(www.arya-tv.com) कूनो नेशनल पार्क में चीतों की लगातार हो रही मौत पर चीता परियोजना से जुड़े अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने बड़ा दावा किया है। इनका दावा है कि अफ्रीका की सर्दियों के आदी इन चीतों का ‘फर’ कूनों में इनकी मौत की वजह बन रहा है। विशेषज्ञों ने भारत की नमी युक्त और गर्म मौसमी परिस्थितियों को चीतों के लिए प्रतिकूल बताया है।उनका कहना है कि अफ्रीका की ठंड से बचने के लिए इन चीतों की फर मोटी हो चुकी है, जो यहां उनके लिए बड़ी समस्या बन रही है।
चीतों के नए घर मध्य प्रदेश का कूनो नेशनल पार्क में चीतों की मौत थमने का नाम नहीं ले रही है, 26 मार्च से लेकर अब तक यहां 9 चीतों की मौत हो चुकी है। हालिया मामला मादा चीता धात्री का सामने आया है, जिसकी मौत बुधवार को हुई। इसके अलावा मरने वाले चीतों में तीन शावक भी शामिल हैं जिनका जन्म भारत में ही हुआ था।
क्या होता है फर
फर का अर्थ छाल से लगाया जाता है, यदि जानवरों के लिहाज से देखें तो उनके शरीर पर जो रोवें होते हैं उन्हें ही फर कहा जाता है. चीता परियोजना से जुड़े अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने सरकार को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें चीतों का फर काटने की सलाह दी है, ताकि उन्हें संक्रमण और मौत से बचाया जा सके।
फर से क्या है नुकसान
विशेषज्ञों का तर्क है कि चीतों के फर की मोटी परत से त्वचा रोग हो सकता है, जब मक्खी इस पर हमला करती है तो संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है। यह संक्रमण अगर रीढ़ की हड्डी तक पहुंच जाता है, तो हालात बिगड़ जाते हैं। इसके अलावा फर की मोटी परत की वजह से चीतों को गर्मी भी ज्यादा लगती है।भाषा की एक रिपोर्ट के मुताबिक परियोजना से जुड़े अधिकारी ने यह भी बताया है कि सभी चीतों की त्वचा पर घने फर नहीं हैं, लेकिन ज्यादातर इस समस्या को झेल रहे हैं।
जलवायु एकमात्र कारक नहीं
सरकार को विशेषज्ञों ने जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें जिक्र है कि चीतों की मौत का कारण अकेले जलवायु परिवर्तन नहीं है, टीम का दावा है कि जहां से ये चीते लाए गए हैं वहां की सीमा दक्षिणी रूस से लेकर दक्षिण अफ्रीका तक फैली हैं, जहां विभिन्न जलवायु क्षेत्र हैं। पिछले 11 साल का आंकड़ा देखा जाए तो वहां से 364 चीतों को दुनिया के अन्य हिस्सों में स्थानांतरित किया गया है।
दवा देने के लिए पकड़े जाने का तनाव
अंतरराष्ट्रीय टीम में शामिल एक अधिकारी ने ये तक दावा किया कि दवा देने के लिए चीतों को पकड़ा जाना भी उनको तनाव दे जाता है। इस प्रक्रिया में चीतों को भगाना, पकड़ना और बाड़ों में वापस लाना शामिल है। इस पूरी प्रक्रिया से चीते तनाव में आ जाते हैं और उनकी मौत का जोखिम बढ़ जाता है।
गर्मी से हुई थी शावकों की मौत
अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की टीम ने ये भी तर्क दिया है कि कूनो में अब तक छह व्यस्क चीतों की मौत हुई है, जबकि तीन शावकों ने दम तोड़ा है। इन शावकों की मौत का कारण अत्यधिक गर्मी ही बताई गई थी। दरअसल चीता परियोजना के तहत नामीबिया से आइ और फरवरी से 12 चीते लाए गए थे। इसी साल मार्च में चीता ज्वाला ने चार शावकों को जन्म दिया था, लेकिन बाद में तीन शावकों की मौत हो गई थी।
- कूनो में अब तक हुई चीतों की मौत
नो में अब तक हुई चीतों की मौत
27 मार्च को नामीबियाई चीतों में शामिल साशा की मौत हुई थी
13 अप्रैल को दक्षिण अफ्रीका से लाया गय चीता उदय मृत पाया गया था
9 मई को अफ्रीका से ही लाया गया चीता दक्ष मृत मिला था
11 जुलाई को नर चीता तेजस मृत पाया गया
14 जुलाई को एक और नर चीता सूरज का शव मिला था
2 अगस्त को मादा चीता धात्री का शव मिला
इसके अलावा तीन शावकों की भी मौत हो चुकी है।