तीन राज्यों के सीएम…बीजेपी यूं नहीं ले रही है वक्त, 2024 वाला दांव चलेगी पार्टी!

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(www.arya-tv.com) लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल का रिजल्ट आए एक सप्ताह का समय बीत चुका है। बीजेपी को राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीगढ़ में बंपर जीत मिल चुकी है।

हालांकि, अभी जीत हासिल करने वाले राज्यों में टीम के नए कैप्टन का ऐलान नहीं हो पाया है। पार्टी आलाकमान की तरफ अभी तक तीनों राज्यों के सीएम को लेकर कोई नाम सामने नहीं आया है। जो कुछ भी नाम चल रहे हैं वह सिर्फ मीडिया रिपोर्ट में ही चल रहे हैं।

तीनों राज्यों में कई नामों को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। हालांकि, पार्टी आलाकमान की तरफ से इस पर कोई बात नहीं कही जा रही है। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी की नजर 2024 के लोकसभा चुनाव पर है। इस वजह से नए नामों की घोषणा में देरी हो रही है।

बीजेपी की परिपाटी के उलट

सीएम के नामों की घोषणा में हो रही देरी बीजेपी की तय परिपाटी के खिलाफ है। ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है जब बीजेपी ने चुनाव जीता हो और मुख्यमंत्री का नाम घोषित करने को लेकर इतनी देरी हो रही हो। ऐसा कांग्रेस में देखने को मिलता था। चुनाव जीतने के बाद राज्यों में कई दौर की बैठकें होती थी।

अलग-अलग विधायक गुटों की मीटिंग होती थी। आखिरकार फैसला आलाकमान पर छोड़ दिया जाता है। इस बार कांग्रेस वाली कहानी की कमोबेश छाप बीजेपी पर दिख रही हैं। इसके उलट कांग्रेस ने तेलंगाना में चुनाव जीतने के बाद सरकार का गठन भी कर दिया है।

हालांकि, बीजेपी सीएम के चेहरा आगे कर चुनाव लड़ने के लिए जानी जाती है लेकिन पिछले कुछ चुनाव से यह परिपाटी बदली है। इस बार पार्टी ने तीनों राज्यों में किसी भी नाम को आगे नहीं किया था। यह चुनाव सिर्फ और सिर्फ पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ा गया था। इसका फायदा भी पार्टी को मिला। पीएम के चेहरे से राज्यों में पार्टी ने एकजुट होकर चुनाव को ना सिर्फ लड़ा बल्कि शानदार तरीके से जीत भी हासिल की।

2024 में कायम रहे भरोसा

अब सवाल है कि आखिर बीजेपी की तरफ से सीएम का चेहरा घोषित करने में देरी क्यों हो रही है। इस बारे में राजनीतिक विश्लेषकों से लेकर कई पार्टी नेताओं का मानना है कि बीजेपी की नजर 2024 के चुनाव पर है।

ऐसे में पार्टी मुख्यमंत्री के रूप में ऐसा चेहरा चुनना चाहती है जिसमें 2024 के आम चुनाव में मौजूदा प्रदर्शन को दोहराने की क्षमता हो। पार्टी नहीं चाहती कि जल्दबाजी में ऐसा चेहरा पार्टी विधायकों पर थोपा जाए जिससे पार्टी में मतभेद की आशंका हो जाए।

राजस्थान से लेकर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह चौहान से लेकर रमन सिंह ऐसे नेता हैं जो मुख्यमंत्री के रूप में दो कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। चूंकि विधानसभा चुनाव पीएण मोदी के चेहरे पर लड़ा गया था।

लोगों ने पीएम मोदी के चेहरे पर भरोसा भी जताया। ऐसे में पार्टी अब मुख्यमंत्री के रूप में ऐसा चेहरा देना चाहती है जो 2024 के आम चुनाव में लोगों के साथ ही पार्टी के भरोसे को भी कायम रखने में सफल हो।

मैं मिशन 29 पर निकला हूं। मिशन 29 है लोकसभा के चुनाव में भाजपा को मध्यप्रदेश की 29 में 29 सीटें जिताकर श्रीमान नरेंद्र मोदी के गले में प्रधानमंत्री बनने के लिए 29 कमल की माला डालना है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं किसी भी कीमत पर आपका विश्वास टूटने नहीं दूंगा।

जातिगत समीकरण से लेकर स्वीकार्यता

एक बात तो तय है कि विधानसभा चुनाव खत्म हो चुके हैं अब पूरा फोकस मिशन 2024 पर है। अगले साल आम चुनाव के मद्देनजर पार्टी जातिगत समीकरणों पर भी महामंथन कर रही है। इसके अलावा पार्टी ऐसा चेहरा तलाश करने में जुटी है जिसको लेकर व्यापक स्वीकार्यता हो।

ऐसे में तीनों प्रदेश में जो चेहरा मिले वह 2024 में विजयश्री की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाए। ऐसे में पार्टी की तरफ से तीनों राज्यों में नौ पर्यवेक्षक कड़ी मशक्कत करेंगे। इन पर्यवेक्षकों में केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के साथ ही हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर, झारखंड के पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा जैसे नाम शामिल हैं।

ये पर्यवेक्षक संबंधित राज्यों की राजधानी पहुंचेंगे। यहां पर्यवेक्षक विधायकों से मिलकर उनका मन टटोलेंगे। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की राय भी विधायकों के साथ शेयर करेंगे। इसके बाद पार्टी आलाकमान को रिपोर्ट भेजेंगे। इसके बाद शीर्ष नेतृत्व से हरी झंडी मिलने के बाद घोषणा हो जाएगी। माना जा रहा है कि रविवार से लेकर सोमवार तक सीएम के चेहरों की घोषणा हो सकती है।

नए चेहरे की हो सकती है घोषणा

मीडिया रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि पार्टी तीन राज्यों में इस बार नए चेहरों को मौका दे सकती है। रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व इस बार तीनों राज्यों में नई पीढ़ी लाना चाहता है।

अगर ऐसा होता है तो एक बात तो तय है कि राजस्थान में वसुंधरा राजे, मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह का पत्ता कटना तय है। कहा जा रहा है कि पार्टी भविष्य की लीडरशिप तैयार करने पर फोकस कर रही है।

जेनरेशनल चेंज के पीछे की बड़ी वजह यूथ बताई जा रही है। पार्टी युवाओं के साथ ही फर्स्ट टाइम वोटरों को यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि वह नए दौर की राजनीति करती है। पार्टी तय ढर्रे को तोड़ने से कोई गुरेज नहीं करती।

हालांकि, केंद्रीय नेतृत्व के लिए यह उतना आसान नहीं होगा जितना की मीडिया रिपोर्ट में इस तरह की लाइनें लिखना सहज है। इन नेताओं का पार्टी में अपना एक समर्थक वर्ग भी है। ऐसे में पार्टी इन नेताओं की नाराजगी भी नहीं लेना चाहेगी।

इन नामों के लग रहे कयास

इस बार विधानसभा चुनाव में जीते हुए सांसद लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं। ऐसे में राजस्थान में मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, गजेंद्र सिंह शेखावत के साथ ही पिछले दो दिन से रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का नाम भी चर्चा में तेजी से उभरा है।

मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम की भी खूब चर्चा हो रही है। यहां नरेंद्र सिंह तोमर, प्रल्हाद पटेल का नाम भी चल रहा है। छत्तीसगढ़ में अप्रत्याशित जीत के बाद सीएम को लेकर दुविधा थोड़ी कम है। यहां 15 साल तक सीएम रहे रमन सिंह खुद को पहले सी मुख्यमंत्री पद की रेस से बाहर कर चुके हैं।

पार्टी यहां आदिवासी और ओबीसी वर्ग से सीएम का चेहरा दे सकती हैं। बीजेपी को राज्य में आदिवासियों को बड़ा समर्थन मिला है। ऐसे में दो बार विधायक, चार बार सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री विष्णु देव साय, आदिवासी चेहरे के रूप में मौजूदा केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह, पूर्व नौकरशाह ओपी चौधरी और राज्य प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव सीएम पद की रेस में हैं।

इन सब के बीच यह बात तो सभी जानते हैं कि बीजेपी सरप्राइज देने में माहिर है। यह इतिहास रहा है कि जो भी नाम चर्चा में होते हैं असल तस्वीर उसके उलट होती है।

तीन राज्यों में बीजेपी का शानदार प्रदर्शन

हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में, भाजपा ने मध्यप्रदेश में 163 सीटों पर शानदार जनादेश हासिल किया। वहीं, जबकि कांग्रेस 66 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही। मध्यप्रदेश में पार्टी ने ना सिर्फ सत्ता को बरकार रखा बल्कि कांग्रेस को बिल्कुल बैकफुट पर धकेल दिया।

राजस्थान में, बीजेपी ने 115 सीटें जीतीं और कांग्रेस 199 में से केवल 69 सीटें ही जीतने में कामयाब रही। बीजेपी ने इस बार शानदार प्रदर्शन से तय किया कि राजस्थान में रिवाज ना बदले। छत्तीसगढ़ में, बीजेपी ने उम्मीद के उलट 54 सीटें हासिल कीं, जबकि कांग्रेस ने 35 सीटें जीतीं।