूर्व मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश आलोक रंजन की किताब ‘जिलाधिकारी’ पर बातचीत का रहा। इस सत्र में अशोक शर्मा ने आलोक रंजन से बातचीत की। आलोक रंजन ने अपनी पुस्तक ‘जिलाधिकारी’ पर केंद्रित बातचीत में कहा कि “जिलाधिकारी का पद बहुत ही महत्वपूर्ण पद है। ये एक तरीके से कोलोनियल इंडिया की देन है जो अभी तक चला आ रहा है। आज इसके कर्तव्य और जिम्मेदारियों में बहुत सारे बदलाव आए है पर अभी भी यह जिले में एक केंद्रीय भूमिका में होता है। ये अलग बात है कि हम एक लोकतांत्रिक राज्य में रहते हैं इसलिए उसे जन प्रतिनिधियों और जन आकांक्षाओं के प्रति भी पूरी तरह से जिम्मेदार होना होता है। अभी उसकी भूमिका एक समन्वयक की भूमिका है। जहां उसे दूसरी तमाम इकाइयों और निकायों के बीच समन्वय और संतुलन बनाकर चलना पड़ता है। आज तमाम तरह के राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ने के सवाल पर उन्होंने कहा कि आपको जानना चाहिए कि वे जनता के प्रतिनिधि हैं। जनता की आवाज उनके ही रास्ते प्रशासन तक पहुंचती है। मैं इसे गलत नहीं मानता क्योंकि लोकतंत्र में हमें इस तरह के दबावों के लिए तैयार रहना चाहिए। हां जब ये बहुत ज्यादा बढ़ जाए तो जरूर एक मुश्किल स्थिति है।” इस सत्र का संचालन सुरभि श्रीवास्तव ने किया।

कार्यक्रम के अगले सत्र में वरिष्ठ कथाकार वीरेंद्र सारंग से चर्चित पत्रकार संतोष वाल्मीकि ने बातचीत की। ये बातचीत वीरेंद्र सारंग के उपन्यास हाता रहीम पर केंद्रित रही। वीरेंद्र सारंग जी ने कहा कि मेरी जानकारी में ‘हाता रहीम’ जनगणना को केंद्र में रखकर लिखा गया पहला उपन्यास है। ये यथार्थ के इतना नजदीक है कि इसमें कल्पना के लिए ज्यादा अवकाश नहीं था। जनगणना फार्म के जो चैप्टर थे वे सब बाद में उपन्यास के उपशीर्षक बन गए।

संतोष वाल्मीकि ने कहा कि वीरेंद्र सारंग जी गए तो थे जनगणना के लिए पर एक जिम्मेदार सरकारी अधिकारी के रूप में जब वे गावों में पहुंचे तो लोगों ने उनसे बहुत सारी उम्मीदें पाल लीं। इन्हीं उम्मीदों ने संभवतः उनके भीतर उपन्यास का सृजन किया होगा।

अगले सत्र में वरिष्ठ आलोचक वीरेंद्र यादव से उनकी किताब ‘उपन्यास और वर्चस्व की सत्ता’ पर केंद्रित बातचीत प्रोफेसर सूरज बहादुर थापा ने की। बातचीत के क्रम में वीरेंद्र यादव ने कहा कि प्रतिनिधित्व की समस्या अभी भी विकराल रूप में बनी हुई है। ये इससे नहीं हल होगी कि कुछ शीर्ष पदों पर दलित या आदिवासी पहुंच गए हैं। ये सिर्फ प्रतीकात्मक उपस्थिति है। प्रतिनिधित्व का सही हाल जानने के लिए हमको वास्तविक आंकड़ों के पास जाना होगा। इसी क्रम में श्रीलाल शुक्ल के लोकप्रिय उपन्यास ‘राग दरबारी’ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ये उपन्यास नेहरू युगीन जनतंत्र का भाष्य है। रेणु ने मैला आंचल को जहां पर खत्म किया था ‘राग दरबारी’ उसी बिंदु से शुरू होता है। ‘राग दरबारी’ ने बहुत ही जमीनी स्तर पर भारतीय लोकतंत्र की विकृतियों को उजागर किया। इसी तरह प्रेमचंद की ही तरह यशपाल ने भी अपनी कृतियों में आजादी के आंदोलन में अनुपस्थित तत्वों पर लगातार लिखा। उनका उपन्यास ‘झूठा सच’ विभाजन पर लिखा गया बेमिसाल उपन्यास है। इस यथार्थ को विमर्श के रूप में न दर्ज कर उसकी संपूर्णता में रचता है। वे स्त्री अधिकारों पर लिखते है।

इसी क्रम में उन्होंने कहा कि आजाद भारत में सर्वाधिक प्रासंगिक वैचारिक लेखन राजेंद्र यादव का है। लोकतंत्र के विघटन के सवाल, स्त्रियों के सवाल, दलितों और आदिवासियों से जुड़े सवालों को हिंदी साहित्य के केंद्र में लाने का काम करते हैं। उन्होंने समता, स्वतंत्रता को केंद्र में रखकर अपनी वैचारिकी रची और हिंदी साहित्य और उसकी संस्कृति पर गहरा असर डाला।

अगला सत्र हिंदी के मूर्धन्य लेखक भगवती चरण वर्मा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित रहा। इस सत्र में वरिष्ठ आलोचक वीरेंद्र यादव, वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी और नाटककार राकेश, रंगकर्मी गोपाल सिन्हा और भगवती चरण वर्मा के पौत्र और कवि कथाकार चंद्रशेखर वर्मा ने भगवती बाबू के रचना कर्म और जीवन पर अपनी बातचीत रखी। वीरेंद्र यादव ने कहा कि भगवती चरण वर्मा लखनऊ के गौरव थे। उनकी कृतियों में लखनऊ का बृहत्तर यथार्थ दिखाई देता है। उनका उपन्यास चित्रलेखा आज भी एक मानक बना हुआ है। चंद्रशेखर वर्मा ने भगवती चरण वर्मा के उपन्यास चित्रलेखा से एक मार्मिक और विचारोत्तेजक अंश का पाठ किया। उन्होंने भगवती चरण वर्मा के जीवन से जुड़े अनेक रोचक प्रसंग भी साझा किया। इसी क्रम में वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी राकेश जी ने कहा कि भगवती बाबू जिस समय में रहे वह सांस्कृतिक रूप से लखनऊ का बहुत ही समृद्ध समय था। और ये समृद्धि जिन कुछ महान व्यक्तित्वों के दम पर हासिल थी उनमें भगवती बाबू का शीर्ष स्थान था। उनकी दो बांके और मुगलों ने सल्तनत बख्श दी जैसी कहानियां आज क्लासिक बन चुकी हैं।

अगला सत्र पूर्व आईजी, राजेश पांडेय की किताब ‘वर्चस्व’ पर केंद्रित रहा। इस सत्र में पत्रकार भूपेन्द्र पांडेय ने उनसे बातचीत की। राजेश पांडेय जी ने कहा कि कोविड के समय जीवन के यथार्थ से सामना हुआ। उस दौरान क्राइम बंद हो गया था क्योंकि सब अपने घरों में बंद थे। उस समय ऐसा लग रहा था कि जीवन का कोई भरोसा नहीं है। इन्हीं सब चिंताओं के बीच मैंने सोचा कि पुलिस विभाग में रहने के जो अनुभव हुए उन्हें लोगों तक किताब के माध्यम से पहुंचाया जाना बहुत जरूरी है।

श्रीप्रकाश शुक्ल के आपराधिक जीवन के बारे में राजेश पांडेय ने कहा कि उसका आपराधिक कार्यकाल केवल पांच वर्ष का था लेकिन इन पांच वर्षों में उसने त्राहि त्राहि मचा दिया था। वीरेंद्र साही  की हत्या के बाद हमें श्रीप्रकाश शुक्ल को जानने का मौका मिला। लेकिन नाम पता चलने में एक साल लग गए थे। उस समय अखबार वाले कहने लगे थे कि पुलिस कैसे श्रीप्रकाश शुक्ल को पकड़ पाएगी? उस समय अखबार में मुहावरा चल पड़ा था कि पुलिस पीतल बटोर रही थी। जब बहुत त्राहि त्राहि मच गई तब श्रीप्रकाश शुक्ल को पकड़ने के लिए टीम का गठन किया गया।

सुहैल वाहिद ने कहा कि ‘वर्चस्व’ किताब बेहद शानदार किताब है। फैक्ट फिक्शन होने के बावजूद यह बहुत रोचक किताब है।
राजेश पांडेय ने कहा कि पुलिस को अपराध घटनाओं पर लिखते रहना चाहिए। पुलिस वाले लिखेंगे तो लोग उनके लिखे पर जरूर भरोसा करेंगे। जब आप दूध को दूध और पानी को पानी कहेंगे तो लोग आपका जरूर भरोसा करेंगे। पब्लिक को सच के बारे में पता चलना चाहिए। पुलिस विभाग का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि उसकी सफलता अखबार में बहुत पीछे बहुत छोटे से हिस्से में छापी जाती है लेकिन असफलता फ्रंट पेज पर छपती है।

किताब उत्सव के चौथे दिन का अंतिम सत्र काव्य संध्या का रहा। इस सत्र में अनिल त्रिपाठी, आलोक पराड़कर, प्रीति चौधरी, सीमा सिंह, सुभाष राय, ज्ञान प्रकाश चौबे और नलिन रंजन सिंह ने कविताओं का पाठ किया।

किताब उत्सव के अन्तिम दिन 16 जनवरी, मंगलवार को अपराह्न 02 बजे से आयोजित कार्यक्रम के पहले सत्र में उत्कर्ष शुक्ला के उपन्यास ‘रहमान खेड़ा का बाघ’ का लोकार्पण होगा। दूसरे सत्र ‘हमारा शहर हमारे गौरव’ में श्रीलाल शुक्ल का कृतित्व स्मरण किया जाएगा। तीसरे सत्र में ओमप्रकाश वाल्मीकि की दो किताबों ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ और ‘सम्पूर्ण कहानियाँ’ और प्रमोद रंजन की किताब ‘बहुजन साहित्य की सैद्धान्तिकी’ का लोकार्पण होगा। अगले सत्र में ‘लखनऊ की मोहल्लादारी’ विषय पर हिमांशु वाजपेयी से आलोक पराड़कर बातचीत करेंगे। किताब उत्सव का अन्तिम सत्र मुशायरे का रहेगा जिसमें अखिलेश निगम ‘अखिल’, अभिषेक शुक्ल, चन्द्रशेखर वर्मा, मनीष शुक्ला, राजकुमार सिंह और हरिओम शायरी से समां बांधेंगे।