हाथी नहीं रहे साथी, जशपुर में 14 माह में 33 की ली जान

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जशपुर (www.arya-tv.com) गजराजों को साथी बनाकर जंगली हाथी और मानव संघर्ष को कम करने की छत्तीसगढ़ सरकार की योजना फिलहाल सफल होती नजर नहीं आ रही है। ओडिशा और झारखंड से सटे जशपुर जिले में जनवरी 2020 से फरवरी 2021 में अब तक यानी 14 माह के भीतर हाथियों के हमले में घायलों की तुलना में मृतकों की संख्या दोगुनी है। यह हाथियों की हिंसक होती प्रवृत्ति को इंगित कर रहा है। इस अवधि में दंतैलों ने जिले में 33 लोगों की जान ली है, जबकि 19 को घायल किया है।

880 मकान तोड़े, 877 हेक्टेयर फसलों को नुकसान

हाथियों द्वारा 880 मकान तोड़ने के साथ ही 877 हेक्टेयर की फसल को नुकसान पहुंचाया गया है। एवज में सरकार को चार करोड़ 37 लाख का मुआवजा बांटना पड़ा।

बेघर हुए हाथी बन रहे हैं उत्पाती

छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य झारखंड और ओडिशा में तेजी से विकसित हो रहे उत्खनन उद्योग से बेघर होकर जिले में पहुंचे हाथियों की समस्या गंभीर होती जा रही है। उत्पाती हाथियों को बस्ती में घुसने से रोकने के लिए जीआइ वायर फेंसिंग, स्मार्ट हूटर, सोलर स्ट्रीट लाइट जैसे उपाय किए जा रहे हैं। इंटरनेट मीडिया के माध्यम से लोगों को हाथियों की हलचल की जानकारी देकर दूरी बनाए रखने की समझाइश दी जा रही है।

क्वीन ऑफ एलिफेंट की मदद भी काम नहीं आई

जंगली हाथियों को साथी बनाने का पहला प्रयास वर्ष 1985 में किया गया था। इस साल देश की प्रसिद्ध हाथी विशेषज्ञ पार्बती बरुआ के सहयोग से तत्कालीन मध्य प्रदेश सरकार ने कुमकी हाथी की मदद से दोस्त बनाने का प्रयास किया था। मगर क्वीन ऑफ एलीफेंट के नाम से मशहूर असम के गौरीपुर राजपरिवार की सदस्य पार्बती बरुआ के प्रयास को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई थी। सरकार हाथी समस्या से निपटने के लिए करोड़ों रुपये फूंक चुकी है, लेकिन हाथी-मानव द्वंद्व कम होने के बजाय और गंभीर रूप लेता जा रहा है।

लगातार बढ़ रही संख्या

जशपुर के डीएफओ एसके जाधव ने बताया कि हाथियों के लिए जंगल में चारा और पानी की भरपूर व्यवस्था हो जाने से मानव-हाथी द्वंद्व कम हो सकता है, लेकिन सिमटते जंगल की वजह से ऐसा नहीं हो पा रहा है।