- पंडित रामकिंकर जी के प्रवचन में मिलते थे श्रीराम की भक्ति के गूढ़ रहस्य और जीने की कला
- रामकिंकर का जीवन था एक तपस्वी की तरह
लखनऊ। विश्व विश्रुत, मानसवेत्ता, पद्मभूषण, युगतुलसी पंडित रामकिंकर उपाध्याय की जन्म शताब्दी वर्ष पर आयोजित भावांजलि कार्यक्रम में बोलते हुए उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री सांसद दिनेश शर्मा ने कहा कि आज ऐसे महापुरूष की जन्म शताब्दी वर्ष मनाने की शुरूवात कर रहे हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने साक्षात तुलसी के रूप मे जन्म लिया था।
इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान, लखनऊ में विश्व विश्रुत् मानसवेता, पद्मभूषण , युगतुलसी पंडित रामकिंकर उपाध्याय के जन्मशताब्दी वर्ष पर आयोजित भावांजलि कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मुख्य आतिथ्य में आयोजित कार्यक्रम में उन्होने कहा कि कहा जाता है कि श्रीराम के जीवन चरित्र का लेखन करने का प्रयास सबसे पहले हनुमान जी ने किया था उसके बाद तुलसीदास को लेाग बाल्मीकि का अवतार मानते हैं।तुलसी के लिखे ग्रन्थों का सार जन जन तक पहुंचाने का कार्य रामकिंकर जी ने किया था। उनके भक्तों द्वारा कहा जाता है कि रामकिंकर जी के पिता शिवनायक एक कथावाचक थे जिन्हे जीवन के अंतिम पड़ाव में हनुमान जी के पूजन के उपरांत बेटा हुआ था। उन्होंने अपने बेटे का नाम रामकिंकर रखा था। अर्थात राम का सेवक।
सांसद शर्मा ने कहा कि तुलसीदास ने जब रामचरितमानस की रचना की तो उस समय के लिए एक दोहा प्रसिद्ध है। ’’चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर। तुलसिदास चन्दन घिसें तिलक करत रघुबीर।’’कहा जाता है कि जब मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम तुलसी का तिलक कर रहे थे तो पेड़ पर पक्षी के रूप में बैठे हनुमान जी कह रहे थे कि यही प्रभु श्रीराम हैं।कहा तो यह भी जाता है कि जब तुलसीदास जी रामचरितमानस की कोई चौपाई लिखते थे तो हनुमानजी को उसे दिखाते थे यानी तुलसीदासजी का सीधा तारतम्य हनुमान जी के साथ था।कहा जाता है कि 18 वर्ष की आयु में रामकिंकर को स्वप्न हुआ था कि वे तुलसी के मानस के रहस्य को जनजन तक पहुंचाएं। कहा जाता है कि 20 वर्ष की आयु में उन्होंने पहला कथा का वाचन बिलासपुर में किया था।यह भी कहा जाता है कि उन्हें फिर से स्वप्न दर्शन हुआ और कथा कहने की प्रेरणा उन्हें बजरंगबली से वहीं से मिली थी।स्वामी अखंडानन्द जी महराज के कहने पर वे वृन्दावन गए थे तथा वहां पर 11 माह उन्होंने बिताए थे। पूज्य उड़िया बाबा का उन्हे आशीर्वाद मिला था उनसे उन्होंने दीक्षा भी ली थी। उनके कथा वाचन का तरीका आज के प्रचलित तरीकों से भिन्न था तथा वे भावात्मक कथावाचन के पुरोधा थे।
डा0 शर्मा ने बताया कि उनके प्रवचन में मानव को प्रभु श्रीराम की भक्ति के गूढ़ रहस्यों के साथ जीने की कला का भी दिग्दर्शन मिलता था।उनके शिष्य बताते हैं कि हरिद्वार ऋषिकेस में उन्हें बजरंगबली का दर्शन हुआ था।जिस देव को भगवान श्रीराम और माता सीता का आशीर्वाद मिला था उसे बजरंगबली हनुमान कहा जाता है।बजरंगबली के उपासक होने के कारण रामकिंकर की कथा कहने की जो शैली थी वह निराली थी।रामकिंकर महराज का पूरा जीवन एम तपस्वी का जीवन था।उन्हेांने अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक देश के कोने तक मानस का पाठ किया था। कई मानस ग्रंथों की रचना भी उन्होंने की।
इस अवसर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का आध्यात्मिक उद्बोधन सुनने को प्राप्त हुआ उपरोक्त कार्यक्रम में पूज्य महाराज राम किंकर की मानस पुत्री एवं आध्यात्मिक उत्तराधिकारी दीदी मंदाकिनी रामकिंकर, मानस मर्मज्ञ पूज्य व्यास पंडित उमा शंकर शर्मा, किशोर टंडन, वैभव टंडन एवं राजू मिश्रा आदि उपस्थित रहे।