(www.arya-tv.com) सावन शुरू होते ही बहनें इस माह के पूर्णिमा का इंतज़ार करने लगती हैं। इसी माह के पूर्णिमा को वे अपने भाइयों की दाहिनी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर दृष्ट तथा अदृष्ट विघ्नों से उनके रक्षा की कामना करती हैं। न सिर्फ उनके रक्षा की कामना करती हैं बल्कि अपने संबंध की प्रगाढ़ता की भी कामना करती हैं।सावन मास की पूर्णिमा तिथि के दिन रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है।
इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी रक्षा का कामना करती हैं। अपने भाइयों की रक्षा की कामना के साथ साथ अपने संबंध भी मजबूत करती है। रक्षाबंधन की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इस बार रक्षाबंधन की तारीख को लेकर कंफ्यूजन है कि रक्षाबंधन 30 या 31 अगस्त किस दिन मनाया जाएगा। साथ ही इस दिन भद्रा का साया भी है तो आइए जानते हैं राखी किस दिन आप किस शुभ मुहूर्त में बांधना उत्तम रहेगा।
रक्षाबंधन में भद्रा विचार
भद्रा में कुछ संस्कार एवं कार्य वर्जित हैं जिनमें से एक रक्षाबंधन भी है। इसलिए भद्रा के बारे में जानना आवश्यक है।एक तिथि में दो करण होते हैं। जब विष्टि नामक करण आता है तब उसे ही भद्रा कहते हैं।
भद्रा का वास
जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होता है तब भद्रा का वास पृथ्वी पर होता है। चंद्रमा जब मेष, वृष, मिथुन या वृश्चिक में रहता है तब भद्रा का वास स्वर्गलोक में होता है। जब चन्द्रमा कन्या, तुला, धनु या मकर राशि में चंद्रमा के स्थित होता है तो भद्रा का वास पाताल लोक में होता है।
भद्रा जिस लोक में रहती है वहीं प्रभावी रहती है। इस प्रकार जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होगा तभी वह पृथ्वी पर असर करेगी अन्यथा नहीं।
रक्षाबंधन कब – 30 या 31 अगस्त को?
सावन पूर्णिमा की शुरुआत 30 अगस्त को सुबह 10:58 बजे होगी। इस समय विष्टि करण रहेगा। इसी दिन सुबह 10 बजकर 19 मिनट में चन्द्रमा कुंभ राशि में प्रवेश करेगा। अर्थात भद्रा का वास पृथ्वी पर होगा। 30 अगस्त को रात्रि 9 बजकर 1 मिनट तक विष्टि करण रहेगा। इसके बाद करण परिवर्तित होगा।
31 अगस्त को सुबह 7 बजकर 07 मिनट तक पूर्णिमा रहेगा। हालांकि चन्द्रमा इस समय भी कुंभ राशि में रहेगा परंतु विष्टि करण नहीं रहेगा।
इसलिए 31 अगस्त को सुबह 7 बजकर 7 मिनट से पहले रक्षा सूत्र बांधे जाने का उत्तम मुहूर्त है।
रक्षा बंधन की प्राचीन कथा
देवासुर संग्राम में एक समय ऐसा भी आया जब यह लगने लगा कि अब देवताओं की पराजय तय है | सभी देव चिंतित होकर गुरु बृहस्पति के पास गए। देव और बृहस्पति के बीच हो रहे संवाद को संयोग से इन्द्राणी भी सुन रही थी| उसके आधार पर उसने यह निर्णय लिया कि मैं पूरे विधान से उस रक्षा सूत्र का निर्माण करुंगी जो इंद्र की रक्षा कर सके। उसने रक्षा सूत्र तैयार किया और ब्राह्मणों को देकर उसे इंद्र की कलाई पर बांधने के लिए कहा। ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चार करते हुए रक्षा सूत्र को इंद्र की कलाई पर बांधा। परिणाम युद्ध में इंद्र की विजय हुई। तभी से प्रत्येक वर्ष सावन पूर्णिमा को इसे मनाने की परंपरा शुरू हुई।
सुभद्रा श्रीकृष्ण को राखी बांधती है।
‘राखी बाँधत बहिन सुभद्रा
बल अरु श्री गोपाल के ।
कंचन रत्न थार भरी मोती
तिलक दियो नंदलाल के ॥‘
यहां तक की माता जसोदा भी अपने ललन की रक्षा के लिए उनकी कलाइयों पर रक्षा सूत्र बांधती हैं।
‘मात जसोदा राखी बांध बल कें श्रीगोपाल के।
कनक-थार अच्छीत, कुंकुम लै
तिलकु कियो नंदलाल के ॥‘
इस दोहे से पता चलता है कि भगवान श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा ने भी उन्हें राखी बांधी थी। सिर्फ उनकी बहन ने ही नहीं बल्कि उनकी मां ने भी उनकी रक्षा के लिए उन्हें राखी बांधी थी।
रक्षा बंधन का वैज्ञानिक पहलू
चिकित्सीय महत्व को देखें तो वह यह कि इससे रक्तचाप नियंत्रित रहता है। भविष्य पुराण में तो कहा गया है कि इस समय धारण किया गया रक्षा सूत्र वर्ष पर्यन्त समस्त रोगों से से रक्षा करता है।